ओम् की बड़ी महिमा है। इस शब्द, जो कि मूलत: ध्वनि मात्र है, के बारे में दुनिया भर के विद्वानों ने भिन्न-भिन्न व्याख्याएं की हैं। जहां तक मेरी समझ है, ओम् के बारे में जितना कहा या लिखा गया है, शायद की किसी अन्य शब्द के बारे में कहा गया हो। चाहे इसकी खोज के बारे में, चाहे इसकी आकृति के बारे में, चाहे इसके अर्थ को लेकर, चाहे इसकी उपयोगिता के संदर्भ में, इतनी जानकारी उपलब्ध है, जिस पर पूरा ग्रंथ बन सकता है। वस्तुत: ओम् के बारे में जितना कुछ जानें, वह अधूरा ही रहेगा। मेरी तो धारणा यह है कि ओम् के बारे में अभी और खोज होनी बाकी है। अभी और नए अनुभव सामने आ सकते हैं।
इस सिलसिले में मुझे स्वर्गीय श्री रामसुखदास जी महाराज की बात याद आती है, जो कि उन्होंने अजमेर के सुभाष उद्यान में श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कही थी। उन्होंने कहा था कि गीता पर उन्होंने अनेक बार प्रवचन किए हैं, गीता को बहुत कुछ जाना है, मगर जब भी वे प्रवचन करते हैं तो हर बार नए अर्थ निकल कर आते हैं। ऐसा लगता है कि हर बार कुछ छूट जाता है कहने से। इसे मैं ओम् के संदर्भ में लेता हूं।
हर बार नया अनुभव होने की बड़ी वजह है। इस दुनिया में हर व्यक्ति अनूठा है, हर आदमी अलग है, थोड़ी बहुत शक्ल मिल सकती है, मगर फिर भी यह पक्का है कि किसी भी व्यक्ति की हूबहू कॉपी असंभव है। इसी यूनिकनेस के कारण ही तो अंगूठे की निशानी को व्यक्ति की इकलौती पहचान माना गया, जिसका कि उपयोग आधार कार्ड में किया जाता है। ये तो हुई शक्ल की बात। अंदर से भी हर शख्स की अनुभूति अलग होती है। जितने भी लोगों ने ओम् को जाना है और व्यक्त किया है, बाद में जानने वालों की अनुभूति उनसे अलग ही होगी। यूनिकनेस के कारण। इसी कारण ओम् अनंत है, अनादि है।
खैर, मैं मुद्दे पर आता हूं। मैने जितना जाना, समझा, उसकी बात करता हूं। अव्वल तो ब्रह्मांड में सतत गूंज रही ओम् की ध्वनि का उच्चारण करना हमारे स्वर यंत्र के बस की बात नहीं। अलबत्ता वाद्य यंत्रों से जरूर उससे मिलती-जुलती ध्वनि उत्पन्न की जा सकती है। आप स्वयं भी इसे अनुभव कर सकते हैं। कभी निर्जन स्थान पर एकांत में अंगूठों से दोनों कान बंद कर लीजिए। आपको भिन्न-भिन्न प्रकार की ध्वनियां सुनाई देंगी, जो कि हमारे मस्तिष्क में पहले से संग्रहित हैं। कुछ अभ्यास के बाद गहरे एकाग्र चित्त होने पर आपको ओम् की ध्वनि सुनाई देगी। यही अनहद नाद है। प्रयास करके देखना, आप ठीक उसी प्रकार की ध्वनि का उच्चारण नहीं कर पाएंगे। ठीक वैसी ही ध्वनि पूरे ब्रह्मांड में गूंज रही है। उसकी अनुभूति की जा चुकी है। नासा ने तो उसे रिकार्ड तक किया है। वैसे तो उस ध्वनि को सुनने और उस पर सतत एकाग्रता से आप ध्यान में प्रवेश कर जाएंगे। जिनके लिए यह थोड़ा कठिन है, वे ध्यान करने के लिए स्वयं अपने स्वर यंत्र से उच्चारण करके ब्रह्मांड की ध्वनि से मेल करने की कोशिश कर सकते हैं। एक स्थिति के बाद मुंह से उच्चारण तो बंद हो जाएगा और ब्रह्मांड की ध्वनि ही सुनाई देने लगेगी। इस अवस्था में भय उत्पन्न होने की पूरी संभावना है, क्योंकि जब हम अपने में स्थित हो जाते हैं तो पूरी तरह से अकेले हो जाते हैं। यह अकेलापन भयभीत कर सकता है, क्योंकि हमारा आधार खो जाता है। हम सहारे में जीने के आदी हैं, इस कारण जैसे ही स्वच्छंता की स्थिति आती हो तो डर पैदा हो सकता है।
वैसे भी हम सब जानते हैं कि अकेलेपन में अमूमन हमें डर लगता है। आपने खुद अनुभव किया होगा कि रात के समय यदि हम सन्नाटे से गुजरते हैं तो अकेलापन दूर करने के लिए या तो किसी देवी-देवता के नाम का उच्चारण करते हैं या फिर कोई गाना गुनगुनाते हैं। वह गुनगुनाहट ऐसा महसूस करवाती है, मानो हमारे साथ कोई है, हम अकेले नहीं हैं। इसे समझिये। यह अकेलापन तो भौतिक मात्र है, जो डर पैदा करता है। जरा सोचिए, ध्यान के दौरान का अकेलापन कितना भयभीत कर सकता है। उसमें तो खुद के खो जाने का अंदेशा लग सकता है। मैं स्वयं उस डर से गुजरा हूं। कुछ और अनुभूतियां भी हुई हैं, जिन्हें शब्दों में अभिव्यक्त करना कठिन है। कभी संभव हुआ तो जरूर करूंगा।
फिर मुद्दे पर आते हैं। जानकरों का मानना है कि ओम् पर ध्यान केन्द्रित होने के साथ ही हम भीतर से पूरी तरह से खाली हो जाते हैं। उस खाली स्थान को भरने के लिए ब्रह्मांड में विचरण कर रही नकारात्मक शक्तियां दौड़ कर हमारे पास आ सकती हैं। परिणामस्वरूप नुकसान भी हो सकता है। कल्पनातीत अनुभूतियां हो सकती हैं। विक्षिप्तता का भी खतरा हो सकता है। अमूमन नकारात्मक शक्तियों को रोकने अथवा उनसे बचने की हमारी तैयारी नहीं होती। कदाचित किसी योगी के मार्गदर्शन में ध्यान करने पर कुछ सुरक्षा हो सके। यही वजह है कि अनेक विद्वान सलाह देते हैं कि अकेले ओम् पर ध्यान नहीं करना चाहिए। ओम् के साथ किसी भी मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं। ओम् का उच्चारण जहां हमें ब्रह्मांड से जोड़ता है, वहीं मंत्र सहारा बन जाता है, ब्रह्मांड की समग्र शक्ति को आत्मसात करने में। वह हमें प्रोटेक्ट करता है। मंत्र के शुरू में ओम् की ध्वनि का प्रयोजन ही ये है कि पहले हम ब्रह्मांड से कनैक्ट हों और फिर उसकी ऊर्जा मंत्र के साथ जुड़ जाए। भिन्न-भिन्न मंत्रों के भिन्न-भिन्न फल होते हैं, ये तो हम सब जानते ही हैं।
यह सब मेरे स्वाध्याय, अब तक के अनुभव और अध्ययन से संग्रहित जानकारी की निष्पत्ति है। संभव है आपकी अनुभूति कुछ और हो। मेरी अनुभूति में जब भी इजाफा होगा, आपसे फिर साझा करूंगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
इस सिलसिले में मुझे स्वर्गीय श्री रामसुखदास जी महाराज की बात याद आती है, जो कि उन्होंने अजमेर के सुभाष उद्यान में श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कही थी। उन्होंने कहा था कि गीता पर उन्होंने अनेक बार प्रवचन किए हैं, गीता को बहुत कुछ जाना है, मगर जब भी वे प्रवचन करते हैं तो हर बार नए अर्थ निकल कर आते हैं। ऐसा लगता है कि हर बार कुछ छूट जाता है कहने से। इसे मैं ओम् के संदर्भ में लेता हूं।
हर बार नया अनुभव होने की बड़ी वजह है। इस दुनिया में हर व्यक्ति अनूठा है, हर आदमी अलग है, थोड़ी बहुत शक्ल मिल सकती है, मगर फिर भी यह पक्का है कि किसी भी व्यक्ति की हूबहू कॉपी असंभव है। इसी यूनिकनेस के कारण ही तो अंगूठे की निशानी को व्यक्ति की इकलौती पहचान माना गया, जिसका कि उपयोग आधार कार्ड में किया जाता है। ये तो हुई शक्ल की बात। अंदर से भी हर शख्स की अनुभूति अलग होती है। जितने भी लोगों ने ओम् को जाना है और व्यक्त किया है, बाद में जानने वालों की अनुभूति उनसे अलग ही होगी। यूनिकनेस के कारण। इसी कारण ओम् अनंत है, अनादि है।
खैर, मैं मुद्दे पर आता हूं। मैने जितना जाना, समझा, उसकी बात करता हूं। अव्वल तो ब्रह्मांड में सतत गूंज रही ओम् की ध्वनि का उच्चारण करना हमारे स्वर यंत्र के बस की बात नहीं। अलबत्ता वाद्य यंत्रों से जरूर उससे मिलती-जुलती ध्वनि उत्पन्न की जा सकती है। आप स्वयं भी इसे अनुभव कर सकते हैं। कभी निर्जन स्थान पर एकांत में अंगूठों से दोनों कान बंद कर लीजिए। आपको भिन्न-भिन्न प्रकार की ध्वनियां सुनाई देंगी, जो कि हमारे मस्तिष्क में पहले से संग्रहित हैं। कुछ अभ्यास के बाद गहरे एकाग्र चित्त होने पर आपको ओम् की ध्वनि सुनाई देगी। यही अनहद नाद है। प्रयास करके देखना, आप ठीक उसी प्रकार की ध्वनि का उच्चारण नहीं कर पाएंगे। ठीक वैसी ही ध्वनि पूरे ब्रह्मांड में गूंज रही है। उसकी अनुभूति की जा चुकी है। नासा ने तो उसे रिकार्ड तक किया है। वैसे तो उस ध्वनि को सुनने और उस पर सतत एकाग्रता से आप ध्यान में प्रवेश कर जाएंगे। जिनके लिए यह थोड़ा कठिन है, वे ध्यान करने के लिए स्वयं अपने स्वर यंत्र से उच्चारण करके ब्रह्मांड की ध्वनि से मेल करने की कोशिश कर सकते हैं। एक स्थिति के बाद मुंह से उच्चारण तो बंद हो जाएगा और ब्रह्मांड की ध्वनि ही सुनाई देने लगेगी। इस अवस्था में भय उत्पन्न होने की पूरी संभावना है, क्योंकि जब हम अपने में स्थित हो जाते हैं तो पूरी तरह से अकेले हो जाते हैं। यह अकेलापन भयभीत कर सकता है, क्योंकि हमारा आधार खो जाता है। हम सहारे में जीने के आदी हैं, इस कारण जैसे ही स्वच्छंता की स्थिति आती हो तो डर पैदा हो सकता है।
वैसे भी हम सब जानते हैं कि अकेलेपन में अमूमन हमें डर लगता है। आपने खुद अनुभव किया होगा कि रात के समय यदि हम सन्नाटे से गुजरते हैं तो अकेलापन दूर करने के लिए या तो किसी देवी-देवता के नाम का उच्चारण करते हैं या फिर कोई गाना गुनगुनाते हैं। वह गुनगुनाहट ऐसा महसूस करवाती है, मानो हमारे साथ कोई है, हम अकेले नहीं हैं। इसे समझिये। यह अकेलापन तो भौतिक मात्र है, जो डर पैदा करता है। जरा सोचिए, ध्यान के दौरान का अकेलापन कितना भयभीत कर सकता है। उसमें तो खुद के खो जाने का अंदेशा लग सकता है। मैं स्वयं उस डर से गुजरा हूं। कुछ और अनुभूतियां भी हुई हैं, जिन्हें शब्दों में अभिव्यक्त करना कठिन है। कभी संभव हुआ तो जरूर करूंगा।
फिर मुद्दे पर आते हैं। जानकरों का मानना है कि ओम् पर ध्यान केन्द्रित होने के साथ ही हम भीतर से पूरी तरह से खाली हो जाते हैं। उस खाली स्थान को भरने के लिए ब्रह्मांड में विचरण कर रही नकारात्मक शक्तियां दौड़ कर हमारे पास आ सकती हैं। परिणामस्वरूप नुकसान भी हो सकता है। कल्पनातीत अनुभूतियां हो सकती हैं। विक्षिप्तता का भी खतरा हो सकता है। अमूमन नकारात्मक शक्तियों को रोकने अथवा उनसे बचने की हमारी तैयारी नहीं होती। कदाचित किसी योगी के मार्गदर्शन में ध्यान करने पर कुछ सुरक्षा हो सके। यही वजह है कि अनेक विद्वान सलाह देते हैं कि अकेले ओम् पर ध्यान नहीं करना चाहिए। ओम् के साथ किसी भी मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं। ओम् का उच्चारण जहां हमें ब्रह्मांड से जोड़ता है, वहीं मंत्र सहारा बन जाता है, ब्रह्मांड की समग्र शक्ति को आत्मसात करने में। वह हमें प्रोटेक्ट करता है। मंत्र के शुरू में ओम् की ध्वनि का प्रयोजन ही ये है कि पहले हम ब्रह्मांड से कनैक्ट हों और फिर उसकी ऊर्जा मंत्र के साथ जुड़ जाए। भिन्न-भिन्न मंत्रों के भिन्न-भिन्न फल होते हैं, ये तो हम सब जानते ही हैं।
यह सब मेरे स्वाध्याय, अब तक के अनुभव और अध्ययन से संग्रहित जानकारी की निष्पत्ति है। संभव है आपकी अनुभूति कुछ और हो। मेरी अनुभूति में जब भी इजाफा होगा, आपसे फिर साझा करूंगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
सर गजब लिखते हो।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंआप का लेख लाजवाब है।
जवाब देंहटाएंमैं यही कहूंगा ॐ का उच्चारण कीजिये, आप की नाभि से सीधे टच करेगा, हम सब के शरीर की रचना इसी नाभि से हुई है, यही ॐ का उच्चारण पूरे शरीर को शुद्ध और स्वस्थ बनायेगा।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
आपका बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंआपने विषय चयन कर वही ॐ पर केंद्रित किया और कहीं भी विषयान्तर न होने दिया, यह सफलता इपकी लेखनी की है और इसके लिए आपको बधाई । अब बात विषय से बाहर की, कभी इस पर भी लिखिए कि ॐ का उच्चारण हर मंत्र में क्यों किया जाता है, अधिकांश मंत्रों की शुरुआत भी ॐ से क्यों होती है। हालांकि इस पर लिखा जा चुका है लेकिन आपकी लेखनी से इस विषय को नए आयाम मिलने का विश्वास है ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंतेजवानी गिरधर जी,आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, मेरे गुरुजी स्व0श्री नारायण दत्त जी श्रीमाली थे, वे 2007 में स्वर्गवासी हुये, उन्होंने भी मुझे एक बार इस संबंध में बताया था, आज आपकी बात पढ़ कर उनकी बात याद आ गई।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया। सवर्गीय श्री श्रीमाली जी को मैने भी बहुत अध्ययन किया है।
जवाब देंहटाएंStrange "water hack" burns 2lbs overnight
जवाब देंहटाएंAt least 160 000 women and men are using a easy and SECRET "water hack" to burn 2lbs each and every night as they sleep.
It's proven and it works on everybody.
Just follow these easy step:
1) Take a clear glass and fill it up with water half the way
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