गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

ईश्वर वाकई अव्याख्य है

पूरी कायनात सुव्यवस्थित तरीके से चल रही है। निश्चित रूप से यह कहीं न कहीं से संचालित हो रही है। कोई न कोई तो इसे चला ही रहा है। वह भले ही हमारी तरह कोई मानव या महामानव न हो, मगर एक केन्द्र बिंदु जरूर है, एक पावर सेंटर जरूर है, जिसके इर्द-गिर्द पूरा संसार फैला हुआ है, जहां से पूरा सिस्टम गवर्न हो रहा है। उसी को हम ईश्वर या खुदा कहते हैं। जिन भी ऋषियों-मुनियों, साधु-संन्यासियों, विद्वानों व दार्शनिकों ने स्वयं को जाना है और उस परम सत्ता को जानने की कोशिश की है, वे उसे अभिव्यक्त करने की कोशिश करते रहे हैं। असल में अभिव्यक्ति हमारा मौलिक स्वभाव है। हम जो कुछ भी अनुभव करते हैं, उसे अभिव्यक्त करने की कोशिश करते हैं। उसे अन्य को शेयर करना चाहते हैं। उसकी व्याख्या करने का प्रयास करते हैं। ईश्वर को भी अभिव्यक्त करने के भरपूर प्रयास हुए हैं। मगर उसे पूरा अभिव्यक्त नहीं किया जा सका है। वेद भी उसकी व्याख्या करते करते आखिर में नेति-नेति कह कर हाथ खड़े कर देते हैं। यानि कि वह अव्याख्य है। तभी तो कहा है कि हरि अनंत, हरि कथा अनंता। अंत ही नहीं है। न आदि है, न अंत है।
वह वाकई अव्याख्य है। संभव ही नहीं है उसकी व्याख्या करना। जरा सोचिए जिस हवा के स्पर्श को हम अनुभव करते हैं, उस तक की व्याख्या नहीं कर पाते। जैसे गुड़ को चखने पर हम उसे मीठा कहते हैं। हर किसी ने उसे चखा है, इस कारण वह भी मानता है कि गुड़ मीठा है। गुड़ का जो स्वाद है, उसका नामकरण हमने मीठा कर दिया है। कुछ और नाम दे देते तो वह हो जाता। मगर यदि कोई आपसे कहे कि जरा गुड़ की मिठास की व्याख्या कीजिए कि मीठा माने क्या तो क्या हम उसे अभिव्यक्त कर सकते हैं? क्या शब्दों में बता सकते हैं? नहीं। क्योंकि मिठास अनुभव तो की जा सकती है, मगर उसकी व्याख्या संभव नहीं है। अब सोचिए कि एक भौतिक पदार्थ, जो कि दिखाई भी देता है, अपना स्वाद भी महसूस कराता है, उस तक की व्याख्या नहीं कर पाते तो भला जिसे हमने देखा नहीं, जाना नहीं, उसकी व्याख्या कैसे की जा सकती है? अगर जान भी लिया है तो भी उसे शब्दों में ठीक-ठीक नहीं बता सकते। बताने की कोशिश करेंगे तो विफल हो जाएंगे। उसकी एक वजह ये भी है कि हमने जैसा और जितना जाना, उसे यदि हमने शब्दों में पिरो भी लिया हो तो भी अन्य व्यक्ति उसे समझ नहीं पाएगा, क्योंकि उसने उसे वैसा नहीं जाना-समझा, जैसा कि हमने जाना-समझा है। हां, इशारा मात्र हो सकता है। जैसे सभी को दिखाई देने वाले चांद को हम हाथ में पकड़ कर यह नहीं बता सकते कि यह रहा चांद। हम उस ओर इशारा मात्र कर पाते हैं। अर्थात ईश्वर की जितनी व्याख्याएं हैं, वे सब की सब इशारा मात्र हैं। संपूर्ण नहीं हैं।
इस सिलसिले में मुझे ओशा के प्रवचन में कहे गए एक प्रसंग का ख्याल आता है। हमें पता है कि महाकवि रविन्द्र नाथ ठाकुर ने गीतांजलि लिखी। ईश्वर की व्याख्या करने वाली इस पुस्तक पर उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला था। ओशो बताते हैं कि रविन्द्र नाथ रोजना जब मॉर्निंग वाक पर निकलते थे तो गली के नुक्कड पर अपने घर के बाहर बैठा एक बुजुर्ग उन्हें रोकता और आंख में आंख डाल कर पूछता कि क्या आपने ईश्वर को देखा है, ईश्वर को अनुभव किया है, आपने तो गीतांजलि लिखी है, इस पर वे उसका कोई जवाब नहीं दे पाते थे। हो सकता है कि वे जवाब दे भी पाते होंगे तो भी उस बजुर्ग को नहीं बताते हों कि उसे समझ में नहीं आएगा।
खैर, एक दिन जब रविन्द्र नाथ समुद्र किनारे सैर करने गए तो क्षितिज पर उगते सूर्य की लालिमा देख कर, लहरों पर अठखेलियां करती हवा की सरसराहट व पक्षियों की चहचहाहट सुन कर उस मंजर में यकायक स्तब्ध रह गए। ठहर गए। अचानक उन्हें ईश्वर का साक्षात्कार हो गया। जब वे सैर करके लोट रहे थे तो उनकी मदमस्त चाल और आंखों की चमक देख कर बुजुर्ग जान गया कि आज जरूर रविन्द्र नाथ ईश्वर का साक्षात्कार करके लौट रहे हैं। आज उस बुजुर्ग की हिम्मत नहीं हुई कि वह उनकी आंखों में आंखें गढ़ा कर ये पूछ सके कि क्या तुमने ईश्वर देखा है। वह बुजुर्ग दौड़ कर घर के अंदर भाग गया।
इस प्रसंग का अर्थ ये है कि जब तक रविन्द्र नाथ ने गीतांजलि लिखी, तब तक उनका ईश्वर से साक्षात्कार नहीं हो पाया था। भले ही ईश्वर को उन्होंने बहुत कुछ जान लिया होगा और उसे अपनी रचना में अभिव्यक्त किया होगा, मगर पूरा तो बाद में ही जाना। बताते हैं कि ईश्वर से साक्षात्कार के बाद उनकी स्थिति विक्षिप्त सी हो गई थी। वे पेड़ों से लिपट कर रोया करते थे। हर जगह उन्हें ईश्वर की दिखाई देने लगा। यानि वे ईश्वरमय हो गए, मगर अपनी उस अवस्था के बारे में बताने के लायक नहीं रहे।
इस प्रसंग के मायने ये हैं कि ईश्वर से साक्षात्कार से पहले की सारी व्याख्या अधूरी है। जिस दिन जान लिया, उस दिन उसकी व्याख्या करना असंभव हो गया। इसे कहते हैं गूंगे का गुड़, यानि कि वह गुड़ की मिठास का आनंद तो ले रहा है, मगर बता नहीं सकता कि गुड़ कैसा है?

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

1 टिप्पणी:

  1. In this fashion my partner Wesley Virgin's biography launches in this SHOCKING and controversial video.

    Wesley was in the military-and shortly after leaving-he unveiled hidden, "MIND CONTROL" tactics that the CIA and others used to get anything they want.

    These are the exact same tactics lots of famous people (especially those who "became famous out of nothing") and elite business people used to become wealthy and successful.

    You've heard that you use less than 10% of your brain.

    Really, that's because the majority of your brain's power is UNTAPPED.

    Maybe this thought has even occurred INSIDE your very own brain... as it did in my good friend Wesley Virgin's brain around seven years back, while riding an unregistered, beat-up trash bucket of a car without a license and with $3 in his bank account.

    "I'm very frustrated with living paycheck to paycheck! Why can't I become successful?"

    You've taken part in those types of conversations, ain't it right?

    Your success story is going to be written. You need to start believing in YOURSELF.

    Take Action Now!

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