विज्ञान मानता है कि कोई भी ध्वनि नष्ट नहीं होती। वह ब्रह्मांड में कहीं न कहीं विचरण करती रहती है। उसी सिद्धांत पर ही तो रेडियो का अविष्कार हुआ। कोई ध्वनि अंतरिक्ष में छोड़ी गई अर्थात ब्रॉडकास्ट की गई। फिर उसी को कैच करने की तकनीक रेडियो या ट्रांसमीटर में काम में ली गई। इसी प्रकार दृश्यों का, वीडियो का प्रयोग करके टेलीविजन बनाया गया। यह सब हमारे सामने हैं। कोई कपोल कल्पित बात नहीं है। दुनिया में कहीं भी, हजारों किलोमीटर दूर क्रिकेट मैच हो रहा होता है और हम उसे उसी समय अपने टेलिविजन पर देख रहे होते हैं। क्या यह किसी चमत्कार से कम है? मगर चूंकि इसे विज्ञान से संभव कर दिखाया है, इस कारण हमें अचरज नहीं होता।
महाभारत में भी इसी का जिक्र है कि संजय ने दिव्य दृष्टि से युद्ध को देख कर उसका पूरा वृतांत धृष्टराष्ट्र को सुनाया था। बेशक, उस वक्त टेलिविजन का अविष्कार नहीं हुआ था, मगर दूरस्थ घटनाक्रम को देखने की क्षमता का ही संजय ने उपयोग किया, जो कि उनको वरदान के रूप में मिली थी। यह बात दीगर है कि वह विधा कुछ और थी, मगर इसका अर्थ है कि मौलिक रूप से एक स्थान के दृश्य या घटनाक्रम को दूसरे स्थान पर देख पाना संभव था।
अब असल मुद्दे पर आते हैं। ओशो का ख्याल था कि ध्वनि के अंतरिक्ष में सदैव मौजूद रहने के सिद्धांत के आधार पर महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण व अर्जुन के बीच जो संवाद हुआ, उसकी ध्वनि भी अंतरिक्ष में कहीं न कहीं विचरण कर रही होगी। बस जरूरत है तो उसे कैच करने की। सर्वविदित है कि गीता में श्रीकृष्ण व अर्जुन के बीच जो संवाद हुआ, वही हूबहू गीता में बताया गया है। गीता लिखित पुस्तक नहीं है, बल्कि उसमें संवाद को लिपिबद्ध किया गया है। बताया जाता है कि ओशो ने कुछ वैज्ञानिकों की टीम को उस संवाद को रिकॉर्ड करने का सौंपा था। वे वर्षों पुरानी ध्वनि की फ्रिक्वेंसी को नाप कर उसे कैच करने की कोशिश में जुटे थे। ओशो के निधन के बाद उस प्रयास का क्या हुआ, कुछ भी जानकारी नहीं। उनके बाद क्या अब भी उस पर कोई काम दुनिया में कहीं हो रहा है, इसकी भी जानकारी नहीं है। अगर कभी ये संभव हो पाया तो कितना सुखद व आश्चर्यजनक होगा। तब गीता पढ़ी नहीं जाएगी, बल्कि सुनी जाएगी, श्रीकृष्ण व अर्जुन की ऑरीजनल आवाज में। सुधि पाठकों से निवेदन है कि अगर आपके पास इस सिलसिले में कोई जानकारी है तो कृपया उसे शेयर करें, ताकि अन्य सभी पाठक उससे अवगत हो सकें।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
Long back German people claimed that the voice of geeta can be recaptured
जवाब देंहटाएंyogendra singh yadav