मंगलवार, 19 जनवरी 2021

इस्लाम में भी है भूतों से बचाव का उपाय


जिस तरह हिंदू मतावलंबियों में भूत-पिशाच इत्यादि से बचाव के लिए हनुमान चालीसा व रामचरित मानस के सुंदर कांड का पाठ करने की परंपरा है, उसी प्रकार इस्लाम को मानने वाले भी भूत-प्रेत को दूर भगाने का उपाय करते हैं। कदाचित सभी मुस्लिमों को उस उपाय के बारे में जानकारी होगी क्योंकि मदरसे की शुरुआती तालीम में ही इसका रियाज करवाया जाता है, मगर शायद हिंदुओं को इसकी जानकारी न हो।

सर्वविदित है कि जब भी कोई शुभ काम करते हैं तो उसमें बाधा न आने के लिए कई लोग सुंदरकांड का पाठ करवाते हैं। इसी प्रकार जब भी किसी स्थान पर भय प्रतीत हो तो हनुमान चालीसा का पाठ करने की सलाह दी जाती है, ताकि वहां मौजूद दुष्टात्माएं भाग जाएं। हनुमान चालीसा में ही लिखा है कि भूत-पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे। स्वाभाविक रूप से यह आम जिज्ञासा होती होगी कि मुस्लिम ऐसी स्थिति में क्या करते हैं?

इस्लाम के जानकारों का कहना है कि मखलूकात आपको कोई नुकसान न पहुंचा पाएं, इसके लिए कुरान की एक आयत का तीन बार पाठ करना चाहिए। उस आयत का नाम है आयतुल कुर्सी। उसमें दस जुमले हैं। इस्लाम के जानकार बताते हैं कि आयतुल कुर्सी कुरान की सब से अज़ीम तरीन आयत है। हदीस में रसूल स.अ. ने इसको तमाम आयात से अफजल फऱमाया है। हजऱत अबू हुरैरा र.अ. फरमाते हैं कि रसूल स.अ. ने फऱमाया - सूरह बकरा में एक आयत है, जो तमाम कुरान की आयातों की सरदार है, जिस घर में पढ़ी जाये, शैतान वहां से निकल जाता है।

स्वाभाविक रूप से वह आयत मूलत: अरबी लिपी में है। पेश है हिंदी में उसका हूबहू उच्चारण:-

1. अल्लाहु ला इलाहा इल्लाहू

2. अल हय्युल क़य्यूम

3. ला तअ खुज़ुहू सिनतुव वला नौम

4. लहू मा फिस सामावाति वमा फि़ल अजऱ्

5. मन ज़ल लज़ी यश फ़ऊ इन्दहू इल्ला बि इजनिह

6. यअलमु मा बैना अयदी हिम वमा खल्फहुम

7. वला युहीतूना बिशय इम मिन इल्मिही इल्ला बिमा शा..अ

8. वसिअ कुरसिय्यु हुस समावति वल अजऱ्

9. वला यऊ दुहू हिफ्ज़ुहुमा

10. वहुवल अलिय्युल अज़ीम


उसका तर्जुमा इस प्रकार है:-

1. अल्लाह जिसके सिवा कोई माबूद नहीं।

2. वही हमेशा जिंदा और बाकी रहने वाला है।

3. न उसको ऊंघ आती है न नींद।

4. जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सब उसी का है।

5. कौन है जो बगैर उसकी इजाज़त के उसकी सिफारिश कर सके।

6. वो उसे भी जनता है जो मखलूकात के सामने है और उसे भी जो उन से ओझल है।

7. बन्दे उसके इल्म का जऱा भी इहाता नहीं कर सकते सिवाए उन बातों के इल्म के जो खुद अल्लाह देना चाहे।

8. उसकी ( हुकूमत ) की कुर्सी ज़मीन और असमान को घेरे हुए है।

9. ज़मीनों आसमान की हिफाज़त उसपर दुशवार नहीं।

10. वह बहुत बलंद और अज़ीम ज़ात है।

असल में इस आयत की जानकारी मुझे यूट्यूब पर हॉरर शो चलाने वाले चंद व्लागर के एपीसोड से मिली। इनमें ऊपरी हवाओं से ग्रसित हवेलियों या स्थानों की छानबीन के दौरान वे इस आयत का निरंतर पाठ करते हैं। उनका दावा है कि इससे वे मखलूकात से बचे रहते हैं। इस बारे में विस्तार से जानकारी मुझे मेरी एक परिचित विदूषी डॉ. फरगाना से हासिल हुई। वे अध्यात्म की एक अलग ही दुनिया में विचरण करती हैं। जानकारी काफी दिलचस्प लगी, लिहाजा आप सुधि पाठकों के साथ साझा कर रहा हूं। 

एक बेहद रोचक जानकारी ये भी हुई कि जब व्लॉगर किसी अभिशप्त स्थान पर विजिट करते हैं तो बाकायदा उन मखलूकात से अल्लाह का हवाला देते हुए आग्रह करते हैं कि उन्हें बिना कोई नुकसान पहुंचाते हुए दौरा करने दें। बड़े अदब के साथ ये भी विनती करती हैं कि चूंकि आप अदृश्य हैं, लिहाजा अपने बच्चों को रास्ते से हटा लें, ताकि उनको चोट न लगे। 

इस सिलसिले में आपको जानकारी होगी कि जब भी हम घर से बाहर किसी खुले स्थान पर लघुशंका करते हैं तो कुछ आवाज करते हैं अथवा खंखारते हैं या हनुमान जी का स्मरण करते हैं, ताकि अगर वहां कोई भूत इत्यादि हो तो वह वहां से हट जाए। विशेष रूप से इस बात का ख्याल रखते हैं कि किसी पेड़ या झाड़ी के नीचे लघुशंका नहीं करते, क्योंकि वहां भूत-प्रेत आदि के वास की संभावना होती है।

-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.com

सोमवार, 4 जनवरी 2021

क्या शुभ मुहूर्त बेमानी है?


भारतीय संस्कृति में सभी कार्य शुभ मुहूर्त में ही करने की परंपरा है। ऐसा कार्य की सफलता के लिए किया जाता है। इसके प्रति लोगों में गहरी आस्था है। विवाह, भवन निर्माण, दुकान के उद्घाटन इत्यादि बड़े कार्यों में तो शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखा ही जाता है, कई लोग छोटे-छोटे कार्य भी चोघडिय़ा देख कर करते हैं। यह तो हुआ तस्वीर का एक रुख। दूसरा रुख ये है कि शुभ मुहूर्त में काम आरंभ करने पर भी कई बार असफलता हाथ लगती है। यह सर्वविदित है कि लगभग हर विवाह शुभ मुहूर्त में ही होता है, कुंडलियों का मिलान किया जाता है, बावजूद इसके गृह क्लेश और संबंध विच्छेद की घटनाएं होती हैं। शुभ मुहूर्त में दुकान का आरंभ करने पर भी कई बार दुकान नहीं चलती या फिर घाटा होने पर बंद करनी पड़ती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या शुभ मुहूर्त बेमानी है?

किसी सज्जन ने हाल ही एक पोस्ट सोशल मीडिया पर डाली, जिसका सारांश आपकी नजर पेश है:-

सीता विवाह और राम का राज्याभिषेक दोनों शुभ मुहूर्त में किए गए, फिर भी न वैवाहिक जीवन सफल हुआ, न ही राज्याभिषेक। जब मुनि वसिष्ठ से इसका जवाब मांगा गया तो उन्होंने साफ कह दिया-

सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहूं मुनिनाथ। 

लाभ हानि, जीवन मरण, यश-अपयश विधि हाथ।

इसका तात्पर्य ये है कि विधि ने जो निर्धारित कर रखा है, वही होता है, चाहे आप कोई भी कार्य शुभ मुहूर्त में आरंभ करें। 

विशेष रूप से मरण के मामले में हमारा कोई दखल नहीं। वह अवश्यंभावी है। उसे टाला नहीं जा सकता। बेशक चिरंजीवी होने का वरदान तो होता है, मगर कभी न मरने का वरदान कभी किसी को नहीं मिला। यदि कोई मृत्यु से बचने के अनेक प्रकार के वरदान किसी के पास थे तो भी विधि ने उसकी मृत्यु का युक्तिसंगत रास्ता निकाल दिया। पितामह भीष्म को भले ही इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, मगर उन्हें भी एक दिन मरना था। बस फर्क इतना था कि वे अपनी मृत्यु को टाल सकते है। 

उस पोस्ट में यह भी लिखा है कि भगवान राम व भगवान कृष्ण को विधि अनुसार ही फल भोगने पड़े। इसी प्रकार शिव जी सती की मृत्यु को नहीं टाल सके, जबकि महामृत्युंजय मंत्र उन्हीं का आह्वान करता है। इसी प्रकार रामकृष्ण परमहंस भी अपने कैंसर को न टाल सके। न साईं बाबा अपनी मृत्यु को और न ईसा मसीह अपने पीड़ादायक मृत्यु को। रावण व कंस बहुत शक्तिसंपन्न थे, मगर उनका अंत भी विधि ने तय कर रखा था।

प्रश्न ये उठता है कि जब सब कुछ विधि के ही हाथ है तो मुहूर्त निकलवाने की जरूरत क्या है?

ऐसा प्रतीत होता है कि विधि का विधान तो काम करता ही है, मगर किसी भी कार्य की सफलता में कई फैक्टर काम करते हैं। वस्तुत: विधि अपनी ओर से कुछ भी निर्धारित नहीं करती। वह हमारे कर्मों, काम के प्रति समर्पण, लगन, मेहनत आदि से ही गणना कर निर्धारण करती है। कदाचित पूर्व जन्म के कर्म व संस्कार भी भूमिका अदा करते हैं। शुभ समय में काम आरंभ करना भी एक फैक्टर है, मगर अकेले इससे काम नहीं चलता, अन्य फैक्टर भी काम करते हैं। इसी कारण शुभ मुहूर्त में कार्यारंभ करने पर भी कई बार असफलता हाथ लगती है। 

एक और बात ये भी लगती है कि जीवन के सोलह संस्कार व अन्य बड़े काम पूर्व कर्मों के आधार पर पहले से निर्धारित होते हैं, मगर दैनिक दिनचर्या से जुड़े छोटे-मोटे कार्य में शुभ मुहूर्त अपनी भूमिका निभाता है। इसका आप स्पष्ट अनुभव भी कर सकते हैं। चूंकि शुभ मुहूर्त का अस्तित्व माना गया है, इस कारण यह जानते हुए भी कि होगा वही जो मंजूरे खुदा होगा, हम शुभ मुहूर्त निकलवाते हैं। और सफलता नहीं मिलने पर हम यह मान कर अपने आप को संतुष्ट करते हैं कि हमारी किस्मत में नहीं था, या फिर हमसे कोई त्रुटि हो गई होगी।

-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.com

शरीर के सर्वांग विकास के लिए षट् रस जरूरी

भारतीय भोजन की विशेषता यह है कि इसमें विभिन्न रसों का समावेश होता है, जिन्हें मिलाकर संपूर्ण भोजन तैयार किया जाता है। भारतीय खाने में शट् रस...