शनिवार, 30 नवंबर 2019

गांधीजी के दर्शन में कीजिए सकारात्मकता के दर्शन

विद्वान हमें जीवन में सकारात्मक बने रहने की सीख देते हैं। वे कहते हैं कि कितना भी कष्ट हो, कैसी भी परेशानी हो, धैर्य से उसे सहन करें और सकारात्मकता बरकरार रखें। बुराई में भी उसके अच्छे पक्ष को देखें। ऐसा कहना बहुत आसान है, मगर उसे दैनंदिन जीवन में अपनाना जरा कठिन है। उसकी वजह ये है कि सैद्धांतिक रूप में हमें यह उपदेश लगता तो सही है, मगर जैसे ही परेशानी आती है, हम उपदेश भूल कर उसी परेशानी पर केन्द्रित हो जाते है। उपदेश को हम सुनते तो हैं, मगर गुनते नहीं हैं। जब तक वह हृदयंगम नहीं होगा, एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देने के समान ही रहेगा।
वस्तुत: उसे अपने जीवन में उतारने की हमारी मानसिक तैयारी नहीं होती। मानसिक तैयारी के लिए मन को समझाना बहुत जरूरी है। मन की बड़ी महत्ता है। मन कितना महत्वपूर्ण है, यह इस उक्ति से समझ में आएगा कि मन के हारे जीत है, मन के जीते जीत। यानि कि जैसा मन होगा, वैसा ही हमारा चिंतन होगा, वैसी ही हमारी सोच होगी और जाहिर तौर पर हमारा कृत्य के भी उसी के अनुरूप होगा। तभी जीत हासिल होगी। एक और उक्ति आपने सुनी होगी- जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। इसका भी भाव कमोबेश यही है कि जैसा हमारा दर्शन होगा, जैसी हमारी सोच होगी, वैसी ही सृष्टि हमारे इर्द-गिर्द निर्मित हो जाएगी।
खैर, बात सकात्मकता की। यूं तो इसके अनेक उदाहरण हैं, जैसे आधा भरा व आधा खाली गिलास, मगर जो उदाहरण मुझे सर्वाधिक प्रिय है, वह आपसे साझा करता हूं। किस्सा यूं है- गांधीजी के आश्रम में नियमित रूप से आने वाला एक साधक प्रतिदिन शाम को शराब की दुकान पर जा कर शराब पीता था। एक बार आश्रम के अन्य साधकों ने उसे शराब की दुकान पर देख लिया। उन्होंने इसकी शिकायत गांधीजी से की कि हमारे आश्रम का एक साधक शराब पीता है। वह आश्रम में आ कर आपके उपदेश तो सुनता है, मगर उस पर उसका कोई प्रभाव क्यों नहीं पड़ रहा? इसके अतिरिक्त हमारे आश्रम के साधक के शराब की दुकान पर जाने से आश्रम की बदनामी भी होती है। लोग क्या कहेंगे? गांधीजी का शिष्य शराबी है? गांधीजी ने धैर्य से उनकी बात सुनी और कहा कि यह तो बहुत अच्छी बात है। आप यह क्यों सोचते हो कि हमारे आश्रम का साधक शराब पीता है, ये क्यों नहीं सोचते कि एक शराबी हमारे आश्रम में आता है। इसका अर्थ ये है कि भले ही वह शराबी है, मगर फिर भी आश्रम में आता है, अर्थात उसमें सुधार की ललक है, सुधार की संभावना है। गांधीजी का यह जवाब सकारात्मक सोच का सटीक उदाहरण है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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