गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

बिच्छू ने डंक मारा, मगर जहर का असर नहीं हुआ


दोस्तो, नमस्कार। किसी को बिच्छु काटे और उस पर उसके जहर का असर न पडे। क्या ऐसा संभव है? बिलकुल संभव है। मैं स्वयं इस अनुभव से गुजरा हूं। हुआ यूं कि एक बार दरवाजे के पीछे टंगी षर्ट को उतार कर जैसे ही मैने उसे पहला, आस्तीन में छिपे बिच्छू ने डंक मार दिया। बहुत तेज जलन हुई। लेकिन मेरी माताजी ने कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है। वो इसलिए कि मैं जब उनके गर्भ में था तो उनको भी बिच्छू ने डंक मार दिया था। उन्होंने किसी ओझा से डंक का जहर समाप्त करवाया था। तब उन्हें किसी जानकार ने बताया कि आपके पेट में पल रहे बच्चे को अगर बिच्छू डंक मारेगा तो उस पर उसके जहर का असर नहीं होगा। हुआ भी यही। मै एक ओझा के पास गया और झाडा लगाने को कहा। उन्होंने बताया कि आप पर तो जहर का असर ही नहीं हुआ है। इसलिए झाडे की जरूरत नहीं है। है न रोचक घटना। माताजी ने यह भी बताया कि इसी प्रकार गर्भवती को सांप अथवा किसी अन्य जहरीले जीव ने काटा है तो उसके बच्चे पर जहर का असर नहीं होगा।


vhttps://youtu.be/eZZX1I45xs4

दर्जन में गिनती क्यों किया करते हैं?

दोस्तो, नमस्कार। हम सब जानते हैं कि अनेक वस्तएं दर्जन व आधा दर्जन में गिनी जाती हैं। जैसे केले, अंडर वीयर, बनियान, रूमाल, जुराब, और भी कई वस्तुएं। क्या आपको पता है कि ऐसा क्यों किया जाता है। वस्तुतः प्राचीन काल में वस्तुओं को गिनने के लिए अपने शरीर के अंगों का इस्तेमाल किया जाता था। जैसे अपनी उंगलियां। उंगलियों के जोड। यदि आप अपनी उंगलियों के जोड़ों को गिनते हैं, तो उनकी संख्या 12 है। इस प्रणाली को डुओडेसिमल सिस्टम ऑफ काउंटिंग कहा जाता है। इसी को कई वस्तुएं गिनने में इस्तेमाल किया जाने लगा। इसकी एक प्रमुख वजह ये है कि दस व पंद्रह की तुलना में बारह को समान भाग में विभाजित करना आसान है। उदाहरण के लिए, एक दर्जन को 2, 3, 4, या 6 के समूहों में विभाजित किया जा सकता है। यह व्यापारियों और ग्राहकों दोनों के लिए सुविधाजनक और व्यावहारिक है। बडी दिलचस्प बात है कि सामान्य गिनती में भी हम उंगलियों का इस्तेमाल किया करते हैं। हर उंगली के तीन भाग हैं। उन्हीं को जोड कर गिनती किया करते हैं। इसी प्रकार हर उंगली के मूल जोड से हम यह पता लगाते हैं कि कौन सा महिना कितने दिन का होगा। मूल जोड  को इकत्तीस दिन व दो जोडों के बीच को तीस दिन माना जाता है। इनको गिनते वक्त सातवें पर अर्थात जुलाई इकत्तीस दिन की और आठवें अर्थात अगस्त भी इकत्तीस दिन का होता है।


https://youtu.be/du61FrydY54


जाहि विधि राखे राम

दोस्तो, नमस्कार। जब भी हम कोई संकल्प करते हैं तो तत्काल दो या अधिक विकल्प उत्पन्न हो जाते हैं। हम अपनी पसंद के अनुसार उसमें से एक चुनते हैं और उसे पूरा करने का जतन करते हैं, लेकिन होता वह है तो प्रकृति चाहती है। वह कभी हमारे मन के अनुकूल और कभी प्रतिकूल। अनुकूल होता है तो हम प्रसन्न हो जाते हैं और जब प्रतिकूल होता है तो दुखी हो जाते हैं। विचारणीय है कि जब होना वह है तो प्रकृति चाहती है तो क्यों अपने विकल्प के लिए उर्जा व्यय करें। असल में होता ये है कि जब हम कोई विकल्प चुनते हैं और प्रकृति उसके विपरीत होती है तो एक द्ंवद्व उत्पन्न होता है। इससे न केवल हमारी उर्जा व्यर्थ जाया होती है, अपितु तनाव भी उत्पन्न होता है। अतः जैसे ही हमें यह प्रतीत हो कि प्रकृति हमारे विकल्प के अनुकूल नहीं है, या प्रकृति सहयोग नहीं कर रही तो तुरंत समर्पण कर देना ही श्रेयस्कर है। प्रकृति पर ही छोड देना चाहिए कि वह जो चाहे करे। इसी को कहते हैं-जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये। जैसे ही हम राम पर छोडते हैं, द्वंद्व खत्म हो जाता है। वैसे भी प्रकृति वह करती है, जो हमारे लिए उपयुक्त है, उचित है, चाहे बुरा या भला। उसके प्रति स्वीकार भाव होना चाहिए। प्रकृति को बेहतर पता है कि होना क्या चाहिए? भले ही वह हमें अच्छा न लगे, मगर उसी में हमारी भलाई निहित होती है। इसे यूं समझ सकते हैं। जैसे हमने कोई काम आरंभ किया और उसमें बाधा आ गई, समझ जाना चाहिए कि प्रकृति सहयोग नहीं कर रही। तो दूसरा विकल्प चुन का प्रकृति पर छोड देना चाहिए। कदाचित कुछ लोग यह सोच सकते हैं कि बाधा आने पर पुनः पुनः प्रयास करना चाहिए, यही हमें सिखाया गया है, मगर अंदर का सच यह है कि हमारे लिए ठीक नहीं है। कदाचित पुनः पुनः प्रयास करने से सफलता हासिल हो भी गई तो आप पाएंगे कि वह हमारे लिए उपयुक्त नहीं है। 


https://youtu.be/215NQQARLsY


मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

सब्जी में बाल निकलने का वहम

एक पुरानी कहावत है- वहम का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं था। ज्ञातव्य है कि हकीम लुकमान बहुत प्रसिद्ध हकीम थे, जिनके पास हर मर्ज का इलाज था। मगर बताते हैं कि वे भी वहम अर्थात भ्रांति का इलाज नहीं कर पाते थे। इस सिलसिले में मुझे एक किस्सा याद आता है। बचपन में मैं जब भी खाना खाने बैठता था तो मुझे पहले से वहम होता था कि सब्जी में बाल होगा ही। और दिलचस्प बात है कि वाकई सब्जी में से बाल निकलता ही था। और जैसे ही बाल निकलता, मैं खिन्न हो जाता था। इस पर मेरी मां कहा करती थी कि यह तुम्हारा वहम है, तुम दिल ये यह वहम निकाल दो, फिर देखो सब्जी से बाल नहीं निकलेगा। हालांकि वह वहम बहुत देर से निकला, मगर जब निकला तो पाया कि वाकई सब्जी से बाल निकलना बंद हो गया। मुझे आज तक समझ में नहीं आया कि केवल वहम मात्र से सब्जी में बाल कैसे आ जाता था? वह स्वसम्मोहित अवस्था थी या वहम करने से वाकई बाल सब्जी में आ जाता था। वैसे सब्जी अथवा रोटी में बाल आने की वजह ये होती है कि जिन महिलाओं के बाल झडते हैं, रोटी बनाते वक्त उसमें बाल गिरने की आषंका रहती है। आपने देखा होगा कि रेस्टोरेंट्स में षैफ सिर को ढक कर रखते हैं, ताकि बाल भोजन में न गिरे। इसी प्रकार रेस्टोरेंट में दीवारों पर स्लोगन लिखा होता है कि डोंट कॉंब, अर्थात यहां कंघी न कीजिए, अन्यथा भोजन में बाल गिर सकता है।

https://youtu.be/tzDR0LR9DF0

बिच्छू ने डंक मारा, मगर जहर का असर नहीं हुआ

दोस्तो, नमस्कार। किसी को बिच्छु काटे और उस पर उसके जहर का असर न पडे। क्या ऐसा संभव है? बिलकुल संभव है। मैं स्वयं इस अनुभव से गुजरा हूं। हुआ ...