मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

प्रेंक वीडियो के नाम पर परोसी जा रही है अश्लीलता

इन दिनों यूट्यूब पर प्रेंक वीडियो खूब चलन में हैं। प्रेंक का मतलब होता है शरारत या मजाक। कई लड़के-लड़कियों ने इसे धंधा बना रखा है। वे इसमें विज्ञापन डाल कर कमा रहे हैं। धंधे तक तो ठीक है, मगर इनमें से कई ने इसे अश्लीलता परोसने का जरिया बना लिया है, जिसे देख कर नए युवक-युवतियां आकर्षित होती है। कुछ ने अपने लाखों फॉलोअर्स के नाम पर ब्लैकमेलिंग का कारोबार भी कर रखा है।  

यूं प्रेंक वीडियो मनोरंजन के लिहाज से ठीक है। कोई बुराई नहीं। मगर अधिसंख्य प्रेंक वीडियो प्रेम प्रसंग, ब्रेक अप व शरीर बेचने पर बनाए जा रहे हैं। यह सच है कि ब्वॉय फ्रेंड व गर्ल फ्रेंड की कल्चर पाश्चात्य संस्कृति की देन है, जिसने हमारे महानगरीय परिवेश को बुरी तरह से प्रभावित कर रखा है। इसमें प्रेम के नाम पर शारीरिक शोषण के अलावा कुछ भी नहीं। आए दिन ब्वॉय फ्रेंड्स व गर्ल फ्रेंड्स के नए जोड़े बनते हैं, लीव इन रिलेशन तक पहुंचते हैं और बेक अप भी हो जाता है, मानो गुड्डे-गुड्डियों का खेल हो। हो सकता है कि प्रेंक वीडियो बनाने वालों का यह तर्क हो कि वे तो दर्पण की भांति हमारी संस्कृति का दिग्दर्शन मात्र करवा रहे हैं, मगर सच्चाई ये है कि यह संस्कृति अभी महानगरों तक ही सीमित है, उसे ये वीडियो के जरिए गांव-गांव तक अभी परोस रहे हैं। अर्थात इस कुसंस्कृति को गांवों तक स्वाभाविक रूप से पहुंचने में संभव है दस-बीस साल लगें, मगर ये उसे अभी से सर्व कर रहे हैं, जिसका कुप्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता। जगजाहिर है कि नए युवक-युवतियां अच्छाई की बजाय बुराई को जल्द अपनाती हैं। दिखाने को भले ही यह इस रूप में गिनाई जा रही हो कि वे तो समाज की इस बुराई को उजागर कर रहे हैं, मगर वस्तुतरू वे इसका प्रचार कर रहे हैं। कई प्रेंक तो इतने घटिया व अश्लील होते हैं कि उन्हें देख कर घिन आने लगती है। भाभी, साली, चाची व दोस्त की बीवी जैसे मर्यादित रिश्तों को इतने घटिया तरीके से पेश किया जा रहा है, मानो इन रिश्तों में अश्लीलता व यौन शोषण एक स्वाभाविक बात हो। मगर वीडियो बनाने वाले लड़के-लड़कियां बड़ी बेशर्मी से इनको शूट कर यूट्यूब पर डाल रहे हैं। ऐसे कई वीडियो तो पोर्न की श्रेणी के होते हैं, मगर उन पर कोई नियंत्रण नहीं। अनेकानेक वीडियो ऐसे हैं, जो गार्डन में शूट किए जाते हैं और उनमें किसी भी अनजान लड़के या लड़की को मजाक व शरारत का शिकार बनाया जाता है। शरारत जब मार-पिटाई तक पहुंच जाती है तो उसे मजाक बता कर इतिश्री कर ली जाती है। कानूनी पेच से बचने के लिए वे प्रेंक के शिकार लड़के-लड़की को इस बात के लिए रजामंद कर लेते हैं कि उन्हें वीडियो यूट्यूब पर डाउनलोड करने में कोई ऐतराज नहीं। कुल मिला कर यह दर्शाया जा रहा है, मानो लड़कियां केवल यौनेच्छा पूर्ति का साधन हों। मजाक के नाम पर बदचलन लड़कियां भी ऐसा ही दर्शाती हैं कि प्रकृति ने उन्हें जो विशेष शारीरिक संरचना दी है, उसका आजीविका के लिए उपयोग करने में कोई बुराई नहीं है।

यूट्यूब पर लाखों फॉलोअर्स वाले प्रेंक वीडियो मेकर खुले आम धमकी देते भी दिखाई दे जाएंगे। एक तरह से वे ब्लैकमेल कर रहे होते हैं। संभव है इस गोरखधंधे में ऐसे प्रकरण भी हों, जो लाइव आने की बजाय अंदर ही अंदर ब्लैकमेल की वजह बन रहे हों। मगर हमारे कानून की मजबूरी ये है कि जब तक कोई शिकायतकर्ता न हो, कोई कार्यवाही नहीं होती। आपको अजमेर का बहुचर्चित अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड याद होगा, जिसमें काफी समय तक इसलिए कार्यवाही नहीं हो पा रही थी, क्योंकि यौन शोषण की शिकार लड़कियां लोकलाज व बदनामी के डर से सामने ही नहीं आ रही थीं।

मजाकिया वीडियो का चलन मारवाड़ी, हरयाणवी व पंजाबी भाषा में भी आ गया है। उनमें से कुछ तो नैतिकता की सीख के लिए होते हैं, मगर अधिसंख्य में वही घटियापन दिखाई देता है। एक-दो ऐसे वीडियो मेकर ऐसे हैं, जिनका काम ही है, जहां लड़की दिखी, वहीं लाइन मारना और अश्लील शरारत करना। समझ में ही नहीं आता कि आखिर मनोरंजन के नाम पर किस प्रकार खुलेआम कुसंस्कृति की ओर धकेला जा रहा है।


https://www.youtube.com/watch?v=8LEmi07k_Qw


सोमवार, 21 अप्रैल 2025

चीनी बर्तन क्या वाकई चाइना के हैं?

दोस्तो, नमस्कार। भारत और चीन के बीच जिस तरह के मौजूदा संबंध हैं, उसकी वजह से हमारे यहां चीन में बनी वस्तुओं का बहिश्कार करने की मुहिम चलती है, इसके विपरीत दिलचस्प बात ये है कि हमारे यहां चीनी बर्तनों, जैसे कप प्लेट मर्तबान इत्यादि का इस्तेमाल वर्शों पहले से धडल्ले से किया जाता है। एक और बात। चीनी प्रोडक्ट्स के बारे एक धारणा है कि वे टिकाउ नहीं होते। खराब हो जाएं तो ठीक नहीं किये जा सकते। इसके विपरीत चीनी बर्तनों को सुंदर व टिकाउ माना जाता है। 

वस्तुतः चीनी मिट्टी के बर्तनों की शुरुआत सच में चीन से ही हुई थी। चीन ने करीब 2000 साल पहले porcelain बनाना शुरू किया था। यह इतना सुंदर और टिकाऊ था कि जब यह यूरोप और बाकी दुनिया में पहुंचा, तो लोग इसे चाइना कहने लगे। 

यानि चीनी बर्तन का नाम चीन से आया है, क्योंकि पहले वही इनका मुख्य निर्माता था। बेषक चीनी बर्तन जिसे अंग्रेजी में china" "porcelain" कहा जाता है, वह नाम भले ही चाइना से जुड़ा हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर चीनी बर्तन चीन में ही बना हो। आजकल ये बर्तन कई देशों में बनते हैं, जैसे भारत, जापान, इंग्लैंड, जर्मनी आदि। चीनी षब्द का मलतब सिर्फ स्टाइल और मटैरियल से होता है, न कि चीन से। यानि कि जरूरी नहीं कि चीनी बर्तन चीन से ही आया हो, किसी और देष से भी आ सकता है, मगर कहते उसे चीनी ही हैं।


https://youtu.be/-mxyQ4RXwY8

 

रविवार, 20 अप्रैल 2025

हर वनस्पति घी को हम डालडा क्यों कहते हैं?

दोस्तो, नमस्कार। हम जानते हैं कि घी दो प्रकार के होते हैं, एक देषी, यानि गाय-भैंस के दूध से बने हुआ, दूसरा डालडा, यानि वनस्पति वस्तुओं से बना हुआ। वनस्पति वस्तुओं से बना हुआ घी आज कई कंपनियां अलग अलग ब्रांड से बनाती हैं, लेकिन बोलचाल में हम उसे डालडा ही कहत हैं। 

असल में, डालडा एक ब्रांड नेम है, न कि हर वनस्पति घी का असली नाम। लेकिन चूंकि यह ब्रांड पहले मशहूर हुआ, तो लोगों ने हर प्रकार के वनस्पति घी को डालडा नाम से ही इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इसे ब्रांड का सामान्य नाम बन जाना यानि जेनेरिक टेडमार्क कहते हैं। वस्तुतः डालडा ब्रांड की शुरुआत 1937 में हुई थी। इसे हिंडुस्तान यूनिलीवर ने बनाया। उस समय शुद्ध घी बहुत महंगा था, तो डालडा एक सस्ता विकल्प बनकर आया।एक तरह का हाइड्रोजेनेटेड वेजिटेबल ऑयल, जिसे वनस्पति घी कहा गया। डालडा नाम इतना पॉपुलर हुआ कि गांव-कस्बों में लोग किसी भी वनस्पति घी को डालडा कहने लगे, चाहे वह किसी और कंपनी का हो, जैसे रथ, सोना सिक्का, फॉर्चून इत्यादि।


https://youtu.be/-EpMTFiFIqM

शनिवार, 19 अप्रैल 2025

हीरा इतना कीमती क्यों?

दोस्तो, नमस्कार। हम सब जानते हैं कि रत्नों में हीरा सबसे कीमती माना जाता है। सवाल उठता है कि ऐसी क्या खास बात है कि वह मूल्यवान है? उसमें ऐसी कौन सी विषेशता है कि रत्नों का सिरमौर है? वस्तुतः हीरा इतना कीमती इसलिए होता है, क्योंकि उसमें कई विशेषताएं होती हैं, जो उसे अन्य रत्नों और पत्थरों से अलग बनाती हैं। हीरे पृथ्वी में बहुत गहराई में और बहुत खास परिस्थितियों में बनते हैं। इन्हें खोजना और निकालना मुश्किल होता है, इसलिए ये दुर्लभ होते हैं और दुर्लभ चीजें आमतौर पर कीमती मानी जाती हैं।

सबसे बडी विषेशता ये है कि हीरा दुनिया का सबसे कठोर प्राकृतिक पदार्थ है। वर्शों तक धरती के गर्भ में तप कर उसकी रासायनिक संरचना ऐसी हो जाती है, जो बाद में सैंकडों साल तक नहीं बदलती। यानि एक अर्थ में उसकी अवस्था षाष्वत सी हो जाती है। इस प्रतिपल बदलती प्रकृति में जो वस्तु षाष्वत है, उसके प्रति विषेश सम्मान स्वाभाविक है। इसे अपने पास रखने वाले की षाष्वत से निकटता की संभावना बनती है। यही इसकी विषेशता है। इसकी दूसरी विषेशता यह है कि इसे सिर्फ एक और हीरा ही काट सकता है। इसकी यही खासियत इसे आभूषणों और औद्योगिक कामों, जैसे कटर, ड्रिल्स आदि के लिए बेहतरीन बनाती है। इसके अतिरिक्त हीरा जब सही तरीके से काटा और पॉलिश किया जाता है, तो यह बहुत खूबसूरत चमकता है और रोशनी को शानदार तरीके से परावर्तित करता है। इसकी यही चमक इसे गहनों में खास बनाती है। हीरे को प्यार, समर्पण और विलासिता का प्रतीक माना जाता है। सगाई की अंगूठी में हीरा देने की परंपरा ने इसकी मांग और भी बढ़ा दी है। प्रसंगवष बता दें कि 20वीं सदी में डी ब्रीस नामक कंपनी ने बहुत ही स्मार्ट तरीके से हीरे का प्रचार किया। जैसे उनका मशहूर स्लोगन डायमंड इस फोरएवर। इससे लोगों के मन में यह धारणा बन गई कि हीरा सच्चे प्यार का प्रतीक है और इसकी जगह कोई नहीं ले सकता।

https://youtu.be/CaZ-20dtOy8
https://ajmernama.com/vishesh/430230/

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

बिच्छू ने डंक मारा, मगर जहर का असर नहीं हुआ


दोस्तो, नमस्कार। किसी को बिच्छु काटे और उस पर उसके जहर का असर न पडे। क्या ऐसा संभव है? बिलकुल संभव है। मैं स्वयं इस अनुभव से गुजरा हूं। हुआ यूं कि एक बार दरवाजे के पीछे टंगी षर्ट को उतार कर जैसे ही मैने उसे पहला, आस्तीन में छिपे बिच्छू ने डंक मार दिया। बहुत तेज जलन हुई। लेकिन मेरी माताजी ने कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है। वो इसलिए कि मैं जब उनके गर्भ में था तो उनको भी बिच्छू ने डंक मार दिया था। उन्होंने किसी ओझा से डंक का जहर समाप्त करवाया था। तब उन्हें किसी जानकार ने बताया कि आपके पेट में पल रहे बच्चे को अगर बिच्छू डंक मारेगा तो उस पर उसके जहर का असर नहीं होगा। हुआ भी यही। मै एक ओझा के पास गया और झाडा लगाने को कहा। उन्होंने बताया कि आप पर तो जहर का असर ही नहीं हुआ है। इसलिए झाडे की जरूरत नहीं है। है न रोचक घटना। माताजी ने यह भी बताया कि इसी प्रकार गर्भवती को सांप अथवा किसी अन्य जहरीले जीव ने काटा है तो उसके बच्चे पर जहर का असर नहीं होगा।


vhttps://youtu.be/eZZX1I45xs4

दर्जन में गिनती क्यों किया करते हैं?

दोस्तो, नमस्कार। हम सब जानते हैं कि अनेक वस्तएं दर्जन व आधा दर्जन में गिनी जाती हैं। जैसे केले, अंडर वीयर, बनियान, रूमाल, जुराब, और भी कई वस्तुएं। क्या आपको पता है कि ऐसा क्यों किया जाता है। वस्तुतः प्राचीन काल में वस्तुओं को गिनने के लिए अपने शरीर के अंगों का इस्तेमाल किया जाता था। जैसे अपनी उंगलियां। उंगलियों के जोड। यदि आप अपनी उंगलियों के जोड़ों को गिनते हैं, तो उनकी संख्या 12 है। इस प्रणाली को डुओडेसिमल सिस्टम ऑफ काउंटिंग कहा जाता है। इसी को कई वस्तुएं गिनने में इस्तेमाल किया जाने लगा। इसकी एक प्रमुख वजह ये है कि दस व पंद्रह की तुलना में बारह को समान भाग में विभाजित करना आसान है। उदाहरण के लिए, एक दर्जन को 2, 3, 4, या 6 के समूहों में विभाजित किया जा सकता है। यह व्यापारियों और ग्राहकों दोनों के लिए सुविधाजनक और व्यावहारिक है। बडी दिलचस्प बात है कि सामान्य गिनती में भी हम उंगलियों का इस्तेमाल किया करते हैं। हर उंगली के तीन भाग हैं। उन्हीं को जोड कर गिनती किया करते हैं। इसी प्रकार हर उंगली के मूल जोड से हम यह पता लगाते हैं कि कौन सा महिना कितने दिन का होगा। मूल जोड  को इकत्तीस दिन व दो जोडों के बीच को तीस दिन माना जाता है। इनको गिनते वक्त सातवें पर अर्थात जुलाई इकत्तीस दिन की और आठवें अर्थात अगस्त भी इकत्तीस दिन का होता है।


https://youtu.be/du61FrydY54


जाहि विधि राखे राम

दोस्तो, नमस्कार। जब भी हम कोई संकल्प करते हैं तो तत्काल दो या अधिक विकल्प उत्पन्न हो जाते हैं। हम अपनी पसंद के अनुसार उसमें से एक चुनते हैं और उसे पूरा करने का जतन करते हैं, लेकिन होता वह है तो प्रकृति चाहती है। वह कभी हमारे मन के अनुकूल और कभी प्रतिकूल। अनुकूल होता है तो हम प्रसन्न हो जाते हैं और जब प्रतिकूल होता है तो दुखी हो जाते हैं। विचारणीय है कि जब होना वह है तो प्रकृति चाहती है तो क्यों अपने विकल्प के लिए उर्जा व्यय करें। असल में होता ये है कि जब हम कोई विकल्प चुनते हैं और प्रकृति उसके विपरीत होती है तो एक द्ंवद्व उत्पन्न होता है। इससे न केवल हमारी उर्जा व्यर्थ जाया होती है, अपितु तनाव भी उत्पन्न होता है। अतः जैसे ही हमें यह प्रतीत हो कि प्रकृति हमारे विकल्प के अनुकूल नहीं है, या प्रकृति सहयोग नहीं कर रही तो तुरंत समर्पण कर देना ही श्रेयस्कर है। प्रकृति पर ही छोड देना चाहिए कि वह जो चाहे करे। इसी को कहते हैं-जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये। जैसे ही हम राम पर छोडते हैं, द्वंद्व खत्म हो जाता है। वैसे भी प्रकृति वह करती है, जो हमारे लिए उपयुक्त है, उचित है, चाहे बुरा या भला। उसके प्रति स्वीकार भाव होना चाहिए। प्रकृति को बेहतर पता है कि होना क्या चाहिए? भले ही वह हमें अच्छा न लगे, मगर उसी में हमारी भलाई निहित होती है। इसे यूं समझ सकते हैं। जैसे हमने कोई काम आरंभ किया और उसमें बाधा आ गई, समझ जाना चाहिए कि प्रकृति सहयोग नहीं कर रही। तो दूसरा विकल्प चुन का प्रकृति पर छोड देना चाहिए। कदाचित कुछ लोग यह सोच सकते हैं कि बाधा आने पर पुनः पुनः प्रयास करना चाहिए, यही हमें सिखाया गया है, मगर अंदर का सच यह है कि हमारे लिए ठीक नहीं है। कदाचित पुनः पुनः प्रयास करने से सफलता हासिल हो भी गई तो आप पाएंगे कि वह हमारे लिए उपयुक्त नहीं है। 


https://youtu.be/215NQQARLsY


मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

सब्जी में बाल निकलने का वहम

एक पुरानी कहावत है- वहम का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं था। ज्ञातव्य है कि हकीम लुकमान बहुत प्रसिद्ध हकीम थे, जिनके पास हर मर्ज का इलाज था। मगर बताते हैं कि वे भी वहम अर्थात भ्रांति का इलाज नहीं कर पाते थे। इस सिलसिले में मुझे एक किस्सा याद आता है। बचपन में मैं जब भी खाना खाने बैठता था तो मुझे पहले से वहम होता था कि सब्जी में बाल होगा ही। और दिलचस्प बात है कि वाकई सब्जी में से बाल निकलता ही था। और जैसे ही बाल निकलता, मैं खिन्न हो जाता था। इस पर मेरी मां कहा करती थी कि यह तुम्हारा वहम है, तुम दिल ये यह वहम निकाल दो, फिर देखो सब्जी से बाल नहीं निकलेगा। हालांकि वह वहम बहुत देर से निकला, मगर जब निकला तो पाया कि वाकई सब्जी से बाल निकलना बंद हो गया। मुझे आज तक समझ में नहीं आया कि केवल वहम मात्र से सब्जी में बाल कैसे आ जाता था? वह स्वसम्मोहित अवस्था थी या वहम करने से वाकई बाल सब्जी में आ जाता था। वैसे सब्जी अथवा रोटी में बाल आने की वजह ये होती है कि जिन महिलाओं के बाल झडते हैं, रोटी बनाते वक्त उसमें बाल गिरने की आषंका रहती है। आपने देखा होगा कि रेस्टोरेंट्स में षैफ सिर को ढक कर रखते हैं, ताकि बाल भोजन में न गिरे। इसी प्रकार रेस्टोरेंट में दीवारों पर स्लोगन लिखा होता है कि डोंट कॉंब, अर्थात यहां कंघी न कीजिए, अन्यथा भोजन में बाल गिर सकता है।

https://youtu.be/tzDR0LR9DF0

ईमान की मिसाल थे मेरे पिताश्री

आज फादर्स डे पर मेरे स्वर्गीय पिताश्री टी. सी. तेजवानी के चरणों में शत् शत् नमन। मित्रों, इस पुनीत मौके पर एक बात शेयर करना चाहता हूं। आपने ...