बुधवार, 30 जुलाई 2025

जगदीप धनखड अजमेर में एक चूक की वजह से हार गए थे

अज्ञात परिस्थितियों में उप-राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने वाले जगदीप धनखड का नाम इन दिनो सुर्खियों में है। उनको लेकर कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। स्वाभाविक रूप से उनकी अब तक की राजनीतिक यात्रा पर भी चर्चा हो रही है। ज्ञातव्य है कि उनका अजमेर से गहरा संबंध है। उन्होंने 1991 में अजमेर संसदीय सीट पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडा था, मगर भाजपा के प्रो. रासासिंह रावत से हार गए। हालांकि वे पेराटूपर की तरह अजमेर आए थे, मगर पूरी ताकत से चुनाव लडा। जीत भी जाते, मगर एक चूक की वजह से पराजित हो गए। अजमेर के लोगों को उस चुनाव का मंजर अच्छी तरह से याद है। कंप्यूटर की माफिक तेजी से दायें-बायें चलती उनकी आंखें बयां करती थीं कि वे बेहद तेज दिमाग हैं। चाल में गजब की फुर्ती थी, जो कि अब भी है। बॉडी लैंग्वेज उनके ऊर्जावान होने का सबूत देती थी। हंसमुख होने के कारण कभी वे बिलकुल विनम्र नजर आते थे तो मुंहफट होने के कारण सख्त होने का अहसास करवाते थे। जब अजमेर में लोकसभा चुनाव लडने को आये स्वर्गीय श्री माणक चंद सोगानी शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष थे। नया बाजार में सोगानी जी के सुपुत्र के दफ्तर में हुई पहली परिचयात्मक बैठक में ही उनका विरोध हो गया, चूंकि उन्हें यहां कोई नहीं जानता था। प्रचार का समय भी बहुत कम था। फिर भी उन्होंने प्रोफेशनल तरीके से चुनाव लड़ते हुए सारे संसाधन झोंक दिए। उन्होंने चुनाव लडने की जो स्टाइल अपनाई, वैसा करते हुए पहले किसी को नहीं देखा गया। टेलीफोन डायरेक्टरी लेकर सुबह छह बजे से आठ बजे तक आम लोगों से वोट देने की अपील करते थे। हालांकि उन्होंने चुनाव बड़ी चतुराई व रणनीति से लड़ा, मगर सारा संचालन अपने साथ लाए दबंगों के जरिए करवाने के कारण स्थानीय कांग्रेसियों को नाराज कर बैठे। वे जीत जाते, मगर स्थानीय कांग्रेस नेताओं को कम गांठा और सारी कमान झुंझुनूं से लाई अपनी टीम के हाथ में ही रखी। यही वजह रही कि स्थानीय छुटभैये उनसे नाराज हो गए और उन्होंने ठीक से काम नहीं किया।

प्रसंगवश बता दें कि उनकी राजनीतिक यात्रा 1989 में झुंझुनूं से जनता दल सांसद के रूप में हुई थी। पहली बार में ही वी पी सिंह सरकार में संसदीय कार्य राज्य मंत्री बनाए गए। 1991 में जनता दल छोड़ कर कांग्रेस की सदस्यता ले ली। अजमेर से लोकसभा चुनाव लडा। उसके बाद 1993 में अजमेर जिले की किशनगढ़ विधानसभा सीट से कांग्रेस टिकट पर लड़ कर विजयी हुए। 1998 में झुंझुनू से कांग्रेस टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, मगर तीसरे स्थान पर रहे थे। 2003 में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनने पर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। कुछ समय तक सुर्खी से गायब रहे, मगर लोग तब चौंके जब उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया। उसके बाद वे उप-राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए। हाल ही उन्होंने अचानक इस्तीफा दिया तो सब भौंचक्क हैं।


मंगलवार, 29 जुलाई 2025

सिंधी समाज के पर्व गोगडो का क्या महत्व है?


सिंधी समाज के पर्व गोगोड़ो का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह पर्व खासकर सावन महीने में नाग पंचमी को मनाया जाता है, और इसे गोगा देवता या गोगा जी की पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से सांपों से रक्षा और सर्पदंश से सुरक्षा की कामना से जुड़ा होता है।

गोगा जी जिन्हें गोगा वीर, गोगा चोबदार, या जाहरवीर गोगा भी कहा जाता है, को सर्पों के देवता के रूप में पूजा जाता है। सिंधी समाज में मान्यता है कि वे नागों पर नियंत्रण रखते हैं और अपने भक्तों को सर्पदंश से बचाते हैं। 

इस दिन गोगड़ो की कथा सुनाई जाती है। स्त्रियां और बच्चे मिलकर गोगा जी के गीत गाते हैं और मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजा करते हैं। यह पर्व सिंधी संस्कृति की उस जीवंत परंपरा को दर्शाता है जो सिंध से जुड़ी हुई है और प्रवासी सिंधियों में अब भी जीवित है। गोगडो यह सिखाता है कि जीव-जंतुओं के साथ मेलजोल बनाकर कैसे जीवन जिया जाए।

बहुत समय पहले की बात है, गोगा जी एक शक्तिशाली और पराक्रमी राजा थे। उनकी माता ने सर्पों की आराधना कर उन्हें प्राप्त किया था। जन्म के समय से ही गोगा जी के पास सर्पों पर नियंत्रण की शक्ति थी। वे जहां भी जाते, सांप उनकी आज्ञा का पालन करते। गोगा जी ने जीवन भर न्याय, धर्म और सेवा का मार्ग अपनाया और सर्पदंश से पीड़ित लोगों को बचाया। उन्होंने कई जगहों पर नागों का आतंक समाप्त किया और लोगों की रक्षा की। इसलिए लोग उन्हें सांपों के स्वामी कह कर पूजते हैं।

इस दिन सिंधी परिवारों में गुड़ या शक्कर डाल कर मीठी रोटी बनाई जाती है। इसे प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है और बाद में परिवार में बांटा जाता है। गोगड़ो के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता। एक दिन पहले बनाया गया ठंडा भोजन किया जाता है। इस दिन को नंढी थदडी कहा जाता है।


शनिवार, 26 जुलाई 2025

ज्योति मिर्धा व रिछपाल मिर्धा अब क्या करेंगे?

नागौर की पूर्व सांसद श्रीमती ज्योति मिर्धा व डेगाना के पूर्व विधायक रिछपाल मिर्धा को भाजपा ज्वाइन करवाने में अहम भूमिका अदा करने वाले जगदीप धनखड के इस्तीफे बाद यह सवाल उठ खडा हुआ है कि इन दोनों का अगला राजनीतिक कदम क्या होगा? हालांकि भूतपूर्व सांसद स्वर्गीय श्री नाथूराम मिर्धा की पोती श्रीमती ज्योति मिर्धा की खुद अपनी पहचान है, अपना पारीवारिक जनाधार है और रिछपाल मिर्धा भी कम लोकप्रिय नहीं हैं, मगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक उनकी सीधी पहुंच धनखड की वजह से ही थी। अब जब बीच की कडी गायब हो गई तो यह सवाल उठता ही है कि ये दोनों आगे क्या करेंगे? क्या धनखड के अगले कदम के साथ कदम मिलाएंगे या भाजपा में बने रहेंगे? वस्तुतः धनखड के इस्तीफे से सर्वाधिक असर पडा है तो नागौर जिले की राजनीति पर। अब नागौर में जाट राजनीति नई करवट लेगी। इस बात की संभावना भी जताई जा रही है कि दोनो नेता कांग्रेस में लौट आएंगे, मगर ऐसा होना मुश्किल प्रतीत होता है, क्योंकि जमीन पर समीकरण पूरी तरह से बदल चुके हैं। उधर हनुमान बेनीवाल भी खम ठोक कर खडे हैं। कुल मिला कर नाागौर में राजनीति के समीकरण उलझे मांझे की तरह गड्ड मड्ड हो गए हैं।


ज्योति मिर्धा ने जताई धनखड के प्रति गहरी संवेदना

नागौर की पूर्व सांसद श्रीमती ज्योति मिर्धा जगदीप धनखड के इस्तीफे से स्तंभित हैं। हों भी क्यों न, आखिर धनखड ही तो उन्हें भाजपा में ले गए थे। नए राजनीतिक समीकरणों में एक तरह से वे ही दिल्ली में उनके आका थे। अब उन्हें नए सिरे से राजनीति का ताना बाना बुनना होगा। या तो धनखड जिस दिषा में जाएंगे, उसी ओर कदम उठाएंगी या फिर भाजपा में रह कर नए सिरे से अपने आपको स्थापित करने की कोशिश करेंगी।

आइये देखते हैं, ज्योति मिर्धा की नजर में धनखड की कितनी अहमियत है। उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर एक भावपूर्ण पोस्ट साझा की है, जो यह जाहिर करती है कि धनखड के प्रति उनके मन में कितना श्रद्धा है। वह पोस्ट आप भी पढियेः-
एक युग का विराम: श्रद्धा, सम्मान और स्मृति में
भारत के यशस्वी उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनकड़ जी के इस्तीफे की खबर केवल एक संवैधानिक पद से विदाई नहीं, बल्कि एक ऐसे युग का विराम है जिसने संवैधानिक गरिमा, जनसरोकारों और किसान चेतना को एक नई ऊंचाई दी।
एक किसान पुत्र, जननायक और न्यायप्रिय विचारक के रूप में उन्होंने जो भूमिका निभाई, वह इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगी। उनकी आवाज संसद में उन करोड़ों किसानों की पीड़ा और आशाओं की अनुगूंज थी, जो अक्सर नीति-निर्माण की परिधि से बाहर रह जाते हैं।
उन्होंने न केवल स्वर्गीय ‘बाबा’ के विचारों को सम्मान दिया, बल्कि उन्हें अपने सार्वजनिक जीवन में जिया भी। अनेक अवसरों पर जब उन्होंने स्व. नाथूराम जी मिर्धा को अपना प्रेरणास्रोत कहा, वह मेरे लिए गर्व और भावनात्मक जुड़ाव का विषय रहा।
धनखड़ साहब ने उपराष्ट्रपति जैसे गरिमामयी पद की मर्यादा को केवल निभाया नहीं, उसमें संवेदनशीलता, निष्ठा और दृढ़ता का एक विलक्षण समावेश किया।
उनकी दृष्टि में संविधान था, हृदय में भारत की जनता और संवाद में सादगी व स्पष्टता।
आज जब वे उस पद से विदा ले रहे हैं, तो मन एक विशेष शून्यता का अनुभव करता है, पर साथ ही उनके विचार, उनकी संघर्षशीलता और उनकी सेवाभावना सदैव हमारे मार्गदर्शक रहेंगे।
कोटिशः नमन और भावपूर्ण शुभकामनाएं
एक सच्चे किसान-नेता को, एक साहसी विचारक को, और एक आत्मीय मार्गदर्शक को।

शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

कुत्ते कार की छत पर क्यों बैठते हैं?

आपने देखा होगा कि कुत्ते कई बार कार की छत पर बैठ जाते हैं। इसी प्रकार निर्माणाधीन मकान के पास बजरी के ढेर पर भी बैठना उनको पसंद होता है। क्या आपने कभी सोचा है कि कुत्ते इस प्रकार का व्यवहार क्यों करते हैं?

वस्तुतः कुत्ते स्वभाव से क्षेत्रीय जानवर होते हैं। जब वे ऊंचाई, जैसे कार या मिट्टी का टीले पर बैठते हैं, तो उन्हें आसपास के इलाके पर नजर रखने में आसानी होती है। यह उनके लिए सुरक्षा और नियंत्रण की भावना देता है। कुत्ते अपने शरीर की गंध से इलाके को चिन्हित करते हैं। वे किसी जगह पर बैठकर उस पर अपनी गंध छोड़ते हैं ताकि अन्य जानवरों को संकेत मिल सके कि यह उनका इलाका है। कभी-कभी ऊंचाई पर बैठना अन्य जानवरों को संदेश देता है कि यह कुत्ता मुखिया या बॉस है। यह प्राकृतिक पशु-मनःस्थिति का हिस्सा है। इसके अतिरिक्त ऊंचाई पर बैठकर कुत्ता आने-जाने वालों, आवाजों या संभावित खतरों पर नजर रख सकता है।

इसी सिलसिले में एक कहावत आपने सुनी होगी- अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है। वो इसलिए कि वह खुद को अपनी गली का राजा मानता है। किसी भी अन्य कुत्ते, सूअर, बिल्ली आदि को वह प्रवेश नहीं करने देता। आसन की महत्ता हम इंसान तो जानते ही हैं, एक कुत्ता तक इसका महत्व जानता है। वह गली में निर्माणाधीन मकान के पास डाले गए बजरी के ढ़ेर पर चढ़ कर बैठता है, और यह अहसास करता है मानो किसी सिंहासन पर बैठा हो।

फोटो-जाने माने बुद्धिजीवी श्री अनिल जैन की फेसबुक वाल से साभार।


तेज तर्रार नेताओं का बोलबाला

इन दिनों राज्य में तेज तर्रार नेता खूब चर्चा में हैं। पुलिस से टकराव की एक के एक बाद घटनाएं हो रही हैं। चूंकि सोषल मीडिया का जमाना है, इस का...