ये सुनी-सुनाई बात नहीं। आंखों देखी है। काली माता की एक मूर्ति ढ़ाई प्याला शराब पीती है। यह नागौर जिले में मुख्यालय से 105 किलोमीटर दूर, रियां तहसील में, मेड़ता से जैतारण जाने वाले मार्ग पर स्थित गांव भंवाल के एक मंदिर में है। इसकी गिनती राजस्थान के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में होती है। इसकी बहुत मान्यता है। मंदिर तक जाने के लिए मेड़ता रोड में हर वक्त वाहन उपलब्ध रहते हैं।
तकरीबन बीस साल पहले मैंने स्वयं ने इस मंदिर के दर्शन किए थे। कुछ मित्रों के साथ एक जीप में मुझे वहां जाने का मौका मिला। वहां के नियम के मुताबिक, जिन भी मित्रों के पास बीड़ी-सिगरेट या तम्बाकू था, उसे मंदिर के बाहर ही रख दिया। चमड़े के बेल्ट व पर्स भी बाहर ही रखे। हमने शराब की एक बोतल के साथ मंदिर में प्रवेश किया। जब हमारा नंबर आया तो पुजारी ने हमसे बोतल लेकर उसे खोला और उनके पास मौजूद चांदी एक प्याले में शराब भरी। वह प्याला उन्होंने मूर्ति के होठों पर रखा। देखते ही देखते प्याला खाली हो गया। फिर दूसरा प्याला पेश किया। वह भी खाली हो गया। तीसरे प्याले में से आधा ही खाली हुआ। विशेष बात ये थी कि हम तो इस नजारे को थोड़ी दूर से देख रहे थे, मगर जब भी पुजारी प्याला मूर्ति के होंठों पर रखता तो खुद का मुंह हमारी ओर कर लेता। अर्थात वह स्वयं इस दृश्य को नहीं देख रहा था। कदाचित यह परंपरा रही हो कि पुजारी इस चमत्कार को बेहद नजदीक से नहीं देखता हो। हमारे लिए यह वाकई चमत्कार ही था। हमने जब पुजारी से इस बाबत पूछा कि यह कैसा चमत्कार है, तो उसने बताया कि कुछ बुद्धिजीवी और विज्ञान के विद्यार्थियों ने इसका रहस्य जानने की कोशिश की कि कहीं कोई तकनीक तो नहीं, मगर उन्हें भी चमत्कार को देख कर दातों तले अंगुली दबाने को विवश होना पड़ा।
ऐसा नहीं कि मूर्ति हर व्यक्ति की शराब की बोतल ग्रहण कर रही हो। कुछ ऐसे भी थे, जिनकी बोतल देवी ने स्वीकार नहीं की। उनके बारे में बताया गया कि या तो अपनी जेब में चमड़े का पर्स या तम्बाकू पदार्थ लेकर गए थे, या फिर उनकी श्रद्धा में कहीं कोई कमी थी। इसे इस रूप में भी लिया जा रहा था कि देवी मां जिनकी मनोकामना पूर्ण करना चाहती हैं, केवल उनके हाथों लाई शराब ही ग्रहण करती हैं।
मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी पता करने पर बताया गया कि भंवाल माता की मूर्ति खेजड़ी के एक पेड़ के नीचे प्रकट हुई थी। बताया जाता है कि इस स्थान पर राजा की फौज ने लूट के माल के साथ डाकुओं की घेराबंदी कर ली थी। इस पर उन्होंने काली मां को याद किया तो मां ने स्वयं प्रकट हो कर डाकुओं को भेड़-बकरियों के झुंड में तब्दील कर दिया। इस तरह से डाकू बच गए। उन्होंने ही लूट के माल से यहां मंदिर बनवाया था। वहां मौजूद शिलालेख के अनुसार मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 1119 में हुआ था। यह पुरातन स्थापत्य कला से पत्थरों को जोड़ कर बनाया गया था।
यात्रियों के विश्राम के लिए बैंगाणी परिवार ने मंदिर के पास ही एक धर्मशाला बनवा रखी है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
भगवान, ईश्वर ने कुछ रहस्य या बातें अपने तक ही रखी हैं जिनको जानने की इच्छा हर मनुष्य में है।
जवाब देंहटाएंकरणी माता का मंदिर, चूहों की माया, भांति भांति की अदभुत कलाओं या चमत्कार वाले मंदिर या प्राकृतिक गर्म ठंडे झरने और भी बहुत सारी रहस्मयी चीज़ें जो आज भी छुपी हैं पर् इतना विश्वास दिलाती हैं कि भगवान है।
kishan priyani
जी ,मैं भी दर्शन करके आ चुकी हूं 🙏🏻 बहुत अच्छा मंदिर है ...जय माता दी
जवाब देंहटाएंabhilasha bishnoi
आदरणीय,
जवाब देंहटाएंकरीब १५ - १६ वर्ष पूर्व मुझे भी दर्शन प्राप्त हुए।
माता कई बार शराब ग्रहण नहीं करती हैं।
कुछ मान्यताएं यह भी कहती हैं कि मन साफ़ नहीं हो तो भी नहीं लेती यह मैंने खुद देखा।
कभी देशी ले कर आए तो ग्रहण कर लिया
issar bhambhani
जय भंवाल माता की
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक दृष्टिकोंन से ये बात समझ नहीं आती परंतु इस जगत में कुछ ऐसे भी रहष्य है जो वैज्ञनिको की सटीकता से परे हैं। जय भँवाल माता।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी
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