मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

राजनेता बडा या अफसर?

अपुन के दिमाग में आया कि सत्ता की गाड़ी को दो ही पहिये चलाते हैं, राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी। दोनों में से एक के बिना भी सरकार नहीं चल सकती। मगर सवाल ये उठता है कि इनमें से बड़ा कौन? दोनों में कौन ज्यादा जिम्मेदार है? आइये, जरा विस्तार से समझने की कोषिष करते हैंः-

एक अधिकारी से गुफ्तगू की तो वे बोले असल में सरकार तो अधिकारी और उसके नीचे का तंत्र चलाता है। राजनेता को तो कानून और नियमों की जानकारी तक नहीं होती। वह तो केवल मौखिक आदेश देता है, उनकी अनुपालना नियमों के अंतर्गत किसी प्रकार की जाए, यह रास्ता तो अधिकारी ही निकालता है। वैसे भी यदि नियम के खिलाफ कुछ हो जाए तो राजनेता का कुछ नहीं बिगड़ता, क्यों कि वह तो केवल जुबानी जमा-खर्च करता है, जबकि रिकार्ड के मुताबिक फंदा तो अधिकारी और कर्मचारी के गले में ही पड़ता है। अगर प्रशासनिक तंत्र प्रभावी न हो तो राजनेता जो मन में आए, वही करे और इसके नतीजे में अराजकता ही हाथ आ सकती है। कुल मिला कर अधिकारी नकेल का काम करता है और उसी की वजह से सिस्टम चलता है। इस लिहाज से अधिकारी ही बड़ा और जिम्मेदार माना जाना चाहिए, मगर बावजूद इसके उसे दब कर चलना पड़ता है। इस वजह से, क्यों कि राजनेता चाहे जब उसे उठा कर दूर फिंकवा सकता है।

अपुन ने एक राजनेता का मन टटोला। उनका तर्क भी दमदार था। बोले- राजनेता ही बड़ा होता है। असल में सरकार बनी ही जनता के लिए है और जनता का दर्द राजनेता से ज्यादा कौन समझ सकता है। वह जनता में से उठ कर आता है, जनता के बीच ही रहता है और जनता के प्रति ही जवाबदेह होता है। आप ही सोचिये, 

हो भले ही रेलवे ट्रेक के कर्मचारी की वजह से ट्रेन एक्सीडेंट, मगर छुट्टी तो रेल मंत्री पर इस्तीफे का दबाव बनता है। इतना ही नहीं नेेता को हर पांच साल बाद जनता के सामने परीक्षा देने जाना पड़ता है। विपक्षी तो कपड़े फाड़ता ही है, खुद की पार्टी का भी टांग खींचने में लगा रहता है। जनता भी ऐसी है कि कब और किस वजह से फेल कर दे और कब पास, कुछ पता नहीं होता। दूसरी ओर अधिकारी केवल किताबों को रट कर या फिर टीप-टाप कर एक बार परीक्षा पास कर लेता है और ले-दे कर ऊंचे ओहदे पर पहुंच जाता है। फिर ताजिंदगी एसी चेंबर में ऐश करता है। न तो जनता के पास जाने का झंझंट और न ही जनता से मिलने-मिलाने की परेशानी। दरबान ही नहीं घुसने देता। जनता उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। हद से हद उसका तबादला कर दो। जहां जाएगा, गाड़ी, बंगला, चपरासी, सब कुछ मिलेगा। अब आप ही बताइये, जिसका ज्यादा समर्पण और ज्यादा जवाबदेही है, वही तो ज्यादा जिम्मेदार हुआ।


शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

अगर बच्चा बुहारी लगाए तो मेहमान आता है?

हम रोजाना घर में बुहारी लगाते हैं। संपन्न लोगों के घर में काम वाली बाई बुहारी लगाती है। यह एक सामान्य बात है। लेकिन अगर कभी कोई बच्चा खेल-खेल में बुहारी लगाए तो यह माना जाता है कि कोई मेहमान आने वाला है। तभी तो उसे कहते हैं कि क्या किसी मेहमान को बुला रहा है? इस मान्यता का कोई ठोस कारण अथवा वैज्ञानिक आधार विद्वानों की जानकारी में हो तो पता नहीं, मगर आम जनमानस उससे अनभिज्ञ है। वह तो इस तथ्य को परंपरागत रूप से मान्यता के रूप में ही लेता है। जहां तक मेरी समझ है, ऐसा प्रतीत होता है कि चूंकि बच्चा सहज व सरल होता है, मन-बुद्धि विशुद्ध होते हैं, उसमें अभी सांसारिक विकृतियां प्रवेश नहीं की होती हैं, इस कारण उसकी छठी इन्द्री प्रकृति के संकेतों को ग्रहण कर लेती होगी। चूंकि हम वयस्कों की नैसर्गिक शक्तियां कई प्रकार के झूठ, प्रपंच आदि के कारण शिथिल हो जाती हैं, इस कारण हमारी छठी इन्द्री संकेत ग्रहण करने की क्षमता खो देती होगी। संभव है कि अनुभव से ऐसी मान्यता स्थापित हुई हो कि बच्चा बुहारी लगाए तो वह किसी मेहमान के आने का संकेत होता है। यद्यपि बच्चे को उस संकेत का भान नहीं होता, मगर उस संकेत की वजह से वह सहज ही बुहारी लगाने लगता होगा। ऐसा छत पर बैठे-बैठे कौए के कांव-कांव करने पर भी कहा जाता है। शायद कौवे में भी संकेत ग्रहण करने की क्षमता हो।


राजनेता बडा या अफसर?

अपुन के दिमाग में आया कि सत्ता की गाड़ी को दो ही पहिये चलाते हैं, राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी। दोनों में से एक के बिना भी सरकार नहीं चल सकती...