बुधवार, 20 नवंबर 2024

लोकप्रिय नेता कौन?

यह आम धारणा है कि जो नेता अपने क्षेत्र में विकास कार्य करवाता है, वह लोकप्रिय हो जाता है। यह तथ्य है तो सही, मगर पूर्ण सत्य नहीं। असल में लोकप्रिय वह नेता होता है, जो सार्वजनिक काम करवाने के साथ साथ लोगों के निजी कामों पर अधिक ध्यान देता है। इसके अनेक उदाहरण मौजूद हैं। इसे तफसील से समझते हैं। जब भी कोई नेता कोई सडक बनवाता है, नाली ठीक करवाता है, स्टीट लाइट दुरूस्त करवाता है, तो उसकी तारीफ तो होती है, मगर सारे लाभान्वित उसके फॉलोअर नहीं बनते। वे पार्टी व जाति से ही जुडे रहते हैं। वस्तुतः विकास कार्य को जनता किसी अहसान के रूप में नही लेती। यही माना जाता है कि यह तो सामान्य विकास कार्य है, जिसे नेता को करवाना ही चाहिए था। इसके विपरीत यदि नेता किसी का निजी काम करवाता है, नौकरी लगवाता है, तबादला करवाता है, पुलिस के षिकंजे से छुडवाता है, तो वह ताजिंदगी उसका अहसान मानता है। पक्का फॉलोअर बन जाता है। तब विचारधारा व जाति गौण हो जाती है। इसलिए चतुर राजनेता सामान्य विकास कार्य करवाने के साथ लोगों के निजी कामों पर अधिक ध्यान रखता है। आप देखिए न। जब सचिन पायलट अजमेर के सांसद बने तो विकास को नए आयाम दिए, विपक्षी भी तारीफ करने लगे, मगर अगले ही चुनाव में वे हार गए। लोग विचारधारा के प्रति ही समर्पित रहे, वोट डालते वक्त उनके कार्यों को भूल गए। एक उदाहरण और। मेरे एक मित्र अपने नेता के पास गए। नेता ने पूछा कैसे आए हो, मित्र ने कहा कि उनके मोहल्ले की सडकें खराब हैं, मेहरबानी करके ठीक करवा दीजिए। नेता ने कहा कि सडक को छोडिये, कोई निजी काम हो तो बताइये। सार्वजनिक काम करवाने का कोई अहसान नहीं मानता।


रविवार, 17 नवंबर 2024

नेता व अफसरों के बीच गहरा अंतर्संबंध

हाल ही वरिष्ठ पत्रकार श्री ओम माथुर ने अपनी बेकद्री के जिम्मेदार अफसर खुद भी हैं शीर्षक से ब्लॉग लिखा है। उनके अनुसार अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने अथवा पीटने की चेतावनी देने के लिए सिर्फ नेताओं की मनमानी या अंहकार ही जिम्मेदार नहीं है, अफसर भी बराबर के दोषी है। मनचाही नियुक्तियों और तबादलों के मोह और लोभ में अफसर ही विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के देवरे धोकते हैं। ऐसे में नेता भी उन्हें अपना अधीनस्थ मान कर व्यवहार करते हैं। उनकी बात में दम है। इसका अनुभव मैने स्वयं ने किया है। हुआ यूं कि मेरा नाम अजमेर उत्तर विधानसभा सीट के कांग्रेस टिकट के लिए तय सा था। तब मेरे एक परिचित वरिष्ठ अधिकारी के व्यवहार से मैं भौंचक्का रह गया था। उन्होंने मुझ से बाकायदा मिलने का समय लिया। तकरीबन पौन घंटे मुलाकात हुई। वे बोले कि उनकी जानकारी के अनुसार मेरा टिकट लगभग पक्का है। वे टिकट मिलने पर मेरा सहयोग करना चाहते हैं। अंदरखाने पूरी व्यवस्था संभालने को तैयार हैं। मैने यही कहा कि टिकट मिलने तो दीजिए, तब देखेंगे। लेकिन मेरे लिए यह घटना अप्रत्याशित थी। भला कोई अधिकारी इस तरह से सहयोग करना क्यों चाहता है? मेरे मित्रों ने बताया कि इसमें कोई खास बात नहीं है। वे अधिकारी इस उम्मीद में सहयोग करना चाहते हैं कि अगर मैं जीता, या हारा भी, तो भी अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल उनके लिए करूंगा। अधिकतर अधिकारी राजनीतिक नेताओं से इसीलिए संपर्क रखते हैं, ताकि वक्त-बेक्त काम आएं। एक प्रकरण और ख्याल में आता है। एक उपचुनाव में एक वरिष्ठ अधिकारी ने मेरे माध्यम से एक कांग्रेस नेता को टिकट दिलवाने में अहम भूमिका अदा की थी। बाद में जब वे जीत गए तो उन्होंने उनसे एक डिजायर कराने का आग्रह किया, जिसे मैने सहर्ष स्वीकार किया। यानि सिस्टम ये है कि नेता व अधिकारियों के बीच लोकाचार निभाया जाता है। मैं ऐसे अधिकारियों को जानता हूं, जिनके कांग्रेस व भाजपा नेताओं के संबंध होने के कारण हर सरकार में मनचाही जगह पर डटे रहते हैं।


मंगलवार, 5 नवंबर 2024

शरीर के सर्वांग विकास के लिए षट् रस जरूरी

भारतीय भोजन की विशेषता यह है कि इसमें विभिन्न रसों का समावेश होता है, जिन्हें मिलाकर संपूर्ण भोजन तैयार किया जाता है। भारतीय खाने में शट् रस का महत्व बहुत अधिक है। शट् रस अर्थात् छह प्रकार के स्वाद होते हैं, मधुर (मीठा), अम्ल (खट्टा), लवण (नमकीन), कटु (तीखा), तिक्त (कड़वा) और कषाय (कसैला)। इन सभी रसों के संतुलित संयोजन से भोजन न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि शरीर को भी सभी प्रकार के पोषक तत्व मिलते हैं।

यूं तो अनेक समुदायों व समाजों में शट्रस युक्त भोजन का चलन है, मगर गुजराती थाली व जैन थाली की विषेश चर्चा होती है।

गुजराती थाली में सभी रसों का अद्भुत समावेश होता है। यह थाली बहुत ही विविधतापूर्ण होती है, जिसमें आमतौर पर दाल, कढ़ी, सब्जियां, रोटली (रोटी), भात (चावल) और मीठा होता है। गुजराती खाने में मिठास का विशेष महत्व होता है, इसलिए कई व्यंजन हल्की मिठास लिए होते हैं। साथ ही, इसमें तली हुई चीजें, जैसे फाफड़ा, ढोकला, पापड़ भी शामिल होते हैं, जो अन्य रसों का संतुलन बनाए रखते हैं। खट्टे और मीठे का बेहतरीन मिश्रण गुजराती भोजन को अनोखा बनाता है।

जैन थाली में भी शट् रस का संतुलन देखने को मिलता है, लेकिन इसकी खासियत यह है कि इसमें प्याज, लहसुन और किसी भी प्रकार की जड़ वाली सब्जियों का प्रयोग नहीं होता है। यह थाली सादगी और शुद्धता के लिए प्रसिद्ध है, फिर भी स्वाद से भरपूर होती है। जैन भोजन में सादा और हल्का खाना होता है, जिसमें अनाज, सब्जियाँ, और दालों का संयोजन होता है।

दोनों थालियों में शट् रस का महत्व बहुत अधिक होता है और ये भोजन का एक ऐसा रूप प्रस्तुत करती हैं, जिसमें न केवल स्वाद का ध्यान रखा जाता है, बल्कि सेहत का भी।

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

राजनेता बडा या अफसर?

अपुन के दिमाग में आया कि सत्ता की गाड़ी को दो ही पहिये चलाते हैं, राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी। दोनों में से एक के बिना भी सरकार नहीं चल सकती। मगर सवाल ये उठता है कि इनमें से बड़ा कौन? दोनों में कौन ज्यादा जिम्मेदार है? आइये, जरा विस्तार से समझने की कोषिष करते हैंः-

एक अधिकारी से गुफ्तगू की तो वे बोले असल में सरकार तो अधिकारी और उसके नीचे का तंत्र चलाता है। राजनेता को तो कानून और नियमों की जानकारी तक नहीं होती। वह तो केवल मौखिक आदेश देता है, उनकी अनुपालना नियमों के अंतर्गत किसी प्रकार की जाए, यह रास्ता तो अधिकारी ही निकालता है। वैसे भी यदि नियम के खिलाफ कुछ हो जाए तो राजनेता का कुछ नहीं बिगड़ता, क्यों कि वह तो केवल जुबानी जमा-खर्च करता है, जबकि रिकार्ड के मुताबिक फंदा तो अधिकारी और कर्मचारी के गले में ही पड़ता है। अगर प्रशासनिक तंत्र प्रभावी न हो तो राजनेता जो मन में आए, वही करे और इसके नतीजे में अराजकता ही हाथ आ सकती है। कुल मिला कर अधिकारी नकेल का काम करता है और उसी की वजह से सिस्टम चलता है। इस लिहाज से अधिकारी ही बड़ा और जिम्मेदार माना जाना चाहिए, मगर बावजूद इसके उसे दब कर चलना पड़ता है। इस वजह से, क्यों कि राजनेता चाहे जब उसे उठा कर दूर फिंकवा सकता है।

अपुन ने एक राजनेता का मन टटोला। उनका तर्क भी दमदार था। बोले- राजनेता ही बड़ा होता है। असल में सरकार बनी ही जनता के लिए है और जनता का दर्द राजनेता से ज्यादा कौन समझ सकता है। वह जनता में से उठ कर आता है, जनता के बीच ही रहता है और जनता के प्रति ही जवाबदेह होता है। आप ही सोचिये, 

हो भले ही रेलवे ट्रेक के कर्मचारी की वजह से ट्रेन एक्सीडेंट, मगर छुट्टी तो रेल मंत्री पर इस्तीफे का दबाव बनता है। इतना ही नहीं नेेता को हर पांच साल बाद जनता के सामने परीक्षा देने जाना पड़ता है। विपक्षी तो कपड़े फाड़ता ही है, खुद की पार्टी का भी टांग खींचने में लगा रहता है। जनता भी ऐसी है कि कब और किस वजह से फेल कर दे और कब पास, कुछ पता नहीं होता। दूसरी ओर अधिकारी केवल किताबों को रट कर या फिर टीप-टाप कर एक बार परीक्षा पास कर लेता है और ले-दे कर ऊंचे ओहदे पर पहुंच जाता है। फिर ताजिंदगी एसी चेंबर में ऐश करता है। न तो जनता के पास जाने का झंझंट और न ही जनता से मिलने-मिलाने की परेशानी। दरबान ही नहीं घुसने देता। जनता उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। हद से हद उसका तबादला कर दो। जहां जाएगा, गाड़ी, बंगला, चपरासी, सब कुछ मिलेगा। अब आप ही बताइये, जिसका ज्यादा समर्पण और ज्यादा जवाबदेही है, वही तो ज्यादा जिम्मेदार हुआ।


शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

अगर बच्चा बुहारी लगाए तो मेहमान आता है?

हम रोजाना घर में बुहारी लगाते हैं। संपन्न लोगों के घर में काम वाली बाई बुहारी लगाती है। यह एक सामान्य बात है। लेकिन अगर कभी कोई बच्चा खेल-खेल में बुहारी लगाए तो यह माना जाता है कि कोई मेहमान आने वाला है। तभी तो उसे कहते हैं कि क्या किसी मेहमान को बुला रहा है? इस मान्यता का कोई ठोस कारण अथवा वैज्ञानिक आधार विद्वानों की जानकारी में हो तो पता नहीं, मगर आम जनमानस उससे अनभिज्ञ है। वह तो इस तथ्य को परंपरागत रूप से मान्यता के रूप में ही लेता है। जहां तक मेरी समझ है, ऐसा प्रतीत होता है कि चूंकि बच्चा सहज व सरल होता है, मन-बुद्धि विशुद्ध होते हैं, उसमें अभी सांसारिक विकृतियां प्रवेश नहीं की होती हैं, इस कारण उसकी छठी इन्द्री प्रकृति के संकेतों को ग्रहण कर लेती होगी। चूंकि हम वयस्कों की नैसर्गिक शक्तियां कई प्रकार के झूठ, प्रपंच आदि के कारण शिथिल हो जाती हैं, इस कारण हमारी छठी इन्द्री संकेत ग्रहण करने की क्षमता खो देती होगी। संभव है कि अनुभव से ऐसी मान्यता स्थापित हुई हो कि बच्चा बुहारी लगाए तो वह किसी मेहमान के आने का संकेत होता है। यद्यपि बच्चे को उस संकेत का भान नहीं होता, मगर उस संकेत की वजह से वह सहज ही बुहारी लगाने लगता होगा। ऐसा छत पर बैठे-बैठे कौए के कांव-कांव करने पर भी कहा जाता है। शायद कौवे में भी संकेत ग्रहण करने की क्षमता हो।


लोकप्रिय नेता कौन?

यह आम धारणा है कि जो नेता अपने क्षेत्र में विकास कार्य करवाता है, वह लोकप्रिय हो जाता है। यह तथ्य है तो सही, मगर पूर्ण सत्य नहीं। असल में लो...