सोमवार, 30 दिसंबर 2019

अंत्येष्टि के दौरान कपाल क्रिया होने पर वहां मौजूद लोग जगह क्यों छोड़ते हैं?

आपने देखा होगा कि जब हम किसी की अंत्येष्टि में जाते हैं तो कपाल क्रिया के दौरान लोग एक-दूसरे को जगह छोडऩे को कहते हैं, अर्थात जिस स्थान पर हम बैठे होते हैं, उसे बदलने को कहा जाता है। सभी ऐसा करते भी हैं। मैने इस बारे में अनेक लोगों से बात की कि जगह क्यों छोड़ी जाती है, मगर किसी को यह जानकारी नहीं है कि इसकी वजह क्या है? अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए मैंने अनेक पुस्तकें खंगाली। मुझे याद नहीं कि इस बारे में कहां पढ़ा, मगर इस बारे में इशारा करती कुछ बातें मेरे ख्याल में है।
ऐसी मान्यता है कि अंत्येष्टि के दौरान मृत आत्मा देह में ही कपाल के भीतर ब्रह्मरंद्र में होती है। कपाल की हड्डी चूंकि बहुत मजबूत होती है, इस कारण उस पर घी डाल कर उसे तोड़ा जाता है। बताते हैं कि कपाल क्रिया करने पर ही आत्मा की देह से मुक्ति होती है। देह से मुक्त उसे इसलिए किया जाता है, ताकि वह आगे की यात्रा को प्रस्थान करे। कपाल क्रिया से पहले तक उसका अटैचमेंट न केवल अपने जलते शरीर से अपितु आसपास के दृश्य भी होता है। उस अटैचमेंट को समाप्त करने के लिए श्मशान में मौजूद सभी लोग कपाल क्रिया होते ही अपनी-अपनी जगह छोड़ कर दूसरी जगह पर बैठते हैं और नए नया दृश्य बन जाता है। एक झटके में जब पुराना दृश्य आत्मा को नहीं दिखाई देता तो स्वाभाविक रूप से उसका श्मशान स्थल से डिटेचमेंट हो जाता है। यानि कि यदि दृश्य नहीं बदला जाए तो आत्मा का पुराने दृश्य से संबंध बना रहेगा और वह श्मशान स्थल से मुक्त नहीं हो पएगी। हम समझ सकते हैं कि वर्षों तक भौतिक शरीर व दुनिया में रहते हुए हमारा कितना गहरा संबंध हो जाता है। शरीर जलने के बाद आत्मा यहीं अटकी रहना चाहती है। उसे जबरन कपाल से मुक्त कराना होता है। इतना ही अंत्येष्टि के दौरान मौजूद दृश्य से भी उसका संबंध विच्छेद कराने का प्रयास करना होता है। यह मेरी नजर में बैठा तथ्य है, हो सकता है वास्तविकता कुछ और हो। मेरा यह दावा नहीं कि मैं ही सही हूं।
आपने देखा होगा कि अंत्येष्टि के बाद जब परिजन घर लौटते हैं तो कपाल क्रिया करने वाला देहलीज पर मृत आत्मा से अपने संबंध का जोर से उच्चारण करता है। जैसे पिताजी, बाबोसा, दादाजी इत्यादि। इस का कारण जानने की मैंने बहुत कोशिश की है, मगर अभी तक जानकारी नहीं मिल पाई है। हो सकता है, ऐसा मृत आत्मा का आह्वान करने के लिए किया जाता हो ताकि वह श्मशान के बाद घर पर आ जाए। शास्त्रों में बताया गया है कि तेरह दिन पर आत्मा का वास घर में ही रहता है। उसके बाद की यात्राओं का वर्णन गरुण पुराण सहित अन्य शास्त्रों में मौजूद है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com 

1 टिप्पणी:

  1. सारगर्भित पोस्ट,हम आधुनिक होने के चक्कर मे अपने हिन्दू धर्म की गहराई और वैज्ञानिकता से नितांत अपरिचित होते जा रहे है विशेषत: हमारी नई पीढ़ी। जन्म से लेकर अन्नप्राशन, विद्यालय प्रवेश, विवाह, सनन्तति,दाह संस्कार, कपाल क्रिया सभी संस्कारों मन्दिर में तुलसी,घण्टे का नाद,शिवलिंग की अर्धपरिकर्मा,सिर पर चोटी, महिलाओं के विभिन्न अंगों के आभूषण आदि सभी के पीछे वैज्ञानिक कारण रहे है।संवित सोमगिरि जी महाराज ने हमेशा हमारी ऐसी जिज्ञासाओं का निवारण किया।"शिव तत्व" पर उनका प्रवचन वैज्ञानिक तर्को पर आधारित रहा।उनका भी यही मत था कि तेरह दिनों तक दिवगंत की आत्मा का सम्पर्क परिवार के साथ रहता है और कपाल क्रिया भी आत्मा के सांसारिक बन्धनों को विच्छेद करने में सहायक होती है। जब हनुमान चालीसा के श्लोक "युग सहस्त्र योजन पर भानु" को हम रटते थे पर हमें ज्ञान नही था कि इस श्लोक का अर्थ बताता है कि पृथ्वी से 1536000000 किमी दूर सूर्य को हनुमान जी ने निगल लिया,पर जब "नासा" ने बताया कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी इतनी है तो हमारे सन्तों ने बताया कि यह तो हनुमान चालीसा में हज़ारों साल पहले ही लिख दिया गया था।ऐसे ऐसे कई रहस्य हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रन्थों में छुपे है जिनको जानने का प्रयास हमारी नई पीढ़ी सहित सबको करना चाहिये.

    ss ahuja

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