हमारे यहां धर्म स्थलों व घर के मंदिरों में अगरबत्ती जलाने का चलन है। यह आम है। मगर कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि ऐसा करना अनुचित है। वे शास्त्रों के हवाले से सवाल खड़ा करते हैं कि जिस बांस की लकड़ी को चिता में भी जलाना वर्जित है, हम उस बांस से बनी अगरबत्ती को मंदिर में कैसे जला सकते हैं। वे कहते हैं कि शव को भले ही बांस व उसकी खपच्चियों से बनी सीढ़ी पर रख कर श्मशान पहुंचाते हैं, उसे जलाते वक्त उसे अलग कर देते हैं, क्यों कि बांस जलाने से पित्र दोष लगता है। उनका तर्क है कि शास्त्रों में पूजन विधान में कहीं पर भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता। सब जगह धूप करने का ही जिक्र है। ज्ञातव्य है कि जिस प्रकार हिंदू अगर का धूप करते हैं, वैसे ही मुस्लिम लोबान का धूप जलाते हैं। इससे वातावरण शुद्ध होता है और सकारत्मकता आती है।
इस बारे में वैज्ञानिक तर्क ये है कि बांस में सीसा प्रचुर मात्रा में होता है और उसके जलने पर लेड आक्साइड बनता है, जो कि खतरनाक है। इसके अतिरिक्त अगरबत्ती में सुंगध के साथ फेथलेट केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, वह गंध के साथ सांस में प्रविष्ट होता है, जिससे फेफड़ों को नुकसान होता है। सीसे से केंसर व बे्रन स्टॉक का खतरा होता है। लीवर भी इससे प्रभावित होता है। इसी कारण अनेक लोग अगरबत्ती की जगह धूप व विभिन्न प्रकार की धूप बत्तियां काम में लेते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
इस बारे में वैज्ञानिक तर्क ये है कि बांस में सीसा प्रचुर मात्रा में होता है और उसके जलने पर लेड आक्साइड बनता है, जो कि खतरनाक है। इसके अतिरिक्त अगरबत्ती में सुंगध के साथ फेथलेट केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, वह गंध के साथ सांस में प्रविष्ट होता है, जिससे फेफड़ों को नुकसान होता है। सीसे से केंसर व बे्रन स्टॉक का खतरा होता है। लीवर भी इससे प्रभावित होता है। इसी कारण अनेक लोग अगरबत्ती की जगह धूप व विभिन्न प्रकार की धूप बत्तियां काम में लेते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
तेजवानी सर आप ने बहुत ही अच्छा के साथ ज्ञानवर्धन चीजे लिखी है, आप ऐसे ही बेह्तरीन ब्लॉग लिखते रहिए और हम सभी को ऐसे ही जानकारियां देते रहिए. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजी, शुक्रिया
हटाएंSahi
जवाब देंहटाएंजी, शुक्रिया
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