आपको यह जानकर निश्चित ही आश्चर्य होगा कि पूर्व राज्यसभा सदस्य व आसन्न राज्यसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी औंकार सिंह लखावत मूलत: सिंधी हैं। यह तथ्य किसी अन्य ने नहीं, अपितु स्वयं लखावत ने उद्घाटित किया है। इतना ही नहीं उन्होंने खुद के सिंधी होने पर गर्व भी अभिव्यक्त किया है।
दरअसल 15 जून को स्वामी न्यूज के एमडी कंवलप्रकाश किशनानी की पहल पर सिंधुपति महाराजा दाहरसेन विकास व समारोह समिति की ओर से महाराजा दाहरसेन के 1308वें बलिदान दिवस की पूर्व संध्या पर फेसबुक लाइव पर अंतरराष्ट्रीय ऑन लाइन परिचर्चा आयोजित की गई थी। ज्ञातव्य है कि अजमेर में महाराजा दाहरसेन के नाम पर एक बड़ा स्मारक बनाने का श्रेय लखावत के खाते में दर्ज है। तब वे तत्कालीन नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष थे। जब उन्होंने यह स्मारक बनवाया, तब अधिसंख्य सिंधियों तक को यह पता नहीं था कि महाराज दाहरसेन कौन थे? लखावत ने दाहरसेन की जीवनी का गहन अध्ययन करने के बाद यह निश्चय किया कि आने वाली पीढिय़ों को प्रेरणा देने के लिए ऐसे महान बलिदानी महाराजा का स्मारक बनाना चाहिए।
लखावत परिचर्चा के दौरान अपने धारा प्रवाह उद्बोधन में बहुत विस्तार से दाहरसेन के व्यक्तित्व व कृतित्व तथा सिंध के इतिहास की जानकारी दी। इसी दरम्यान प्रसंगवश उन्होंने बताया कि इन दिनों वे अपने पुरखों के बारे में पुस्तक लिख रहे हैं। प्राचीन पांडुलिपियों का अध्ययन करने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके पूर्वज पाराकरा नामक स्थान के थे। जब और अध्ययन किया तो पता लगा कि पाराकरा सिंध में ही था। अर्थात वे मूलत: सिंधी ही हैं। उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि उनके पूर्वज सिंध के थे और वे अपने आपको सिंधी होने पर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। अपनी बात रखते हुए उन्होंने चुटकी भी ली कि उनका मन्तव्य न तो राजनीति करना है और न ही वे टिकट मांगने जा रहे हैं।
बेशक, लखावत का रहस्योद्धाटन करने का मकसद कोई राजनीति करना नहीं होगा, मगर उनके सिंधी होने का तथ्य राजनीतिक हलके में चौंकाने वाला है। साथ ही रोचक भी। ऐसा प्रतीत होता है कि मूलत: सिंधी होने के कारण ही उनकी अंतरात्मा में सिंध के महाराजा दाहरसेन का स्मारक बनवाने का भाव जागृत हुआ होगा। दाहरसेन स्मारक बनवा कर अपने पूर्वजों व महाराजा दाहरसेन के ऋण से उऋण होने पर वे कितने कृतकृत्य हुए होंगे, इसका अनुभव वे स्वयं ही कर सकते हैं।
यहां यह स्पष्ट करना उचित ही होगा कि सिंधी कोई जाति या धर्म नहीं है। विभाजन के वक्त भारत में आए सिंधी हिंदू हैं और सिंधियों में भी कई जातियां हैं। जैसे राजस्थान में रहने वाले विभिन्न जातियों के लोग राजस्थानी कहलाते हैं, गुजरात में रहने वाले सभी जातियों के लोग गुजराती कहे जाते हैं, वैसे ही सिंध में रहने वाले और उनकी बाद की पीढिय़ों के सभी जातियों के लोग भी सिंधी कहलाए जाते हैं। अत: लखावत के सिंधी होने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
बेशक, सिंध के महाराजा दाहरसेन के नाम पर स्मारक बनवाने की वजह से सिंधी समुदाय की नजर में लखावत का विशेष सम्मान है। और अब जब यह भी तथ्य भी उजागर हुआ है कि लखावत सिंधी ही हैं तो सिंधी समाज अपने आपको और अधिक गौरवान्वित महसूस करेगा कि उनके समाज का व्यक्ति आज किस मुकाम पर है।
यहां यह उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि अजमेर नगर निगम के मेयर पद के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार कमल बाकोलिया को उनके पिताश्री स्वतंत्रता सैनानी स्वर्गीय हरीशचंद्र जटिया के सिंध से होने का राजनीतिक लाभ हासिल हुआ था।
यहां यह उल्लेखनीय है कि परिचर्चा में मूलत: सिंधी व वर्तमान में अमेरिका में निवास करने वाले साहित्यकार मुनवर सूफी लघारी ने भी महाराजा दाहरसेन के बलिदान को रेखांकित किया। उन्होंने पाकिस्तान में रहने वालों की मजबूरी का इजहार किया और कहा कि भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है। ऐसे में हिन्दुस्तान के हर शहर में राजा दाहरसेन का स्मारक व मार्ग का नामकरण होना चाहिए।
इस मौके पर महामंडलेश्वर स्वामी हंसराम जी महाराज ने भी सिंध व दाहरसेन की महिमा पर प्रकाश डाला। भारतीय सिन्धु सभा के राष्ट्रीय मंत्री महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने जानकारी दी कि 1997 में महाराजा दाहरसेन स्मारक का निर्माण हुआ था। सिन्धु सभा का ध्येय वाक्य है कि सिन्ध मिल कर अखंड भारत बने। कार्यक्रम का संचालन करते हुये स्वामी न्यूज के एमडी कंवल प्रकाश किशनानी ने संगोष्ठी की विस्तृत रूपरेखा रखते हुए कहा कि लॉक डाउन के कारण यह ऑन लाइन संगोष्ठी देश-दुनिया में महाराजा दाहरसेन के जीवन की गौरव गाथा लोगों तक पहुंचाने के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
लखावत खुद को सिंधी बताते हुए कितने गद् गद् थे, इसको जानने के लिए आप निम्नांकित लिंक पर जा कर पूरी परिचर्चा यूट्यूब पर देख सकते हैं:-
https://youtu.be/PiFZ7TsMWJw
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
दरअसल 15 जून को स्वामी न्यूज के एमडी कंवलप्रकाश किशनानी की पहल पर सिंधुपति महाराजा दाहरसेन विकास व समारोह समिति की ओर से महाराजा दाहरसेन के 1308वें बलिदान दिवस की पूर्व संध्या पर फेसबुक लाइव पर अंतरराष्ट्रीय ऑन लाइन परिचर्चा आयोजित की गई थी। ज्ञातव्य है कि अजमेर में महाराजा दाहरसेन के नाम पर एक बड़ा स्मारक बनाने का श्रेय लखावत के खाते में दर्ज है। तब वे तत्कालीन नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष थे। जब उन्होंने यह स्मारक बनवाया, तब अधिसंख्य सिंधियों तक को यह पता नहीं था कि महाराज दाहरसेन कौन थे? लखावत ने दाहरसेन की जीवनी का गहन अध्ययन करने के बाद यह निश्चय किया कि आने वाली पीढिय़ों को प्रेरणा देने के लिए ऐसे महान बलिदानी महाराजा का स्मारक बनाना चाहिए।
लखावत परिचर्चा के दौरान अपने धारा प्रवाह उद्बोधन में बहुत विस्तार से दाहरसेन के व्यक्तित्व व कृतित्व तथा सिंध के इतिहास की जानकारी दी। इसी दरम्यान प्रसंगवश उन्होंने बताया कि इन दिनों वे अपने पुरखों के बारे में पुस्तक लिख रहे हैं। प्राचीन पांडुलिपियों का अध्ययन करने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके पूर्वज पाराकरा नामक स्थान के थे। जब और अध्ययन किया तो पता लगा कि पाराकरा सिंध में ही था। अर्थात वे मूलत: सिंधी ही हैं। उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि उनके पूर्वज सिंध के थे और वे अपने आपको सिंधी होने पर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। अपनी बात रखते हुए उन्होंने चुटकी भी ली कि उनका मन्तव्य न तो राजनीति करना है और न ही वे टिकट मांगने जा रहे हैं।
बेशक, लखावत का रहस्योद्धाटन करने का मकसद कोई राजनीति करना नहीं होगा, मगर उनके सिंधी होने का तथ्य राजनीतिक हलके में चौंकाने वाला है। साथ ही रोचक भी। ऐसा प्रतीत होता है कि मूलत: सिंधी होने के कारण ही उनकी अंतरात्मा में सिंध के महाराजा दाहरसेन का स्मारक बनवाने का भाव जागृत हुआ होगा। दाहरसेन स्मारक बनवा कर अपने पूर्वजों व महाराजा दाहरसेन के ऋण से उऋण होने पर वे कितने कृतकृत्य हुए होंगे, इसका अनुभव वे स्वयं ही कर सकते हैं।
यहां यह स्पष्ट करना उचित ही होगा कि सिंधी कोई जाति या धर्म नहीं है। विभाजन के वक्त भारत में आए सिंधी हिंदू हैं और सिंधियों में भी कई जातियां हैं। जैसे राजस्थान में रहने वाले विभिन्न जातियों के लोग राजस्थानी कहलाते हैं, गुजरात में रहने वाले सभी जातियों के लोग गुजराती कहे जाते हैं, वैसे ही सिंध में रहने वाले और उनकी बाद की पीढिय़ों के सभी जातियों के लोग भी सिंधी कहलाए जाते हैं। अत: लखावत के सिंधी होने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
बेशक, सिंध के महाराजा दाहरसेन के नाम पर स्मारक बनवाने की वजह से सिंधी समुदाय की नजर में लखावत का विशेष सम्मान है। और अब जब यह भी तथ्य भी उजागर हुआ है कि लखावत सिंधी ही हैं तो सिंधी समाज अपने आपको और अधिक गौरवान्वित महसूस करेगा कि उनके समाज का व्यक्ति आज किस मुकाम पर है।
यहां यह उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि अजमेर नगर निगम के मेयर पद के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार कमल बाकोलिया को उनके पिताश्री स्वतंत्रता सैनानी स्वर्गीय हरीशचंद्र जटिया के सिंध से होने का राजनीतिक लाभ हासिल हुआ था।
यहां यह उल्लेखनीय है कि परिचर्चा में मूलत: सिंधी व वर्तमान में अमेरिका में निवास करने वाले साहित्यकार मुनवर सूफी लघारी ने भी महाराजा दाहरसेन के बलिदान को रेखांकित किया। उन्होंने पाकिस्तान में रहने वालों की मजबूरी का इजहार किया और कहा कि भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है। ऐसे में हिन्दुस्तान के हर शहर में राजा दाहरसेन का स्मारक व मार्ग का नामकरण होना चाहिए।
इस मौके पर महामंडलेश्वर स्वामी हंसराम जी महाराज ने भी सिंध व दाहरसेन की महिमा पर प्रकाश डाला। भारतीय सिन्धु सभा के राष्ट्रीय मंत्री महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने जानकारी दी कि 1997 में महाराजा दाहरसेन स्मारक का निर्माण हुआ था। सिन्धु सभा का ध्येय वाक्य है कि सिन्ध मिल कर अखंड भारत बने। कार्यक्रम का संचालन करते हुये स्वामी न्यूज के एमडी कंवल प्रकाश किशनानी ने संगोष्ठी की विस्तृत रूपरेखा रखते हुए कहा कि लॉक डाउन के कारण यह ऑन लाइन संगोष्ठी देश-दुनिया में महाराजा दाहरसेन के जीवन की गौरव गाथा लोगों तक पहुंचाने के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
लखावत खुद को सिंधी बताते हुए कितने गद् गद् थे, इसको जानने के लिए आप निम्नांकित लिंक पर जा कर पूरी परिचर्चा यूट्यूब पर देख सकते हैं:-
https://youtu.be/PiFZ7TsMWJw
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
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