शनिवार, 15 अगस्त 2020

ध्यान करने का सबसे आसान तरीका क्या है?

मैं कोई योगी नहीं हूं। एक साधारण सा साधक हूं। साधारण साधक कहना भी शायद कुछ ज्यादा हो जाएगा। ध्यान के अनुभव में जरूर उतरा हूं, लेकिन मैं अपने आपको ध्यान के बारे बताने के लिए अथोरिटी नहीं मानता। यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि अब मैं ध्यान के बारे में चर्चा करने जा रहा हूं। अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि एक पाठक मित्र के आग्रह पर। उन्होंने ध्यान के संबंध में भी कुछ लिखने का अनुरोध किया है?

ध्यान की व्याख्या करने की बजाय में सीधी-सीधी बात करना चाहता हूं। जहां तक मेरी समझ है, यह एकाग्रता का चरम बिंदु है। व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है कि उसे किस विधि से ध्यान करने में सुविधा होगी। चूंकि इस दुनिया में हर व्यक्ति इकलौता अर्थात यूनीक है, इस कारण हर व्यक्ति का मानसिक स्तर व आत्मिक शक्ति उसकी वैयक्तिक विशेषता होती है। उसे ध्यान की कौन सी विधि आसान लगती है, या आसान रहेगी, यह उसी पर निर्भर करता है। अलबत्ता पारंगत गुरू जरूर बता सकता है कि किस को कौन सी विधि अपनानी चाहिए, चूंकि वह उसके भीतर प्रवेश करने में सक्षम होता है। 

मैं सिर्फ अपने अनुभव की बात करता हूं। ध्यान मूलत: एकाग्रता की परिणति है। मैंने भिन्न विधियों से ध्यान के प्रयोग किए हैं। किसी विधि में ध्यान जल्द लग जाता है, जबकि किसी में कुछ वक्त लगता है। ध्यान का सबसे पहला प्रयोग पानी पीने के दौरान किया। बाद में वह अभ्यास में आ गया। जब भी पानी पीता हूं, केवल पानी पीने पर ही ध्यान लगा देता हूं। कैसे पानी गले से नीचे उतर रहा है, उसे गहरे से अनुभव करने की कोशिश करता हूं। यह एक छोटा सा प्रयोग है, लेकिन यह ध्यान की दिशा में एक कदम बन सकता है। प्रयास करता हूं कि जब भी कोई भी काम करूं, तब केवल उसी पर एकाग्र रहूं। इससे मुझे ध्यान की समझ आई।

भ्रूमध्य पर ध्यान एकाग्र करना, ओम की बाहर से सुनाई देने वाली ध्वनि अथवा स्वयं उच्चारण करते हुए उस पर ध्यान एकाग्र करना, त्राटक करना आदि जैसे अनेक प्रयोग किए हैं, मगर मेरी नजर में सबसे आसान विधि है श्वांस पर ध्यान केन्द्रित करना। वजह ये कि इसमें विशेष प्रयास नहीं करना होता। सर्वविदित है कि श्वांस आती है और जाती है। भीतर प्रवेश करती है और बाहर निकलती है। स्वत:। उसके लिए कोई प्रयास नहीं करना होता। हां, प्राणायाम के दौरान अलबत्ता श्वांस लेने व छोडऩे की अवधि और उसकी गति पर नियंत्रण करने के लिए प्रयास करना पड़ता है, लेकिन एक सीमा तक वह संभव है। वस्तुत: श्वांस पर हमारा कोई जोर नहीं। हम उसे रोक नहीं सकते। अपनी ओर से चलाने का तो कोई सवाल ही नहीं है। तो मैने इस विधि को चुना। प्रकृति प्रदत्त माध्यम के साथ सहयोग करते हुए। इसमें करना ये होता है कि हम अपना पूरा ध्यान श्वांस की गति पर केन्द्रित कर लेते हैं। वह आ रही है, जा रही है, उसी के साथ मन को जोडऩा होता है। जोडऩा शब्द भी ठीक नहीं है, सिर्फ उस को ख्याल में रखना है। मन स्वत: जुड़ जाएगा। धीरे-धीरे अभ्यास से हम मन को जोडऩे की अवधि बढ़ा सकते हैं। जैसे ही मन पूरी तरह से श्वांस की गति से जुड़ जाता है, हम ध्यानस्थ होने लगते हैं। मन तिरोहित होने लगता है। विचार शून्य होने लगते हैं। विचार शून्य होते ही हम ध्यान में स्थित हो जाते हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि ऐसा कभी भी, कहीं भी, किसी भी मुद्रा में किया जा सकता है। यह उतना आसान नहीं है, जितना सहजता से बताया गया है, लेकिन अभ्यास से संभव है।

ध्यान लगने से पहले अनेक प्रकार की अनुकूल-प्रतिकूल अनुभूतियां हो सकती हैं। कई मैने खुद अनुभव की हैं तो कुछ के बारे में जानकारी मिली है। वह भयावह हो सकती है। सुखद भी। कई प्रकार के दृश्य निर्मित हो सकते हैं। ध्वनियां सुनाई पड़ सकती हैं। विशेष गंध का अहसास हो सकता है। भिन्न प्रकार की रोशनियां अथवा तेज प्रकाश नजर आ सकता है। ध्यान के माध्यम से पिछले जन्मों की यात्रा करने वालों की पिछले जन्म की अनुभूतियां सजीव हो सकती है। किसी देवी-देवता के दर्शन हो सकते हैं, हालांकि वे वही देवी-देवता होते हैं, जो हमने पहले से चित्रों व मूर्तियों को देख कर मस्तिष्क में संग्रहित कर रखे हैं। मुझे नहीं लगता कि वे दर्शन देने आते हैं। यह भ्रम मात्र है। यह आस्था व विश्वास का मामला है, जिसका कोई तार्किक आधार नहीं है। शरीर हल्का महसूस हो सकता है। कभी आकाश में विचरण करने का आभास हो सकता है। ऐसा भी लग सकता है कि शरीर के नीचे व ऊपर का हिस्सा अलग हो गया है, जिनके बीच खाली स्थान सा प्रतीत हो सकता है। हालांकि एक ऊर्जावान सूत्र से वे जुड़े होते हैं। कभी ये भी लग सकता है कि आपकी ऊंचाई बढ़ गई है, यानि के आप जुड़े तो जमीन से हैं, मगर ऊंचे हो गए हैं। ये सब ध्यान करने की प्रक्रिया के दौरान होने वाले अनुभव हैं। उन पर अटकने का कोई मतलब नहीं है। उनके अर्थ निकालने का प्रयास करेंगे तो निकाल पाएं, न पाएं, मगर हम ध्यान के अपने मुख्य उद्देश्य से भटक जाएंगे। असल में वे बाधाएं हैं। मार्ग में आने वाले ऑब्जेक्ट्स हैं। किसी को कम तो किसी को ज्यादा रुकावटें आ सकती हैं। हम को तो सिर्फ श्वांस पर ही चित्त एकाग्र करके रखना है। जैसे ही आप ध्यानस्थ हो जाएंगे, आपको विलक्षण आनंददायक अनुभव होने लगेगा। इच्छा होगी कि वहीं पर टिके रहें। फिलहाल इतना ही। फिर कभी इस पर किसी और एंगल से चर्चा करेंगे। सनद रहे, यह मेरा अनुभव मात्र है। इससे इतर बहुत कुछ है इस क्षेत्र के बारे में जानने के लिए, वहां तक मेरी पहुंच नहीं है।


-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.com

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