हाल ही मेरे एक मित्र ने मेरे सामने एक ऐसा सवाल खड़ा कर दिया, जिसने मुझे सोचने को मजबूर कर दिया। उनकी बात तर्क के लिहाज से ठीक प्रतीत होती है, मगर होना क्या चाहिए, इस पर आप सुधि पाठक विचार कर सकते हैं।
सवाल है कि सुखी रहने के लिए हम देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। उनके चित्रों-मूर्तियों के आगे दिया-बत्ती, अगरबत्ती जलाते हैं, मगर जिन वैज्ञानिकों ने हमारी जिंदगी में भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए एक से बढ़ कर एक अविष्कार किए, उनकी पूजा तो दूर, याद तक नहीं करते। उनके सवाल में तनिक नास्तिकता झलकती है, वो इसलिए कि उन्होंने जिस ढ़ंग से सवाल किया, वह ऐसा आभास देता है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि पंक्चर ठीक करने वाला एक दुकानदार सुबह दुकान खोलने पर किसी न किसी देवता के आगे अगरबत्ती जलाता है, इस उम्मीद में कि उसकी रोजी-रोटी ठीक से चले। पता नहीं, अगरबत्ती करने से ऐसा होता भी है या नहीं, पता नहीं, क्योंकि बावजूद पूजा के उसके जीवन में कष्ट होते ही हैं। सुख के साथ सारे दु:ख भी भोगता है। कोरोना महामारी में लॉक डाउन के दौरान सभी देवी-देवताओं के मंदिरों के पट बंद हो गए। वे पूजा-अर्चना से वंचित रह गए। वे महामारी के असर से अपने आपको नहीं बचा पाए। इसके आगे वे कहते हैं कि वह दुकानदार ऐसे ही देवी-देवता के आगे अगरबत्ती करता है, मगर जिन वैज्ञानिकों के अविष्कारों के बदोलत वह पंक्चर ठीक कर पाता है, उनका उसे ख्याल ही नहीं। जिन विज्ञान ऋषियों के सदके उसकी रोजी-रोटी चलती है, उनका उसे कोई स्मरण ही नहीं। जिस वैज्ञानिक ने बिजली की खोज की, जिस वैज्ञानिक ने प्रेशर पंप बनाया, क्या उसके चित्र के आगे उसे अगरबत्ती नहीं करनी चाहिए? उसके मन में ये विचार क्यों नहीं आता कि जिन वैज्ञानिकों के कारण उसकी आजीविका चल रही है, उनका चित्र लगा कर भी अगरबत्ती कर दे। सच तो ये है जिन वैज्ञानिकों ने विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया, उसी की बदोलत में हमारे जीवन में सारे भौतिक सुख-सुविधाओं के साधन मौजूद हैं। जिस प्रकार ज्ञान के भंडार वेदों की ऋचाएं किसी एक ऋषि ने नहीं लिखी, एक लंबी शृंखला है ऋषियों की। उनकी वजह से ही हमें आध्यात्मिक समझ है। ठीक उसी प्रकार वैज्ञानिकों की भी एक लंबी शृंखला है, जिन्होंने उत्तरोत्तर नई नई खोजें कीं। सुख-सुविधाओं के साधनों के नाम पर आज क्या नहीं है हमारे पास।
बहरहाल, मेरे मित्र का सवाल सीधे-सीधे तो मेरे गले नहीं उतरा, क्योंकि देवी-देवता अपनी जगह हैं, वैज्ञानिक अपनी जगह। वस्तुत: देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना आस्था का सवाल है। हमें यकीन है कि हमारे शास्त्रों में जो कुछ भी बताया गया है, वह सही है। कई लोगों ने अनुभव भी किया होगा कि देवी-देवता आराधना, पूजा-अर्चना करने पर वे फल देते हैं। अत: उस पर तो सवाल बनता ही नहीं। हां, ये ठीक है कि जिन वैज्ञानिकों ने वास्तव में प्रत्यक्षत: हमारे जीवन में सुख के साधन जुटाएं हैं, वे भी सम्मान के पात्र हैं। जब हम अपने पूर्वजों, अपने नेताओं की मूर्तियों के आगे हर साल जयंती व पुण्य तिथी पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, तो वैज्ञानिकों को क्यों नहीं श्रद्धा के साथ याद करना चाहिए? क्या उनके नाम भी एक दिया नहीं बनता?
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
सटीक विश्लेषण। विचारोत्तेजक। विचारणीय।
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया, इसी प्रकार उत्साह बढाते रहियेगा
हटाएंsupern sir, App aise hi likhte rahiye, Dhanywad
जवाब देंहटाएंthank u ji
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