शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

झूठ बोले कौआ काटे, कोई और पक्षी क्यों नहीं?


आपने देखा होगा कि यदि कोई कहीं जा रहा होता है तो मारवाड़ी में यह पूछना अशुभ माना जाता है कि कठे जावे है? उसकी बजाय ये पूछा जाता है सिद जावे है? वजह साफ है। ककार को अच्छा नहीं माना जाता। बड़ी दिलचस्प बात है कि जितने भी सवाल हैं, क्या, कब, कहां, कौन, कितने, क्यों इत्यादि क अक्षर से ही आरंभ होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सवालिया निशान को सकारात्मक नहीं समझा जाता है। सवाल भले ही पूर्ण नकारात्मक न भी हो, तो भी कम से कम अद्र्ध नकारात्मक तो है ही, क्यों कि उसमें पचास प्रतिशत नकार की संभाव्यता है।

यह भी एक अजब संयोग है कि मृत्यु के पर्यायवाची शब्द काल में भी क पहला अक्षर है। इसी प्रकार रंगों में काला रंग अशुभता का प्रतीक है। तभी तो विरोध प्रदर्शन में काले रंग का झंडा इस्तेमाल किया जाता है। किसी को अपमानित करने के लिए उसके मुंह को काले रंग से ही पोता जाता है। हालांकि ऐसे भी धार्मिक पंथ हैं, जिनमें काले रंग का महत्व है, उसी वजह से उस पंथ को मानने वाले काला लबादा ओढ़ते हैं, नकाब और बुरका भी काला पहना जाता है। उनका अपना अलग दर्शन है। आजकल तो काले रंग की टीशर्ट व शर्ट बड़े शौक से पहनी जाती है। इसी प्रकार शर्ट भले ही किसी भी रंग की हो, लेकिन काले रंग की पेंट हर रंग के साथ सूट करती है। 

वकीलों के ड्रेस कोड में काला कोट व काले रंग की धारीदार पेंट को क्यों तय किया गया, यह तो पता नहीं, मगर आम धारणा ये है कि न्याय व सत्य को हासिल करने के मार्ग में असत्य व झूठ को भी दृढ़ता से प्रस्तुत होने का मौका दिया जाता है, तभी न्यायाधीश आखिरी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे, जिन्होंने यह सोच कर वकालत का पेशा नहीं चुना, क्योंकि उनकी धारणा है कि उसमें झूठ बोलना पड़ता है। 

काले रंग की बात आई तो यकायक याद आया कि परम सत्ता में लीन स्वामी हिरदाराम जी महाराज को उस पर बहुत आपत्ति थी। वे अपने शिष्यों व अनुयाइयों को काले रंग के वस्त्र पहन कर न आने को कहा करते थे। उनकी मान्यता थी कि काला रंग मनुष्य में नकारात्मक विचार पैदा करता है। इसी कारण उनकी कुटिया में आशीर्वाद लेने के लिए जाने वाले लोग अमूमन सफेद रंग के वस्त्र पहन कर जाते थे। आज भी वह परंपरा कायम है।

हमारे यहां शुभ कार्यों में शिरकत करने वाले काले रंग के वस्त्र पहनने से परहेज करते हैं। परंपरा है कि नवविवाहित जोड़ा कुछ समय तक काले रंग के कपड़े नहीं पहना करता। रंग विज्ञान के जानकार पढ़ाई में काले रंग की स्याही इस्तेमाल करने को अच्छा नहीं मानते। उसकी बजाय नीले रंग की स्याही काम में लेने का सुझाव देते हैं। काला शब्द इतना बुरा है कि अवैध तरीके से कमाई हुई पूंजी को काला धन कहा जाता है। इसी प्रकार किसी पर प्रतिबंध लगाने के लिए उसे ब्लैक लिस्ट किया जाता है। दुनिया में काले व गोरे का रंग भेद कितने सालों से चल रहा है। गोरे अपने आपको अधिक श्रेष्ठ मानते हैं। हालांकि ब्लैक ब्यूटी की अपनी महत्ता है, मगर सभी लड़के व लड़कियां गोरे रंग के विपरीत लिंगी को पसंद करते हैं।

कैसी विचित्र बात है कि ग्रहों में दंडाधिकारी की भूमिका अदा करने वाले शनि, जिनके प्रकोप से सभी डरते हैं, की प्रतिमा काले रंग की ही होती है। उन्हें तुष्ट करने के लिए काले रंग के कुत्ते को रोटी खिलाने की सलाह दी जाती है। इसी प्रकार कष्ट निवारण के लिए काले रंग की गाय को रोटी पर हल्दी, काले तिल व गुड़ रख कर खिलाने का उपाय बताया जाता है।

काले रंग के प्रति इतना निषेधात्मक नजरिया है कि झूठ के बारे में कहावत बनी कि झूठ बोले कौआ काटे। किसी और पक्षी के काटने की बात नहीं कही गई है। इसी कहावत में चंद शब्द और जोड़ते हुए एक फिल्मी गीत भी बना कि झूठ बाले कौआ काटे, काले कौए से डरियो। 

बेशक श्राद्ध पक्ष में बड़ी श्रद्धा से कौअे को खिलाया जाता है, मगर आम तौर पर अन्य सभी पक्षियों की तुलना में उसे अच्छा नहीं माना जाता। कदाचित कर्कश आवाज के कारण। कोयल भी काली होती है, लेकिन अपनी मधुर आवाज के कारण सुखद अहसास देती है। कौए के प्रति पृथक दृष्टिकोण का कोई और रहस्य भी हो सकता है। वो इसलिए कि तंत्र साधना में कौए का बड़ा महत्व है। सामुद्रिक शास्त्र में तो बताया गया  है कि कौआ मैथुन अत्यंत गुप्त स्थान पर करता है, मगर यदि किसी ने देख लिया तो उसकी छह माह के भीतर मृत्यु हो जाती है।

एक मारवाड़ी गीत में बाबा रामदेव की बहिन सुगना बाई अपनी बदकिस्मती के लिए उस ज्योतिषी, जिसने उसकी कुंडली बनाई, उसके लिए सवाल करती है कि उसे काले नाग ने क्यों नही काट खाया?

इन सब से इतर यह भी बहुत रोचक है कि सर्वकलायुक्त अवतार श्रीकृष्ण श्याम वर्ण हैं, फिर भी आकृष्ट करते हैं। 

कुल जमा बात ये है कि क अक्षर अभिशप्त है। बावजूद इसके काला रंग अनिवार्य है। सफेद रंग की महत्ता भी काले रंग की वजह से है। सफेद रंग काले ब्लैकबोर्ड पर ही उजागर होता है।


-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.com

1 टिप्पणी:

  1. मारवाड़ी और मारवाड़ी क्या बनिया अपनी बही खाते काली स्याही से ही लिखा करते थे और उसके लिए दीपावली से पहले खूब घोट घोट कर काली शाही तैयार करते थे और पेन का जमाना था नहीं तो होल्डर से और निब से खाते एवं रोकड़ लिखा करते थे अब इसका जिक्र आपने इसमें य नहीं किया है कि स्थाई और अमिट स्याही काली ही थी
    कमल गर्ग

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