दीपक से दीपक क्यों नहीं जलाना चाहिए, इस शीर्षक के ब्लॉग पर प्रतिक्रिया देते हुए डॉ. अतुल दुबे ने बहुत ही रोचक जानकारी भेजी है। वह हूबहू इस प्रकार है:-
आदरणीय गिरधर भैया
नमस्ते
चीड़ की लकड़ी में अमोनियम फास्फेट का लेप लगा कर दियासलाई बनती है, जिसका आविष्कार लगभग 1830 में हुआ था, जब कि दीप प्रज्ज्वलित करने की प्रथा का पहला वर्णन तो त्रेता युग से है, जो कि लगभग पांच से सात हजार वर्ष पुराना है। यानि लगभग 190 वर्ष पहले जिसका आविष्कार हुआ और भारत के अहमदाबाद में लगभग 1895 के आसपास जब दियासलाई की पहली फैक्ट्री का निर्माण हुआ, उसके पहले तक दीप से दीप ही प्रज्ज्वलित होते होंगे। अथवा चकमक पत्थरों को परस्पर घिस कर अग्नि प्रज्ज्वलित होती थी। यहां तक कि प्रति चार वर्षों में जब ओलम्पिक टॉर्च जलाई जाती है, वो भी ग्रीस के ओलम्पियाड नामक गांव में सूर्य की रोशनी से जलाई जाती है। जहां तक रही बात पवित्रता की तो सृष्टि की सबसे पवित्र चीज तो अग्नि ही है, जो प्रत्येक तत्व को शुद्ध कर देती है।
यहां तक कि चिता तक को सनातन धर्म में यज्ञ समकक्ष माना गया है और अग्नि प्रज्ज्वलित होने के उपरांत उसकी लकड़ी से लेकर राल, घृत नारियल, शक्कर बूरा आदि का ही उपयोग किया जाता है, कोई भी ऐसी ज्वलनशील सामग्री का उपयोग नहीं किया जाता, जिसमें से दुर्गंध आती है। और तो और अर्थी में उपयोग किये जाने बांस को फाड़ कर मुखाग्नि का लोटा तो उससे बांधा जा सकता है, परंतु उसको चिता के साथ केवल इसलिये नहीं जलाया जा सकता क्योंकि उससे नीरो टॉक्सिक लैड ऑक्साइड निकलता है, जो कि मानव शरीर के लिये बहुत नुकसान दायक है।
दूसरी बात, दियासलाई से पूजा के दीप या हवन की अग्नि प्रज्ज्वलित करना तो वैसे भी इसलिये शास्त्र सम्मत नहीं क्योंकि बांस या फिर कोई भी ऐसी अग्नि, जो गंध या विषैली गैस का उत्सर्जन करे वो पवित्र कामों में निषेधित है। मुझे मेरी अल्पमति से जितना समझ आया उतना लिख दिया, यदि कोई गलत लिख दिया हो तो कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।
डॉ. दुबे जी की प्रतिक्रिया के सिलसिले में मेरा निवेदन है कि मेरा ब्लॉग एक आध्यात्मिक मान्यता की जानकारी पर आधारित है। इससे भिन्न मान्यताएं भी हो सकती हैं। उन्होंने जो जानकारी साझा की है, वह भी सही है। मैं श्री दुबे का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने विषय से जुड़े अन्य पहलु साझा किया है, जो कि जानकारी में इजाफा करने वाला है।
जिन दोस्तों ने ब्लॉग नहीं पढा है, उनकी सुविधा के लिए उसका लिंक ये हैः-
https://tejwanigirdhar.blogspot.com/2020/11/blog-post_27.html
डॉ. दुबे का परिचय इस प्रकार है:-
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
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