शनिवार, 30 नवंबर 2024

चैट जीपीटी पर आंख मूंद कर यकीन नहीं कर सकते?

गूगल भी भांति चैट जीपीटी भी ज्ञान का भंडार है। इस प्लेटफार्म पर हुआ काम किसी चमत्कार से कम नहीं है। किसी भी विषय की जानकारी लें, बहुत सधी हुई भाषा में विस्तार से आपका ज्ञानवर्द्धन होता है। शब्द विन्यास और व्याख्या बेहतरीन होती है। एक बार मैने बहुत कसी हुई भाषा में कोई जानकारी साझा की, जिसमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं थी, मगर उसने उसे इतना परिष्कृत व बेहतर कर दिया कि मैं चमत्कृत रह गया। कमाल किया है, इसे बनाने वालों ने। मगर ऐसा प्रतीत होता है कि इस पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं किया जा सकता। तथ्यात्मक त्रुटियां चावल में कंकड की भांति हैं। 

हाल ही मैने यह जानते हुए भी कि 1992 में अजमेर हुए अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड के वक्त जिला कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता थीं, मैने और जानकारी चाही तो मैं चकित रह गया। 

जवाब आया कि अजमेर के कुख्यात अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड (जिसे आमतौर पर अजमेर रेप केस के नाम से भी जाना जाता है) की घटनाएं मुख्यतः 1992 में सामने आई थीं। उस समय अजमेर के जिलाधीश (कलेक्टर) गौरव सिंह थे। यदि आप इस घटना या उससे संबंधित अन्य प्रशासनिक विवरणों पर अधिक जानकारी चाहते हैं, तो आप पूछ सकते हैं।

मैने लिखा कि मेरी जानकारी के अनुसार उस वक्त जिला कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता थीं, तो प्रत्युत्तर आया कि 

आपकी जानकारी सही हो सकती है। अजमेर के कुख्यात अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड के समय, जो मुख्य रूप से 1992 में सामने आया, उस वक्त अजमेर की तत्कालीन जिला कलेक्टर अदिति मेहता थीं। अदिति मेहता एक सीनियर आईएएस अधिकारी थीं, और उस दौरान यह मामला न केवल प्रशासन के लिए, बल्कि पूरे राजस्थान के समाज के लिए एक बड़ा संकट बन कर उभरा। इस कांड ने प्रशासन, पुलिस, और समाज के हर स्तर को हिला कर रख दिया था। अगर आप इस केस या उससे जुड़ी प्रशासनिक कार्रवाइयों के बारे में और जानकारी चाहते हैं, तो कृपया बताएं।

तकरीबन तीन घंटे बाद मैंने सवाल दोहराया कि ब्लैकमेल कांड के वक्त जिला कलेक्टर कौन था, इस पर जवाब आया कि 1992 में अजमेर में हुए अश्लील छायाचित्र और ब्लैकमेल कांड के समय अजमेर के कलेक्टर चंद्रशेखर शर्मा थे। मैं तो दंग रह गया। मेरे फीड बैक के बावजूद कलेक्टर का नाम बदल गया। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि इस सर्च इंजन ने जहां से भी जानकारी उठाई है, वहीं पर त्रुटियां हैं। उसका फैक्ट चैक करने का कोई सिस्टम नहीं है। चैट जीटीपी के संचालकों को इस पर ध्यान देना चाहिए, अन्यथा उसकी विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लग जाएगा।



बुधवार, 20 नवंबर 2024

लोकप्रिय नेता कौन?

यह आम धारणा है कि जो नेता अपने क्षेत्र में विकास कार्य करवाता है, वह लोकप्रिय हो जाता है। यह तथ्य है तो सही, मगर पूर्ण सत्य नहीं। असल में लोकप्रिय वह नेता होता है, जो सार्वजनिक काम करवाने के साथ साथ लोगों के निजी कामों पर अधिक ध्यान देता है। इसके अनेक उदाहरण मौजूद हैं। इसे तफसील से समझते हैं। जब भी कोई नेता कोई सडक बनवाता है, नाली ठीक करवाता है, स्टीट लाइट दुरूस्त करवाता है, तो उसकी तारीफ तो होती है, मगर सारे लाभान्वित उसके फॉलोअर नहीं बनते। वे पार्टी व जाति से ही जुडे रहते हैं। वस्तुतः विकास कार्य को जनता किसी अहसान के रूप में नही लेती। यही माना जाता है कि यह तो सामान्य विकास कार्य है, जिसे नेता को करवाना ही चाहिए था। इसके विपरीत यदि नेता किसी का निजी काम करवाता है, नौकरी लगवाता है, तबादला करवाता है, पुलिस के षिकंजे से छुडवाता है, तो वह ताजिंदगी उसका अहसान मानता है। पक्का फॉलोअर बन जाता है। तब विचारधारा व जाति गौण हो जाती है। इसलिए चतुर राजनेता सामान्य विकास कार्य करवाने के साथ लोगों के निजी कामों पर अधिक ध्यान रखता है। आप देखिए न। जब सचिन पायलट अजमेर के सांसद बने तो विकास को नए आयाम दिए, विपक्षी भी तारीफ करने लगे, मगर अगले ही चुनाव में वे हार गए। लोग विचारधारा के प्रति ही समर्पित रहे, वोट डालते वक्त उनके कार्यों को भूल गए। एक उदाहरण और। मेरे एक मित्र अपने नेता के पास गए। नेता ने पूछा कैसे आए हो, मित्र ने कहा कि उनके मोहल्ले की सडकें खराब हैं, मेहरबानी करके ठीक करवा दीजिए। नेता ने कहा कि सडक को छोडिये, कोई निजी काम हो तो बताइये। सार्वजनिक काम करवाने का कोई अहसान नहीं मानता।


रविवार, 17 नवंबर 2024

नेता व अफसरों के बीच गहरा अंतर्संबंध

हाल ही वरिष्ठ पत्रकार श्री ओम माथुर ने अपनी बेकद्री के जिम्मेदार अफसर खुद भी हैं शीर्षक से ब्लॉग लिखा है। उनके अनुसार अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने अथवा पीटने की चेतावनी देने के लिए सिर्फ नेताओं की मनमानी या अंहकार ही जिम्मेदार नहीं है, अफसर भी बराबर के दोषी है। मनचाही नियुक्तियों और तबादलों के मोह और लोभ में अफसर ही विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के देवरे धोकते हैं। ऐसे में नेता भी उन्हें अपना अधीनस्थ मान कर व्यवहार करते हैं। उनकी बात में दम है। इसका अनुभव मैने स्वयं ने किया है। हुआ यूं कि मेरा नाम अजमेर उत्तर विधानसभा सीट के कांग्रेस टिकट के लिए तय सा था। तब मेरे एक परिचित वरिष्ठ अधिकारी के व्यवहार से मैं भौंचक्का रह गया था। उन्होंने मुझ से बाकायदा मिलने का समय लिया। तकरीबन पौन घंटे मुलाकात हुई। वे बोले कि उनकी जानकारी के अनुसार मेरा टिकट लगभग पक्का है। वे टिकट मिलने पर मेरा सहयोग करना चाहते हैं। अंदरखाने पूरी व्यवस्था संभालने को तैयार हैं। मैने यही कहा कि टिकट मिलने तो दीजिए, तब देखेंगे। लेकिन मेरे लिए यह घटना अप्रत्याशित थी। भला कोई अधिकारी इस तरह से सहयोग करना क्यों चाहता है? मेरे मित्रों ने बताया कि इसमें कोई खास बात नहीं है। वे अधिकारी इस उम्मीद में सहयोग करना चाहते हैं कि अगर मैं जीता, या हारा भी, तो भी अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल उनके लिए करूंगा। अधिकतर अधिकारी राजनीतिक नेताओं से इसीलिए संपर्क रखते हैं, ताकि वक्त-बेक्त काम आएं। एक प्रकरण और ख्याल में आता है। एक उपचुनाव में एक वरिष्ठ अधिकारी ने मेरे माध्यम से एक कांग्रेस नेता को टिकट दिलवाने में अहम भूमिका अदा की थी। बाद में जब वे जीत गए तो उन्होंने उनसे एक डिजायर कराने का आग्रह किया, जिसे मैने सहर्ष स्वीकार किया। यानि सिस्टम ये है कि नेता व अधिकारियों के बीच लोकाचार निभाया जाता है। मैं ऐसे अधिकारियों को जानता हूं, जिनके कांग्रेस व भाजपा नेताओं के संबंध होने के कारण हर सरकार में मनचाही जगह पर डटे रहते हैं।


मंगलवार, 5 नवंबर 2024

शरीर के सर्वांग विकास के लिए षट् रस जरूरी

भारतीय भोजन की विशेषता यह है कि इसमें विभिन्न रसों का समावेश होता है, जिन्हें मिलाकर संपूर्ण भोजन तैयार किया जाता है। भारतीय खाने में शट् रस का महत्व बहुत अधिक है। शट् रस अर्थात् छह प्रकार के स्वाद होते हैं, मधुर (मीठा), अम्ल (खट्टा), लवण (नमकीन), कटु (तीखा), तिक्त (कड़वा) और कषाय (कसैला)। इन सभी रसों के संतुलित संयोजन से भोजन न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि शरीर को भी सभी प्रकार के पोषक तत्व मिलते हैं।

यूं तो अनेक समुदायों व समाजों में शट्रस युक्त भोजन का चलन है, मगर गुजराती थाली व जैन थाली की विषेश चर्चा होती है।

गुजराती थाली में सभी रसों का अद्भुत समावेश होता है। यह थाली बहुत ही विविधतापूर्ण होती है, जिसमें आमतौर पर दाल, कढ़ी, सब्जियां, रोटली (रोटी), भात (चावल) और मीठा होता है। गुजराती खाने में मिठास का विशेष महत्व होता है, इसलिए कई व्यंजन हल्की मिठास लिए होते हैं। साथ ही, इसमें तली हुई चीजें, जैसे फाफड़ा, ढोकला, पापड़ भी शामिल होते हैं, जो अन्य रसों का संतुलन बनाए रखते हैं। खट्टे और मीठे का बेहतरीन मिश्रण गुजराती भोजन को अनोखा बनाता है।

जैन थाली में भी शट् रस का संतुलन देखने को मिलता है, लेकिन इसकी खासियत यह है कि इसमें प्याज, लहसुन और किसी भी प्रकार की जड़ वाली सब्जियों का प्रयोग नहीं होता है। यह थाली सादगी और शुद्धता के लिए प्रसिद्ध है, फिर भी स्वाद से भरपूर होती है। जैन भोजन में सादा और हल्का खाना होता है, जिसमें अनाज, सब्जियाँ, और दालों का संयोजन होता है।

दोनों थालियों में शट् रस का महत्व बहुत अधिक होता है और ये भोजन का एक ऐसा रूप प्रस्तुत करती हैं, जिसमें न केवल स्वाद का ध्यान रखा जाता है, बल्कि सेहत का भी।

संपादक के भीतर का लेखक मर जाता है?

एक पारंगत संपादक अच्छा लेखक नहीं हो सकता। उसके भीतर मौजूद लेखक लगभग मर जाता है। यह बात तकरीबन तीस साल पहले एक बार बातचीत के दौरान राजस्थान र...