रविवार, 17 नवंबर 2024
नेता व अफसरों के बीच गहरा अंतर्संबंध
हाल ही वरिष्ठ पत्रकार श्री ओम माथुर ने अपनी बेकद्री के जिम्मेदार अफसर खुद भी हैं शीर्षक से ब्लॉग लिखा है। उनके अनुसार अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने अथवा पीटने की चेतावनी देने के लिए सिर्फ नेताओं की मनमानी या अंहकार ही जिम्मेदार नहीं है, अफसर भी बराबर के दोषी है। मनचाही नियुक्तियों और तबादलों के मोह और लोभ में अफसर ही विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के देवरे धोकते हैं। ऐसे में नेता भी उन्हें अपना अधीनस्थ मान कर व्यवहार करते हैं। उनकी बात में दम है। इसका अनुभव मैने स्वयं ने किया है। हुआ यूं कि मेरा नाम अजमेर उत्तर विधानसभा सीट के कांग्रेस टिकट के लिए तय सा था। तब मेरे एक परिचित वरिष्ठ अधिकारी के व्यवहार से मैं भौंचक्का रह गया था। उन्होंने मुझ से बाकायदा मिलने का समय लिया। तकरीबन पौन घंटे मुलाकात हुई। वे बोले कि उनकी जानकारी के अनुसार मेरा टिकट लगभग पक्का है। वे टिकट मिलने पर मेरा सहयोग करना चाहते हैं। अंदरखाने पूरी व्यवस्था संभालने को तैयार हैं। मैने यही कहा कि टिकट मिलने तो दीजिए, तब देखेंगे। लेकिन मेरे लिए यह घटना अप्रत्याशित थी। भला कोई अधिकारी इस तरह से सहयोग करना क्यों चाहता है? मेरे मित्रों ने बताया कि इसमें कोई खास बात नहीं है। वे अधिकारी इस उम्मीद में सहयोग करना चाहते हैं कि अगर मैं जीता, या हारा भी, तो भी अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल उनके लिए करूंगा। अधिकतर अधिकारी राजनीतिक नेताओं से इसीलिए संपर्क रखते हैं, ताकि वक्त-बेक्त काम आएं। एक प्रकरण और ख्याल में आता है। एक उपचुनाव में एक वरिष्ठ अधिकारी ने मेरे माध्यम से एक कांग्रेस नेता को टिकट दिलवाने में अहम भूमिका अदा की थी। बाद में जब वे जीत गए तो उन्होंने उनसे एक डिजायर कराने का आग्रह किया, जिसे मैने सहर्ष स्वीकार किया। यानि सिस्टम ये है कि नेता व अधिकारियों के बीच लोकाचार निभाया जाता है। मैं ऐसे अधिकारियों को जानता हूं, जिनके कांग्रेस व भाजपा नेताओं के संबंध होने के कारण हर सरकार में मनचाही जगह पर डटे रहते हैं।
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