महान षायर अल्लामा इकबाल का एक षेर है-
वो फरेब खुर्दा षाहीं जो पला हो करगसों में
उसे क्या खबर के क्या है राहे रस्मों षाहबाजी
इसके मायने हैं कि बाज का जो बच्चा गलती से गिद्धों के यहां पला हो, उसे क्या खबर कि षाहबाजी के रस्मों रिवाज क्या होते हैं। बताते हैं कि एक बार गलती से किसी बाज का अंडा गिद्धों के अंडों में गिर गया। अंडे से निकला तो गिद्धों के बच्चों की संगत में वैसा ही व्यवहार करने लगा। उसे अहसास ही नहीं कि वह तो बाज का बच्चा है। ज्ञातव्य है कि बाज खुद षिकार करके भोजन करता है, जबकि गिद्ध मृत षरीर का मांस नोंच कर खाता है।
इसकी व्याख्या चैट जपीटी इस प्रकार करता है- जो व्यक्ति हमेशा छल-कपट और चालाकी के माहौल में पला-बढ़ा हो, जैसे गिद्धों के बीच पला हुआ, उसे भला क्या पता कि सच्ची शाही परंपराएं और उच्च मूल्यों की राह क्या होती है। यह शेर सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर एक तीखा कटाक्ष भी हो सकता है, जो यह दर्शाता है कि अगर कोई व्यक्ति केवल धोखे और स्वार्थ से भरे वातावरण में बड़ा हुआ है, तो वह कभी भी सच्चे नेतृत्व, न्याय या शाही शिष्टाचार को नहीं समझ सकता।
जो लोग भ्रष्टाचार और अनैतिकता में डूबे हुए हैं, वे ईमानदारी और नैतिकता के महत्व को नहीं समझ सकते हैं। जो लोग झूठ और धोखे के आदी हैं, वे सच्चाई और विश्वास के मूल्य को नहीं जानते हैं। जो लोग सत्ता और धन के लालच में अंधे हो गए हैं, वे न्याय और समानता के महत्व को नहीं समझते हैं।
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