आजकल छोटी से छोटी बीमारी का इलाज भी बिना टेस्ट के नहीं होता। एक जमाना था जब हमारे यहां के वैद्य नाड़ी देख कर बीमारी का पता लगा लेते थे। ऐसे में अगर कोई डॉक्टर बीमार की दास्तां सुन कर इलाज कर दे तो उसे क्या कहेंगे? बेशक, ऐसे डॉक्टर को लंबे अनुभव से शरीर विज्ञान की गहरी समझ हो गई होगी। ऐसे अनुभवी और बेमिसाल डॉक्टर थे डॉ. एन. सी. मलिक। उनके बारे में एक किस्सा शहर के बुद्धिजीवियों में कहा-सुना जाता रहा है।
सत्तर के दशक की बात है। एक बार तोषनीवाल इंडस्ट्रीज में काम करने वाले पी. भट्टाचार्य उनके पास गए। तकलीफ ये बताई कि उनकी पीठ में छह माह से दर्द है। कई इलाज करवाए। मगर ठीक नहीं हुआ। सारी दास्तां सुन कर डॉक्टर साहब ने उनसे पूछा- आप कैसे आए हैं? उन्होंने बताया- साइकिल से। डाक्टर साहब ने चलो बाहर, मुझे दिखाओ। बाहर जा कर डॉक्टर साहब ने सीधे साइकिल की सीट को चैक किया। उस जमाने में चमड़े की कड़क सीट हुआ करती थी। वहीं खड़े-खड़े भट्टाचार्य जी से कहा- आपको कोई बीमारी नहीं है, जा कर मैकेनिक से सीट के नीचे की स्प्रिंग चैंज करवा लो। भट्टाचार्य जी तो हक्के-बक्के रह गए। चंद दिन बाद आ कर उन्होंने रिपोर्ट दी कि कमर का दर्द पूरी तरह से गायब हो गया है। किसी फिजीशियन का इस प्रकार बीमारी का निदान और इलाज कर देना वाकई जादूगरी से कम नहीं है।
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डॉ. एन. सी. मलिक |
इस किस्से की पुष्टि उनके सुपुत्र जाने-माने इंटरनेशनल टेबल टेनिस अंपायर श्री रणजीत मलिक ने भी की। एक किस्सा खुद उन्होंने बताया। वो ये कि एक बार वे कॉलेज जाने से पहले जेब खर्ची के लिए पिताश्री के क्लीनिक में गए तो वहां एक आदमी बहुत कराह रहा था। साथ में आए व्यक्ति ने डॉक्टर साहब को बताया कि पिछले एक माह से सिर में तेज दर्द है। कई डाक्टरों को दिखाया, मगर कोई राहत नहीं मिली। राहत तो दूर बीमारी तक का पता नहीं लग रहा। इस पर डॉक्टर साहब ने बीमार के अटेंडेंट से कहा- जा कर किसी नाई से नाक के बाल कटवाओ। अटेंडेंट भौंचक्क सा खड़ा रहा। इस पर डॉक्टर साहब ने कहा- अरे भाई, जैसा मैं कह रहा हूं, करो। जो इलाज करवाते करवाते तंग आ गया हो, वह इस उपाय को भी करने को राजी हो गया। आधे घंटे बाद आ कर मरीज ने डॉक्टर साहब के पैर पकड़ लिए। वह ठीक हो गया था। रणजीत जी ने पिताश्री से इस वाकये का राज पूछा। इस पर डॉक्टर साहब ने बताया कि आम तौर पर नाक के बाल बाहर की ओर आते हैं, जिसे कि हम काट देते हैं। इस आदमी के नाक के बाल अंदर की तरफ चले गए थे, इसी कारण इसके सिर में दर्द रहता था। है न कमाल का डायग्रोस और लाजवाब इलाज।
यहां आपको बता दें कि डॉ. एन सी मलिक का जन्म 30 मार्च 1916 को हुआ। उन्होंने 1945 में विक्टोरिया हॉस्पिटल, जिसे कि अब जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के नाम से जाना जाता है, में ब्रिटिश डॉक्टर चार्लुड के साथ नौकरी आरंभ की। उन्होंने कोलकाता से एमबी की डिग्री ली। एफआरसीपी अर्थात फैलो ऑफ रॉयल कॉलेज ऑफ फिजीशियन, ग्लास्गो इंग्लैंड से कार्डियोलॉजिस्ट, न्यूयॉर्क से एफआईसीए अर्थात फैलो ऑफ इंटरनेशनल कॉलेज ऑफ एंग्योलॉजी की डिग्रियां भी लीं। वे जवाहरलाल नेहरू हॉस्पीटल के पहले सुपरिटेंडेंट थे। वे राजस्थान के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिनका नेहरू अस्पताल में प्रोफेसर एंड हेड ऑफ द डिपार्टमेंट ऑफ मेडिसिन के रूप में डायरेक्ट अपॉइंटमेंट हुआ। उन्होंने ही नेहरू अस्पताल में कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट शुरू करवाया।
वे जब तक सरकारी नौकरी में थे, तब तक सरकार की ओर से तय 16 रुपए ही फीस लिया करते थे। रिटारयर होने के बाद उन्होंने फीस बढ़ा दी, जो कि एक सौ रुपए से पांच रुपए तक हो गई।
श्री मलिक ने बताया कि एक बार एक मरीज पिताश्री को दिखाने आया। मरीज ने फीस पूछी। पता लगा कि फीस पांच सौ रुपए है। इस पर उस बीमार ने अपना बटुआ निकाल कर कहा कि वह गरीब आदमी है, उसके पास केवल नब्बे रुपए ही हैं। इस पर पिताश्री ने उससे कहा कि दवाई ले लो और ये नब्बे रुपए भी रख लो। उन्होंने बताया कि वे गरीबों का मुफ्त इलाज किया करते थे। गरीब मरीजों के लिए वे भगवान का ही रूप थे। गरीब गांव वाले इलाज के एवज में सब्जियां भेंट कर जाते थे।
डॉक्टर साहब का देहावसान 87 वर्ष की उम्र में 16 अक्टूबर 2000 को हुआ।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
प्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंआपकी किरपा है
हटाएंMy father late Guman Singh ji also worked at that time with Dr. Malik Sh.My father was para medical staff and incharge of Dispensary..
जवाब देंहटाएंAmar singh rathour, ajmer