सोमवार, 17 अगस्त 2020

उनका नाम हंसमुख सोगानी होना चाहिए था

आपने हंसमुख शब्द सुना होगा। ये उन लोगों के लिए प्रयुक्त होता है, जो जब हंस या मुस्करा नहीं रहे होते हैं, शांत चित्त होते हैं, तब भी उनके चेहरे से हंसी प्रस्फुटित होती है, मुख मंडल पर मुस्कराहट बिखरी होती है। हरदिल अजीज श्री नवीन सोगानी इसके साक्षात उदाहरण थे। शायद ही उन्हेंं कभी किसी ने चिंतामग्र देखा हो। यथा नाम, तथा गुण की बात करें तो उनका नाम हंसमुख सोगानी होना चाहिए था। यूं नवीन शब्द भी कम सार्थक नहीं। नवीन के मायने होते हैं हर पल नया, तरोताजा। बेशक उनकी भीतर की ताजगी ही मुखार्विंद पर मुस्कराहट बन कर थिरकती थी। प्रकृति के क्रूर हाथों ने उनको हमसे छीन लिया है।

स्वर्गीय श्री सोगानी की गिनती अजमेर के चंद सजीव लोगों में होती थी। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, शायद ही ऐसी कोई रचनात्मक गतिविधि होगी, जिसमें उनकी हिस्सेदारी न रही हो। रचनाधर्मिता निभाने वाली लगभग सभी संस्थाओं में उनकी मौजूदगी रेखांकित की जाती थी। राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल करवाने के लिए चल रहे आंदोलन से वे सदा जुड़े रहे। अजमेर वासियों के जीवन में उत्सव के रंग भरने वाले फागुन महोत्सव, कवि सम्मेलन, अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल, अजयमेरु सांस्कृतिक समारोह सहित अनेक कार्यक्रमों में उनकी अहम भूमिका रही। सुर सिंगार, आनन्दम जैसी कितनी ही संस्थाओं में उनकी भूमिका सूत्रधार सी होती थी। मीडिया कर्मियों से उनके गहरे रिश्ते रहे और अजयमेरू प्रेस क्लब की गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। अजमेर की बहबूदी के लिए बुद्धिजीवियों का कोई भी समूह जुटे, उनकी उपस्थिति दस्तक देती थी। समाजसेवा तो मानो उनका धर्म ही था। लायंस क्लब, महावीर सेवा समिति, अपना घर, वृद्धाश्रम आदि का कोई कार्यक्रम हो, ऐसा हो ही नहीं सकता कि वे वहां मौजूद न हों। सबसे बड़ी बात ये कि प्रसिद्धि की चाह उन्हें छू तक नहीं पाई। केवल कर्म में ही यकीन रखते थे। ऐसे सहज और सरल व्यक्ति विरले ही होते हैं। सच में वे अजमेर के लाल थे।

वे कितनी बड़ी शख्सियत थे, इसका अनुमान हास्य और व्यंग्य के जाने-माने हस्ताक्षर श्री रासबिहारी गौड़ की इस भावाभिव्यक्ति में झलकती है:- सुर सिंगार संस्था का संगीत हो, आन्नदम के ठहाके, लिटरेचर फेस्टिवल के सत्र या गांधी जी जिंदा हैं का मंचन.....बिना नवीन जी सम्भव ही नहीं थे।

बेशक अब उनकी भौतिक उपस्थिति असंभव हो गई है, मगर उनके व्यक्तित्व की महक सदा के लिए अजमेर की आबोहवा में रह कर सबको सुवासित करती रहेगी। 

ऐसे अनूठे प्रकाश स्तम्भ को शत् शत् नमन।

-तेजवानी गिरधर

7742067000

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

शरीर के सर्वांग विकास के लिए षट् रस जरूरी

भारतीय भोजन की विशेषता यह है कि इसमें विभिन्न रसों का समावेश होता है, जिन्हें मिलाकर संपूर्ण भोजन तैयार किया जाता है। भारतीय खाने में शट् रस...