स्वर्गीय श्री सोगानी की गिनती अजमेर के चंद सजीव लोगों में होती थी। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, शायद ही ऐसी कोई रचनात्मक गतिविधि होगी, जिसमें उनकी हिस्सेदारी न रही हो। रचनाधर्मिता निभाने वाली लगभग सभी संस्थाओं में उनकी मौजूदगी रेखांकित की जाती थी। राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल करवाने के लिए चल रहे आंदोलन से वे सदा जुड़े रहे। अजमेर वासियों के जीवन में उत्सव के रंग भरने वाले फागुन महोत्सव, कवि सम्मेलन, अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल, अजयमेरु सांस्कृतिक समारोह सहित अनेक कार्यक्रमों में उनकी अहम भूमिका रही। सुर सिंगार, आनन्दम जैसी कितनी ही संस्थाओं में उनकी भूमिका सूत्रधार सी होती थी। मीडिया कर्मियों से उनके गहरे रिश्ते रहे और अजयमेरू प्रेस क्लब की गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। अजमेर की बहबूदी के लिए बुद्धिजीवियों का कोई भी समूह जुटे, उनकी उपस्थिति दस्तक देती थी। समाजसेवा तो मानो उनका धर्म ही था। लायंस क्लब, महावीर सेवा समिति, अपना घर, वृद्धाश्रम आदि का कोई कार्यक्रम हो, ऐसा हो ही नहीं सकता कि वे वहां मौजूद न हों। सबसे बड़ी बात ये कि प्रसिद्धि की चाह उन्हें छू तक नहीं पाई। केवल कर्म में ही यकीन रखते थे। ऐसे सहज और सरल व्यक्ति विरले ही होते हैं। सच में वे अजमेर के लाल थे।
वे कितनी बड़ी शख्सियत थे, इसका अनुमान हास्य और व्यंग्य के जाने-माने हस्ताक्षर श्री रासबिहारी गौड़ की इस भावाभिव्यक्ति में झलकती है:- सुर सिंगार संस्था का संगीत हो, आन्नदम के ठहाके, लिटरेचर फेस्टिवल के सत्र या गांधी जी जिंदा हैं का मंचन.....बिना नवीन जी सम्भव ही नहीं थे।बेशक अब उनकी भौतिक उपस्थिति असंभव हो गई है, मगर उनके व्यक्तित्व की महक सदा के लिए अजमेर की आबोहवा में रह कर सबको सुवासित करती रहेगी।
ऐसे अनूठे प्रकाश स्तम्भ को शत् शत् नमन।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
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