वस्तुतः पल्लू शरीर के उस भाग पर रहता है, जहां बार-बार हाथ जाता है, इसलिए हर बार स्पर्श होने पर झटके में बात याद आ जाती है। संकल्प याद आता है। संकल्प याद आता है तो उसे पूरा करने का ख्याल भी आता है। संकल्प और अधिक प्रगाढ हो जाता है। गांठ पर हाथ लगते ही अवचेतन मन में संकल्प पुनः सक्रिय होता है, जिससे इच्छाशक्ति प्रबल होती है। गांठ बांधना एक काइनेस्थेटिक रिमाइंडर (स्पर्श आधारित स्मृति संकेत) जैसा है। जिस विचार या संकल्प के साथ गांठ बांधी जाती है, वह स्पर्श होते ही मस्तिष्क में पुनः सक्रिय हो जाता है।
पल्लू पर गांठ इसलिए भी बांधी जाती है कि हमारा अमुक कार्य पूरा होगा तो हम अमुक देवी-देवता को इतने का प्रसाद चढाएंगे। जब जब गांठ पर हाथ जाता है तो संकल्पित काम के लिए देवी-देवता से प्रार्थना का ख्याल आता है। संकल्प व आस्था गहरी होती है। और जब वह कार्य सिद्ध हो जाता है गांठ का ख्याल आता है। फिर प्रसाद चढा कर गांठ खोल दी जाती है। यह ठीक वैसा ही है कि जैसे कई लोग किसी काम के पूरा होने तक पैदल चलते हैं, दाढी बढाते हैं। विशेषकर बुजुर्ग महिलाएँ कुछ छोटी-छोटी वस्तुएं जैसे पैसे, चाबी आदि सुरक्षित रखने के लिए उन्हें साड़ी के पल्लू में बांध लेती हैं। इससे वस्तु सीधे संपर्क में रहती है, खोने की संभावना कम रहती है।
पल्लू बांधने को गांठ बांधना भी कहते हैं। हम कहते हैं न कि अमुक व्यक्ति ने गांठ बांध ली है कि वह अमुख कार्य करेगा ही। इसका अर्थ यह है कि उसने ठान ली है कि वह अमुख काम करके ही चैन से बैठेगा।
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