रविवार, 27 सितंबर 2020

नमस्ते व नमस्कार में क्या अंतर है?


हाल ही मेरे मित्र जाने-माने फोटो जर्नलिस्ट सत्यनारायण जाला ने एक पोस्ट भेजी, जिसमें बताया गया है कि नमस्ते व नमस्कार पर्यायवाची नहीं हैं। इनका भिन्न अर्थ है। बाद में सोशल मीडिया पर यह पोस्ट अलग शब्दावली में भी पायी। स्वाभाविक है कि उन्होंने किसी अन्य सज्जन की ओर से भेजी गई पोस्ट को कॉपी-पेस्ट किया होगा, मगर मुझे इस पोस्ट ने इस पर चर्चा के लिए प्रेरित किया।

पहले वह पोस्ट, जो कि उन्होंने भेजी:-

कौनसा अभिवादन उचित?

नमस्ते या नमस्कार?

प्राय: लोग अभिवादन के लिए नमस्ते और नमस्कार दोनों शब्दों का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग मानते हैं नमस्ते और नमस्कार दोनों का अर्थ एक ही है। दोनों का अर्थ एक तब ही कहा जाएगा, जब ये एक दूसरे के पर्यायवाची हों।  किंतु ये दोनों भिन्न अर्थ वाले शब्द हैं। नमस्कार में अंत में कार धातु लगने से यह क्रियासूचक बन गया।

नम: का अर्थ सम्मान 

ते का अर्थ आप

आपका सम्मान करता हूं

अर्थात मैं आपका सम्मान करता हूं

नमस्कार शब्द जड़ (बिना क्रिया)अर्थात जो जीवित हो कर भी प्रत्यक्ष रूप से आपको अपनी प्रत्यक्षता अनुभव न होने दे, उन वस्तुओं के लिए किया जाता है।

जैसे सूर्य नमस्कार, चन्द्र नमस्कार, सागर नमस्कार इत्यादि, जबकि नमस्ते सम्मानसूचक शब्द है, जो कि चेतन (सजीव) के लिए प्रयोग किया जाता है। इसलिए नमस्कार त्यागें और नमस्ते शब्द का ही प्रयोग करें।

जिन भी सज्जन ने यह पोस्ट बनाई है, उनका मकसद यही प्रतीत होता है कि वे उपयुक्त स्थान पर उपयुक्त शब्द के इस्तेमाल के लिए जोर दे रहे हैं।

इस बारे में जब मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया में देखा तो वहां बताया गया है कि नमस्ते या नमस्कार मुख्यत: हिन्दुओं और भारतीयों द्वारा एक दूसरे से मिलने पर अभिवादन और विनम्रता प्रदर्शित करने हेतु प्रयुक्त शब्द है। इस भाव का अर्थ है कि सभी मनुष्यों के हृदय में एक दैवीय चेतना और प्रकाश है, जो अनाहत चक्र (हृदय चक्र) में स्थित है। यह शब्द संस्कृत के नमस शब्द से निकला है। इस भावमुद्रा का अर्थ है एक आत्मा का दूसरी आत्मा से आभार प्रकट करना। दैनन्दिन जीवन में नमस्ते शब्द का प्रयोग किसी से मिलते हैं या विदा लेते समय शुभकामनाएं प्रदर्शित करने या अभिवादन करने हेतु किया जाता है। नमस्ते के अतिरिक्त नमस्कार और प्रणाम शब्द का प्रयोग करते हैं।

संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से इसकी उत्पत्ति इस प्रकार है- नमस्ते= नम:+ते। अर्थात् तुम्हारे लिए प्रणाम। संस्कृत में प्रणाम या आदर के लिए नम: अव्यय प्रयुक्त होता है, जैसे-सूर्याय नम: (सूर्य के लिए प्रणाम है)। इसी प्रकार यहां- तुम्हारे लिए प्रणाम है, के लिए युष्मद् (तुम) की चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है। वैसे तुम्हारे लिए के लिए संस्कृत का सामान्य प्रयोग तुभ्यं है, परन्तु उसी का वैकल्पिक, संक्षिप्त रूप ते भी बहुत प्रयुक्त होता है। यहां वही प्रयुक्त हुआ है। अत: नमस्ते का शाब्दिक अर्थ है- तुम्हारे लिए प्रणाम। इसे तुमको प्रणाम या तुम्हें प्रणाम भी कहा जा सकता है, परन्तु इसका संस्कृत रूप हमेशा तुम्हारे लिए नम: ही रहता है, क्योंकि नम: अव्यय के साथ हमेशा चतुर्थी विभक्ति आती है, ऐसा नियम है।

मुंडे-मुंडे मतिभिन्ना। जितने मुंह, उतनी बातें।

एक सज्जन ने सोशल मीडिया पर व्याख्या की है कि संस्कृत शब्द नमस्कार को मिलते वक्त किया जाता है और नमस्ते को जाते वक्त। कुछ लोग इसका उल्टा भी करते हैं। उनकी यह व्याख्या समझ में नहीं आई।

एक सज्जन बताते हैं कि कुछ विद्वानों के अनुसार नमस्कार सूर्य उदय के पश्चात्य और नमस्ते सूर्यास्त के पश्चात किया जाता है। इसके पीछे के तर्क का उन्होंने उल्लेख नहीं किया है।

मैंने एक व्याख्या बहुत पहले यह भी सुनी है- समान स्टेटस के व्यक्ति को नमस्ते कहा जाता है, जबकि अपने से उच्च पदस्थ को नमस्कार कहा जाता है।

यदि श्री जाला की पोस्ट पर नजर डालें तो उसमें बताया गया है कि नमस्कार शब्द जड़ (बिना क्रिया)अर्थात जो जीवित हो कर भी प्रत्यक्ष रूप से आपको अपनी प्रत्यक्षता का अनुभव न होने दे, उन वस्तुओं के लिए किया जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रार्थना का आरंभ नमस्ते सदा वस्तले मातृभूमे कहा गया है। यदि नियम के तहत नमस्कार शब्द सूर्य को प्रणाम करने के लिए कहा जाता है तो यह नियम मातृभूमि पर लागू क्यों नहीं हुआ। मातृभूमि को नमस्ते क्यों कहा गया है? वह भी तो जीवित होते हुए भी अपनी प्रत्यक्षता का अनुभव नहीं देती।

खैर, मूल बात ये है कि दोनों शब्द नम धातु से ही बने हैं। दोनों का मूल भाव नमन करना है। नमस्ते का अर्थ है, तुमको प्रणाम या तुमको नमन। और नमस्कार चूंकि क्रियावाचक है, इसलिए इसका अर्थ हुआ मैं तुमको नमन करता हूं। अब तुमको नमन व तुमको नमन करता हूं में क्या फर्क है?

बहरहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि जिस भी शब्दविद् ने नमस्ते अथवा नमस्कार शब्द का प्रयोग किया है तो या तो उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि उन्होंने समानार्थी का निकट समानार्थी शब्दों का इस्तेमाल भिन्न-भिन्न स्थान पर क्यों किया या उन्होंने स्पष्ट किया भी हो, मगर वह व्याख्या उपलब्ध नहीं है। इसी कारण हम माथापच्ची कर रहे हैं। 

कुल मिला कर भले ही दोनों शब्दों में बारीक अंतर हो, मगर भाव नमन करने से ही है। दिलचस्प बात ये है कि गूगल पर यदि आप इन शब्दों का अंग्रेजी अनुवाद करेंगे तो दोनों के लिए हेलो शब्द ही आएगा।

चलते-चलते एक बात आपसे साझा करना चाहता हूं। नमस्ते व नमस्कार तो फिर भी भिन्न शब्द हैं, मगर एक शब्द को विपरीत स्थितियों में प्रयुक्त किया जाता है। राजस्थान में किसी के आने पर भी पधारो सा कहा जाता है और विदा होने पर भी पधारो सा कहा जाता है। मेरी एक पत्रकार साथी डॉ राशिका महर्षि तो मिलते समय और विदा होते समय अथवा फोन पर बात करते समय आरंभ व अंत में एक ही शब्द नमस्ते का का इस्तेमाल किया करती है। है न दिलचस्प बात।

-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढिया जानकारी दी है सर आपने।

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  2. मेरे ज्ञान से जैसे हिंदी में तुम और आप में अंतर है, वही अंतर नमस्ते और नमस्कार में है।
    *अपनी हम उम्र या छोटे को नमस्ते और बड़े को नमस्कार कहना उचित है,पर् अब यह इतना घुल मिल गया है कि दोनों तरह से अब उचित लगने लगा है*।

    एक तरह से देखा जाय कि हम अगर समूह में बैठे हैं और कोई दूसरा मित्र या कोई भी उस ग्रुप में आकर नमस्ते कहे तो थोड़ा अटपटा लगता है, वो नमस्ते किसी एक के लिए प्रतीत होती है, वही अगर नमस्कार कहता है तो सब को अपना से लगता है फिर चाहे उसमें नमस्कार मित्रों या बंधुओं जोड़े या न जोड़े।
    kishin priyani

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  3. नमस्ते तेजवानी जी नमस्ते के समय हाथ जोड़ना चाहिए या पांव पकड़ना चाहिए🙏नमस्ते
    kamal garg

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  4. अच्छी जानकारी दी है आपने
    अभिलाषा विश्नोई

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