बुधवार, 9 दिसंबर 2020

भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु का रोचक तथ्य


भगवान श्रीकृष्ण की मौत के बारे में आम मान्यता है कि जब वे एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे, तब एक बहेलिये के भ्रमवश तीर चलाने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई। भ्रम के बारे यह बताया जाता है कि चूंकि श्रीकृष्ण भगवान के अवतार थे, इस कारण उनके पैर के तलुवे में पद्म मणि थी, उसकी चमक को बहेलिये ने हिरण की आंख समझ लिया और तीर चला दिया।

इस बारे में एक मान्यता ये भी है कि महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए शाप दिया की जिस प्रकार कौरव वंश का नाश हुआ है, ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा। इस पर श्रीकृष्ण द्वारिका लौट कर यदुवंशियों के साथ प्रभास क्षेत्र में आ गए। वहां महाभारत युद्ध की चर्चा के दौरान सात्यकि और कृतवर्मा में विवाद हो गया और सात्यकि ने कृतवर्मा का सिर काट दिया। इससे दोनों पक्षों में युद्ध भड़क उठा। इस लड़ाई में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और मित्र सात्यकि समेत लगभग सभी यदुवंशी मारे गए थे, केवल बब्रु और दारूक ही बचे। प्रभास क्षेत्र में एक दिन श्रीकृष्ण पीपल के वृक्ष के नीचे योगनिद्रा में लेटे थे, तभी जरा नामक एक बहेलिए ने उन्हें हिरण समझ कर विषयुक्त बाण चला दिया, जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु हो गई। इस बारे में कुछ लोगों का मानना है कि असल में यह श्रीकृष्ण की लीला थी। इसके पीछे एक प्रसंग का जिक्र आता है। वो यह कि त्रेता युग में भगवान के अवतार श्री राम ने बाली को छुप कर तीर मारा था। द्वापर युग में श्रीकृष्ण के समय भगवान ने उसी बाली को जरा नामक बहेलिया बनाया और अपने लिए वैसी ही मृत्यु चुनी, जैसी बाली को दी थी। 

जिस तीर से श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई, उस बारे में कहा जाता है कि एक बार कृष्ण के पुत्र सांब शरारत करते हुए स्त्री वेष में ऋषि विश्वामित्र, दुर्वासा, वशिष्ठ और नारद से मिले गए और कहा कि वह गर्भवती है, वे उसे बताएं कि उसके गर्भ में नर है या मादा। उनमें से एक ऋषि ने अंतर्दृष्टि से यह जान लिया कि वह स्वांग कर रहा है। उन्होंने गुस्से में सांब को श्राप दिया कि वह लोहे के तीर को जन्म देगा, जिससे उनके कुल का विनाश होगा। सांब ने इस श्राप के बारे में उग्रसेन को जानकारी दी तो उन्होंने सलाह दी कि वे तांबे के तीर का चूर्ण बना कर प्रभास नदी में प्रवाहित कर दें, जिससे उन्हें श्राप से छुटकारा मिल जाएगा। सांब ने ऐसा ही किया। लोहे की छड़ का चूर्ण एक मछली ने निगल लिया, जो कि उसके पेट में जाकर धातु का एक टुकड़ा बन गया। जरा नामक बहेलिये ने उस मछली को पकड़ा और उसके शरीर से निकले धातु के टुकड़े से तीर बनाया। उसी तीर से श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई।

इन प्रसंगों से यह तो स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण की मृत्यु बहेलिये के तीर से हुई। इस बारे में सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने और भी रोचक जानकारी दी है। एक प्रवचन के दौरान उन्होंने बताया कि पैर के पंजे में टखने के पास अकीलीज नामक स्नायु बिंदु है, जो कि शरीर की ज्यामिति का एक केन्द्र है। बहेलिये ने तीर इसी बिंदु पर मारा था, जिससे श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई। वस्तुत: वे एक सवाल का जवाब दे रहे थे कि वे प्रवचन के दौरान एक पैर गुदा के नीचे क्यों रखते हैं। इस पर उनका कहना था कि पैर के अकीलीज बिंदु व गुदा के निकट मूलाधार चक्र के संपर्क में आने से शरीर की ज्यामिति बदल जाती है और अतिरिक्त सजगता आ जाती है। इसी के साथ उन्होंने श्रीकृष्ण की मृत्यु का कारण तीर के अकीलीज पर लगने को बताया है। वैसे यह स्वाभाविक सा सवाल है कि भला पैर पर तीर लगने मात्र से मृत्यु कैसे हो सकती है? संभव है कि सद्गुरू की जानकारी सही हो, मगर इससे सवाल उठता है कि कहीं बहेलिये ने जानबूझ कर श्रीकृष्ण के अकीलीज बिंदु पर तो तीर नहीं मारा। या वह एक संयोग भी हो सकता है। कदाचित श्रीकृष्ण ने इसी प्रकार मृत्यु को चुना हो।

बहरहाल, प्रसंगवश बता दें कि श्रीगणेश की मूर्तियों में उसी प्रकार की मुद्रा होती है, जिसका जिक्र सद्गुरू कर रहे हैं।


-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.com 

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