सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

हमारा छाया पुरुष या हमजाद हमसे भी अधिक ताकतवर होता है?


क्या आपको पता है कि हमारी ही फोटोकॉपी, हमारा ही प्रतिरूप, हमारा ही प्रतिबिंब, हमारी ही छाया या उसे क्लोन की भी संज्ञा दे सकते हैं, हमारे साथ हर वक्त मौजूद है? इतना ही नहीं, वह हमसे भी अधिक ताकतवर होता है। हम चूंकि शरीर में कैद हैं, इस कारण हमारी सीमा है, मगर हमारा हमजाद अनेक प्रकार की सीमाएं लांघ कर काम कर सकता है।

इस विषय पर चर्चा से पहले मैं बात करना चाहता हूं, मेरे पूर्व के एक ब्लॉग के बारे में, जिसमें मैंने सवाल रखा था कि दर्पण में दिखाई देने वाले प्रतिबिंब का वजूद क्या है? वह आखिर है क्या? जब तक हम दर्पण के सामने खड़े रहते हैं, तब तक वह दिखाई देता है और हटते ही वह भी हट जाता है। तो जो दिखाई दे रहा था, वह क्या था? हटते ही वह कहां खो जाता है? यह सही है कि उसका अपने आप में कोई वजूद नहीं, मगर वह कुछ तो है। 

आपको जानकारी होगी कि ज्योतिषी व तांत्रिक बताते हैं कि तेल, विशेष रूप से सरसों के तेल में अपना प्रतिबिंब देख कर उस तेल को दान करने से शनि का प्रकोप कम होता है। अर्थात प्रतिबिंब अपने साथ हमारी कुछ ऊर्जा, जिसे नकारात्मक ऊर्जा कह सकते हैं, ले जाता है। प्रतिबिंब का कितना महत्व है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सामुद्रिक शास्त्र में बताया जाता है कि अगर पानी में हमारा प्रतिबिंब दिखाई देना बंद हो जाए तो जल्द ही मृत्यु हो जाती है। अर्थात मृत्यु से पहले प्रतिबिंब बनना बंद हो जाता है।

हमारे यहां तो परंपरा है कि छोटे बच्चे को उसका चेहरा दर्पण में नहीं दिखाया जाता। मुंडन के बाद ही बच्चे को उसका चेहरा दर्पण में दिखाने की छूट होती है। इसकी वजह क्या है, यह खोज का विषय है। ऐसी भी परंपरा है कि दूल्हा जब तोरण मारने आता है तो उसे दुल्हन को सीधे नहीं दिखाया जाता। उनको एक दूसरे के दर्शन पहले दर्पण में कराए जाते हैं। इसका भी कारण जाना चाहिए। 

आज हम बड़ी आसानी से दर्पण में अपना चेहरा देख पाते हैं, लेकिन जब इसका अविष्कार नहीं हुआ था, तब ठहरे हुए पानी में चेहरा देखा जाता था। 

इसके बाद एक अन्य ब्लॉग में लिखा था कि छाया का अपना कोई अलग अस्तित्व नहीं। वह हमारी अथवा किसी वस्तु की परछाई मात्र है। उसका भला क्या महत्व हो सकता है? बात ठीक भी लगती है। मगर हमारी संस्कृति में इस पर भी बहुत काम हुआ है। शिव स्वरोदय के अनुसार सूर्य के प्रकाश में पीठ करके खड़े होने पर बनने वाली छाया पर ध्यान केन्द्रित किया  जाता है। साधना पूरी होने पर छाया की आकृतियों के अनेक निहितार्थ होते हैं। 

जिन लोगों ने तंत्र विद्या के बारे में पढ़ा अथवा सुना है, उनकी जानकारी में होगा कि तांत्रिक लक्षित परिणाम पाने के लिए पर छाया का प्रयोग करते हैं। आपने ये भी सुना होगा कि ऐसे सिद्ध भी हैं, जो आपके पीछे चलते हुए  आपकी छाया को अपने वश में कर लेते हैं और इच्छित काम आपसे करवाते हैं। 

अब चर्चा करते हैं मूल विषय पर। आखिर ये छाया पुरुष या हमजाद है क्या, है कौन? जानकार लोग बताते हैं कि हमारे शरीर में अनेक प्रकार की शक्तियां विद्यमान हैं, मगर सोयी हुई अवस्था में। हमजाद भी एक प्रकार की शक्तिशाली व मायावी शक्ति है। यदि हम उसे जागृत कर लें तो वह हमारे आदेश पर अनेक प्रकार के असंभव कार्य भी कर सकती है। ठीक उसी तरह, जैसे किस्से-कहानियों में कहा जाता है कि वश में किया हुआ जिन्न हमारे हुक्म की तामील करने को तत्पर रहता है। जैसे वह सामने वाले के पर्स में रखे रुपयों तक की जानकारी दे सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि तांत्रिक इसी शक्ति का उपयोग कर हमें चमत्कृत करते हैं। किसी दूरस्थ शिष्य की मदद के लिए उसके गुरू का संकट के समय उपस्थित होना, कदाचित इसी शक्ति का प्रयोग है।

जानकार लोग बताते हैं कि हमजाद को जागृत करने के लिए चालीस दिन की साधना की जाती है। इसके लिए या तो दर्पण में अपने प्रतिबिंब पर त्राटक किया जाता है, या फिर दीपक की ओर पीठ करने पर बनने वाली छाया पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। इसमें अनेक प्रकार की सावधानियां रखनी होती हैं।

विशेष रूप से इस्लाम में हमजाद पर बहुत काम हुआ है। हमजाद का अमल बुलाने के लिए रोजाना ये पंक्ति 777 बार पढ़ी जाती है- लाइल्लाहा इल्ला अनता सुभानल्लाह इन्नि कुंतु मिन्ज ज़वू यावाल्लिन। यह दुआ पढऩे से पहले और बाद में दुरूद इब्राहिम पढऩा होता है।

आज के वैज्ञानिक युग में हमजाद कोरी कल्पना लग सकती है, मगर जानकार लोग बताते हैं कि हमजाद का न केवल वजूद है, बल्कि वह बहुत सारे असंभव काम कर सकता है।


-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.càæm

3 टिप्‍पणियां:

  1. विषय केंद्रित सटीक तर्कयुक्त पोस्ट। इंद्रजाल सदृश्य ग्रंथों के शोध की आवश्यकता को प्रतिपादित करने वाले तथ्य आपने जुटाए हैं। दरअसल यह ऐसे रहस्यमय विषयों में से एक है जिन पर लगभग सभी का ध्यान एकबारगी तो जाता है मगर संपूर्ण वांछित सामग्री के अभाव में ऐसा विषय-विचार क्षणभंगुरता का शिकार हो जाता है। आपको साधुवाद कि आप इन विषयों पर निरंतर साधना कर सृजनरत रहते हैं। साधुवाद और शुभकामनाएं। 🌹

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    1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया, ये आपकी जर्रानवाजी है

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  2. हमजाद ही हिन्दू शस्त्रों में कृत्या कही गयी है, जिसके पीछे कृत्या लगा दी जाती है, उसका निवारण लगभग असंभव हो जाता है।
    ज्योति दाधीच, ज्योतिर्विद, पुष्कर

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