चौबीसवें तीर्थंकर भगवाान महावीर के काल में जैन धर्म अपने चरमोत्कर्ष पर था। जैन धर्मावलम्बी भी अनगिनत थे। मगर अकेले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को जैन धर्म के सिद्धांतों पर चलने को मजबूर कर दिया है।
एक समय वह भी था, जब हम जैन धर्म के श्वेतांबर पंथीय मुनि, श्रावक और श्राविकाओं को देखा करते थे कि वे अपने मुंह पर सफेद पट्टी बांधते हैं, तो कौतुहल होता था, मगर आज जब पूरी दुनिया मुंह पर पट्टी बांधने को मजबूर है तो इसे स्वीकार करना पड़ता है कि करीब ढ़ाई हजार साल पहले मुंह पट्टी अर्थात मास्क का इजाद करने वाले इस धर्म की सोच कितनी गहरी थी। आज जब कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को झकझोड़ कर रख दिया है तो अहसास होता है जैन दर्शन प्रांसगिक ही नहीं, बल्कि आवश्यक हो गया है।
ज्ञातव्य है कि मुख पट्टिका लगाने की परंपरा भगवान महावीर स्वामी ने शुरू की थी। इसका उल्लेख विभिन्न जैन आगमों में मिलता है। श्वेतांबर जैन संप्रदाय के स्थानकवासी, अमूर्तिपूजक और तेरापंथ में मुंह पर पट्टी बांधने की परंपरा है। यह 4 इंच चौड़ी व 7 इंच लंबी होती है। इसे कपड़े को चार तह करके बनाया जाता है। इसलिए इसमें कीटाणु जाने का खतरा बिल्कुल नहीं होता। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में मास्क के बारे में वैज्ञानिक मान्यता है कि वायरस को रोकने के लिए कम से कम थ्री लेयर मास्क जरूरी है।
वस्तुत: जैन धर्म में मुंह पट्टी, जिसे हम आज मास्क के रूप में जानते हैं, उसका उपयोग सांस की गरमाहट से सूक्ष्मतम जीवों की हिंसा को रोकने और वाणी पर संयम के लिए किया जाता है। आज हम जानलेवा सूक्ष्मतम जीवाणु अर्थात कोरोना वायरस से बचने के लिए इसका उपयोग करने लगे हैं। हालत ये है कि कोरोना वायरस से बचने के लिए अब तक कोई दवाई का इजाद नहीं होने के कारण यह कहा जाने लगा है कि जब तक दवाई नहीं, तब तक मास्क ही दवाई है। हालांकि कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन की खोज की जा चुकी है, मगर वह केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए है, ताकि हमारा शरीर से उससे लड़ सके। कोरोना से ग्रस्त होने के बाद उससे मुक्ति के लिए परफैक्ट दवाई अभी तक नहीं खोजी जा सकी है। ऐसे में मुंह पट्टी बनाम मास्क ही कोरोना से जंग लडऩे के लिए सबसे बड़ा शस्त्र माना जा रहा है। कोरोना ने पूरी दुनिया को मुंह पट्टी बांधने को मजबूर कर दिया है। राजस्थान में तो मास्क पहनना कानूनन जरूरी कर दिया है। अमरीका में वैक्सीन के दो डोज लगा चुके लोगों को मास्क पहनने से छूट दे दी गई है, मगर उसके पीछे वहां के स्थानीय राजनीतिक कारण हैं।
अकेले मुंह पट्टी ही नहीं, बल्कि जैन धर्म के संघेटा, अलगाव, सम्यक् एकांत सहित शाकाहार जैसे सिद्धांतों को भी अपनाने को हम मजबूर हैं।
अब बात करते हैं, कोराना से बचने के लिए किए जा रहे दूसरे उपाय की। विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइड लाइन के अनुसार कोरोना से बचने के लिए सोशियल डिस्टेंसिंग को अपनाना जरूरी है। वैसे यह शब्द उचित नहीं है, क्योंकि सामाजिक दूरी नहीं बल्कि शारीरिक दूरी की जरूरत है, अर्थात फिजिकल डिस्टेंसिंग। दो व्यक्तियों के बीच कम से कम दो गज की दूरी होना जरूरी है। वजह ये कि खांसने या सांस लेने से कोरोना एक से दूसरे में फैलता है, इसलिए एक दूसरे से दूर रहने की हिदायत दी गई है। जैन धर्म में इसी सोशल डिस्टेंसिंग को संघेटा कहा जाता है। मास्क के अतिरिक्त पूरा जोर इसी पर दिया जा रहा है।
तीसरा जैन सिद्धांत है सम्यक एकांत, जिसका अंग्रेजी में समानार्थी शब्द है आइसोलेशन। कोरोना के संक्रमण के डर से डब्ल्यूएचओ की ओर से जारी आइसोलेशन के नियमों को सारी दुनिया मान रही है। आइसोलेशन की पालना की जाए तो कोरोना संक्रमण का खतरा बिलकुल नहीं रहेगा।
जैन धर्म के चौथे सिद्धांत अलगाव को वर्तमान में क्वारेंटाइन के नाम से अपनाया जा रहा है। वस्तुत: जैन धर्म में ध्यान लगाने के लिए अलगाव के सिद्धांत का भी पालन किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति में कोरोना के सामान्य लक्षण दिखते हैं, तो उसे 14 दिन के लिए क्वारेंटाइन कर दिया जाता है। ज्ञातव्य है कोरोना गाइड लाइन की अवहेलना करने वालों को तुरंत क्वारेंटाइन सेंटर्स भेजा जाता है, भले ही उनमें कोरोना के सामान्य लक्षण न हों। उन सेंटर्स में जांच के बाद नेगेटिव पाए जाने पर ही छोड़ा जाता है।
सर्वविदित है कि अहिंसा के मूल मंत्र को मानने वाले जैन धर्मावलम्बी पूर्णत: शाकाहार का पालन करते हैं। यहां तक कि जमीन के भीतर उगने वाली सब्जियों का भी उपयोग नहीं करते। वर्तमान में कोरोना के डर से शाकाहार अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। कोरोना की पृष्ठभूमि में जाएं तो इस वायरस की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई। वहां सी फूड का मार्केट है। बताया जाता है कि जानवरों व पक्षियों के इस मार्केट से ही कोरोना वायरस पनपा है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि अन्य वायरल बीमारियों बर्ड फ्लू व स्वाइन फ्लू की उत्पत्ति भी अन्य जीवों से फैलती है।
कुल मिला कर कोरोना ने पूरी दुनिया को जैन धर्म के सिद्धांतों पर चलने को मजबूर कर दिया है। इससे साबित होता है कि जैन धर्म के सिद्धांतों में कितनी दूर दृष्टि रही है। इन सिद्धातों की स्थापना उस काल में हुई, जब विज्ञान बिलकुल भी उन्नत नहीं था।
-तेजवानी गिरधर
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