इसे समझने की कोषिष करते हैं। कहते हैं न कि आज जो विमान है, उसका आयाम कुछ और है, वैज्ञानिक। रामायण काल में पुश्पक विमान था, वह भी आज जैसा विमान रहा होगा, बस फर्क इतना है कि उसका आयाम और था, आध्यात्मिक। उसकी तकनीक, उसकी कीमिया कुछ और थी। आज जिसे हम परमाणु बम कहते हैं, वह पहले ब्रह्मास्त्र के रूप में था। आज टीवी के जरिए हम दूरदराज की घटना हाथोंहाथ देख रहे हैं, ठीक वैसी दिव्य दृश्टि महाभारत के संजय के पास थी, जिसका उपयोग कर वे धृतराश्ट को युद्ध का वर्णन कर रहे थे। आज सर्जरी के जरिए हार्ट टांसप्लांट हो रहा है, किडनी का टांसप्लांट हो रहा है, ठीक उसी तरह किसी काल में षिव जी ने हाथी का सिर गणेष जी पर लगा दिया था। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। इस परिप्रेक्ष्य में विचार करें तो आज जिसे हम एआई कह रहे हैं, उसी से मिलती जुलती विधा प्राचीन काल में रही होगी। आपको ज्ञात होगा कि जैन दर्षन पूर्णतः विज्ञान आधारित है, तभी तो तीर्थंकरों के बारे में पहले से संकेत मिलते थे। वह उस जमाने की एआई का कमाल था। पुराणों में वर्णित प्रसंगों में आने वाले समय व युग में होने वाली घटनाओं का जिक्र स्पश्टतः एआई की तरह की ही कीमिया है। उसे भले ही ज्योतिशीय गणना माना जाए, मगर सारे युगों के बारे में विस्तार से जिस विधा से जाना गया, वह एआई जैसी ही रही होगी। कलयुग में भगवान विश्णु के अंतिम अवतार कल्कि के बारे में पहले से जान लिया गया तो वह अतीन्द्रिय बुद्धिमत्ता की वजह से ही संभव हुआ होगा। आपकी जानकारी में होगा कि पिरामिड इतने बडे पत्थरों से बने हैं, जिन्हे क्रेन से भी नहीं उठाया जा सकता। उस जमाने में क्रेन नहीं थी, तो फिर उन्हें कैसे उठाया गया। इसी प्रकार पहाडियों पर मंदिर निर्माण के लिए बडे बडे पत्थर कैसे पहुंचाए जा सके? जाहिर है ऐसा एआई जैसी विधा से ही संभव हो पाया होगा।
वैसे एआई अर्थात कृत्रिम बुद्धिमत्ता का इतिहास भी कुछ पुराना है। इसका आरंभिक विकास 1950 के दशक में हुआ, जब शोधकर्ताओं ने यह समझना शुरू किया कि कंप्यूटर को सोचने और निर्णय लेने जैसी क्षमताओं के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। 1950 के दशक में
एलन ट्यूरिंग ने ट्यूरिंग टेस्ट का प्रस्ताव दिया, जो यह जांचने के लिए था कि क्या कोई मशीन इंसानों की तरह बौद्धिक व्यवहार कर सकती है।
1956 में डार्टमाउथ सम्मेलन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शब्द पहली बार गढ़ा गया। इसे एआई शोध का औपचारिक आरंभ माना जाता है।
1960-70 के दशक में प्रारंभिक एआई प्रोग्राम जैसे चौटबॉट और शृंखला-आधारित विशेषज्ञ सिस्टम बनाए गए। एआई का उपयोग मुख्य रूप से गणितीय प्रमेयों को हल करने और तर्कसंगत समस्याओं को सुलझाने के लिए किया गया।
1980 के दशक में एक्सपर्ट सिस्टम का विकास हुआ, जो विशेष ज्ञान-आधारित निर्णय लेने में सक्षम था। मशीन लर्निंग और न्यूरल नेटवर्क्स पर नए शोध सामने आए।
1990 के दशक में डीप ब्लू नामक कंप्यूटर ने 1997 में शतरंज चैंपियन गैरी कास्पारोव को हराया। इसने साबित किया कि कंप्यूटर जटिल निर्णय लेने और रणनीति बनाने में भी सक्षम हैं।
2000 के बाद के युग में मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग ने एआई को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। सिरी, एलेक्सा और गूगल असिस्टेंट जैसे वॉयस असिस्टेंट्स एआई को रोजमर्रा के जीवन में लाए। अब एआई लगभग हर क्षेत्र में मौजूद है, यथा स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन, परिवहन, और उद्योग। कुल जमा एआई न केवल समस्याओं को हल कर रहा है, बल्कि नई संभावनाओं को भी उत्पन्न कर रहा है, जैसे रचनात्मक लेखन, संगीत निर्माण, वैज्ञानिक अनुसंधान आदि।
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