गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

एआई जनित चुनाव प्रचार सामग्री कितनी चुनौतिपूर्ण?

हाल ही चुनाव आयोग ने एआई के जरिए बनाई गई प्रचार सामग्री के लिए गाइड लाइन जारी की है। वह इसको लेकर बहुत चिंतित है। वह फर्जी प्रचार सामग्री पर कितना अंकुष लगा पाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। 

वस्तुतः एआई जनित प्रचार सामग्री चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी नई चुनौती बनकर उभर रही है। एआई की मदद से उम्मीदवारों या नेताओं की नकली आवाज और चेहरे वाले वीडियो आसानी से बनाए जा सकते हैं, जिन्हें आम जनता वास्तविक मान लेती है। चुनाव आयोग के लिए यह तय करना मुश्किल होता है कि कौन-सा वीडियो असली है और कौन सा एआई से तैयार किया गया है। एआई टूल्स बड़ी मात्रा में झूठे या आधे-सच वाले संदेश, पोस्ट और ग्राफिक्स तैयार कर सकते हैं। सोशल मीडिया पर इन सामग्रियों को रोकना लगभग असंभव हो जाता है, जिससे मतदाताओं की राय प्रभावित होती है। एआई मतदाताओं के ऑनलाइन व्यवहार और डेटा के आधार पर पर्सनलाइज्ड संदेश बना सकता है। इससे चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं क्योंकि यह मतदाताओं की सोच को छिपे तरीके से प्रभावित करता है। वर्तमान कानूनों में एआई-जनित सामग्री के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। चुनाव आयोग को तय करना पड़ता है कि क्या ‘एआई प्रचार’ स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अंतर्गत आता है या यह आचार संहिता का उल्लंघन है। एआई सामग्री इतनी तेजी से बनती और फैलती है कि आयोग के पास मौजूद तकनीकी संसाधन उसे तुरंत सत्यापित नहीं कर पाते। वास्तविकता जांच और नियंत्रण में समय लग जाता है। अधिकतर मतदाता एआई जनित सामग्री और असली सामग्री में फर्क नहीं कर पाते।

इससे गलत जानकारी के आधार पर वोटिंग निर्णय लिए जा सकते हैं।

कुल मिला कर एआई जनित प्रचार सामग्री चुनाव की निष्पक्षता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता, तीनों के लिए गंभीर खतरा है। इससे निपटने के लिए चुनाव आयोग को चाहिए कि वह एआई सामग्री की पहचान के लिए तकनीकी सेल बनाए, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के साथ रीयल-टाइम मॉनिटरिंग करे, और जनता में डिजिटल साक्षरता अभियान चलाए।


शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025

किसी देश में राइट हैंड तो किसी में लेफ्ट हैंड डाइव क्यों?

कुछ देशों में सड़क के बाईं ओर गाड़ी चलाई जाती है, यानि लेफ्ट हैंड डृाइव और कुछ देशों में दायीं ओर चलाई जाती है, यानि राइट हैंड डाइव। क्या आपने सोचा है कि ऐसा क्यों? आइये समझने का प्रयास करते हैं। जहां तक लेफ्ट हैंड डाइव का सवाल है, उसके मूल में यह वजह है। जब तक आदमी लड़ता-झगड़ता नहीं था, तब तक सब सही था. लेकिन फिर वो साथ में तलवार लेकर चलने लगा। ज्यादातर लोग राइटी होते हैं, तो ज्यादातर तलवारबाज दाएं हाथ से तलवार चलाते थे। जब वो घोड़ा लेकर सड़क पर निकलते तो सड़क के बाईं ओर चलते, ताकि सामने से आने वाले दुश्मन को उनके दाईं तरफ से ही गुजरना पड़े. ऐसे में उस पर आसानी से वार किया जा सकता था।

इस तरह सड़क पर बायीं चलने की रवायत पड़ी। इसमें ट्विस्ट आया 18वीं सदी में। फ्रांस और अमेरिका में खेत की उपज ढोने के लिए बड़ी-बड़ी बग्घियां बनीं, जिन्हें कई घोड़े जोत कर खींचा जाता था. लेकिन इन बग्घियों में गाड़ीवान के लिए जगह नहीं होती थी. तो एक आदमी किसी एक घोड़े पर बैठ कर बाकी को हांकता था. अब चाबुक चलाने के लिए इस आदमी को अपना दायां हाथ फ्री रखना होता था. इसलिए ये बाईं तरफ जुते आखिरी घोड़े पर बैठता था. अब चूंकि ये आदमी बग्घी की बाईं तरफ बैठा होता था, वो बग्घी सड़क की दाईं तरफ चलाता था ताकि सामने से आने वाली गाड़ियां उस तरफ से निकलें जहां वो बैठा हुआ है. इससे दो बग्घियों के क्रॉस होते वक्त टक्कर वगैरह पर नजर रखी जा सकती थी. इस तरह सड़क पर दाएं चलने की रवायत पड़ी।

कुछेक देशों में नियम भी बने. जैसे रूस ने दाएं चलने का नियम बनाया 1752 में. लेकिन सज्जे-खब्बे की असल लड़ाई शुरू हुई फ्रांस में क्रांति के साथ. क्रांति के दौरान फ्रांस में बड़े पैमाने पर रईसों का कत्ल हुआ. इसलिए वहां के रईसों में डर बैठ गया और कहीं जाने के लिए उन्होंने भी सड़क की दाईं ओर चलना शुरू किया. इससे वो सफर के दौरान निचले तबके में घुल-मिल और अपेक्षाकृत सुरक्षित रहते. क्रांति के बाद फ्रांस में नियम बना कि सड़क पर दाईं तरफ ही चला जाएगा. साल था 1794.

फ्रांस की क्रांति से जो देश अछूते रहे, वहां बाईं तरफ चलने का नियम बन गया. जैसे ब्रिटेन (1835) और पुर्तगाल. कुल मिला कर यूरोप में इसी तरह तय हुआ कि सड़क पर बाईं तरफ चला जाए कि दाईं तरफ. लेकिन एक ट्विस्ट फिर आया. उसका नाम था नेपोलियन. नेपोलियन जहां-जहां जाकर जीता, वहां-वहां उसने दाईं तरफ चलने का नियम बनाया. नेपोलियन के बहुत बाद जब हिटलर हुआ तो उसने यूरोप के बचे-खुचे देशों में भी दाएं चलने का नियम बना दिया. 

यूरोप के देशों ने दुनिया भर के देशों को अपना गुलाम बनाया. जहां-जहां वो जाते, अपने यातायात नियम भी लागू करते. मसलन ब्रिटेन जहां-जहां गया- जैसे भारत, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड वगैरह में बाएं चलने का नियम बना और जहां-जहां फ्रांस गया, वहां दाएं चलने का नियम बना. कुछ अपवाद रहे. जैसे मिस्र (ईजिप्ट), जो अंग्रेजों का गुलाम रहा था लेकिन दाएं ही चला. चक्कर ये था कि मिस्र में अंग्रेजों से बहुत पहले नेपोलियन पहुंच गया था. और तब से ही मिस्र सड़क की दाईं तरफ चलता है.

स्वीडन का मामला थोड़ा अलग है. वहां बाईं तरफ चलने का नियम बना हुआ था. लेकिन ये छोटा सा देश सब तरफ से दाएं चलने वाले देशों से घिरा था. तो यहां लेफ्ट-राइट में से एक को चुनने के लिए बाकायदा रेफरेंडम (माने रायशुमारी) कराया गया. रेफरेंडम में 82.9 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो बाएं चल कर खुश हैं. फिर भी सरकार ने 1967 में दाएं चलने का नियम बना दिया.

एक दिलचस्प बात और। म्यांमार में ट्रैफिक बाईं ओर चलता था. लेकिन 1970 में वहां के तानाशाह जनरल ‘ने विन’ ने एक ओझा के कहने पर ट्रैफिक बाएं से दाएं कर दिया. अब जनरल से पंगा कौन लेता, तो लोग अपनी राइट हैंड ड्राइव गाड़ी ही सड़क पर दाईं ओर चलाने लगे. आज भी म्यांमार की अधिकतर गाड़ियां राइट हैंड ड्राइव हैं.

भारत में कारों के बायीं ओर चलने का कारण इंग्लैंड है। इंग्लैंड ने भारत में कई साल राज किया। और भारत में इंग्लैंड के कई कानूनों का पालन किया जाता है। दरअसल, इंग्लैंड में शुरू से ही कारें सड़क के बायीं ओर ही चलती हैं। 1756 में इंग्लैंड में इसे कानून बना दिया गया और इस कानून का पालन सभी ब्रिटिश शासित देशों में किया जाने लगे। भारत भी इंग्लैंड का गुलाम रह चुका है और इस कारण भारत में भी ये कानून लागू हुआ और कारें सड़के के बायीं ओर चलने लगीं।

सवाल यह कि अमेरिका में दायीं ओर क्यों चलतीं हैं कारें? माना जाता है कि 18वीं शताब्दी में अमेरिका में टीमस्टर्स की शुरुआत हुई थी। इसे घोड़ों की मदद से खींचा जाता था। इस वैगन में ड्राइवर के बैठने के लिए जगह नहीं होती थी और इसलिए वो सबसे बाएं घोड़े पर बैठकर दाएं हाथ से चाबुक इस्तेमाल करता था। लेकिन इससे वो ड्राइवर पीछे आने वाले वैगनों पर नजर नहीं रख पाता था और इसलिए बाद में अमेरिका में सड़क के दायीं ओर चलने का कानून बन गया। 18वीं शताब्दी के अंत तक इस कानून को पूरे अमेरिका में लागू कर दिया गया और लोग इस नियम के मुताबिक ही गाड़ी चलाने लगे।

मौजूदा समय में विश्व भर में 163 देशों में सड़क के दायीं ओर चलने का नियम है, वहीं 76 देश ऐसे हैं, जहां सड़क के बायीं ओर चला जाता है। यूरोप में ब्रिटेन, आयरलैंड, माल्टा, साइप्रस को छोड़कर कहीं भी गाड़ियां बायीं ओर नहीं चलतीं। चीन की बात करें तो यहां भी गाड़ियां दायीं ओर ही चलतीं हैं। लेकिन चीन के आधिपत्य वाले हॉन्गकॉन्ग में गाड़ियां बायीं ओर चलतीं हैं।


बुधवार, 1 अक्टूबर 2025

तेज तर्रार नेताओं का बोलबाला

इन दिनों राज्य में तेज तर्रार नेता खूब चर्चा में हैं। पुलिस से टकराव की एक के एक बाद घटनाएं हो रही हैं। चूंकि सोषल मीडिया का जमाना है, इस कारण ऐसे नेता ही सुर्खियां बटोर रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या राज्य की राजनीति करवट ले रही है? क्या नए युग का सूत्रपात हो रहा है? क्या यह लोकतंत्र का नया चेहरा है? क्या व्यवस्था में मौजूद प्रषासनिक संवेदनहीनता के खिलाफ आमजन में आक्रोश बढता जा रहा है? नेताओं की जो तेजतर्रारी है, वह जनता के मन में उमड रहे असंतोश की निश्पत्ति है। जो जितनी आक्रामक षैली में विरोध प्रदर्षन करता है, उसे उतना ही अधिक जनसमर्थन मिल रहा है। कहीं हम कानून-व्यवस्था बनाने वाली पुलिस को दुष्मन मानने लगे हैं? कहीं युवा पीढी में सरकार व प्रषासन से टकराव की प्रवृत्ति तो नहीं बढ रही है? क्या पुलिस को ललकारना गौरव है? बेषक संविधान ने पुलिस को अपार अधिकार दिए हैं, कानून के हाथ बहुत लंबे हैं, मगर ऐसा लगता है कि मौजूदा राजनीतिक सिस्टम में पुलिस दबाव की स्थिति में आ गई है। विरोध प्रदर्षन के दौरान वह बहुत संयम बरतती है, मगर स्थिति काबू से बाहर होने पर चरणबद्ध उपाय करने को मजबूर होती है।

पिछले दिनों हुई कुछ वारदातों के बाद यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि क्या राज्य में तीसरा मोर्चा खडा हो जाएगा? क्या गैर कांग्रेसी व गैर भाजपाई क्षत्रप एकजुट हो जाएंगे? अब तक अनुभव का देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि इसकी संभावना कम है। और अगर वे आगामी चुनाव में प्रभावषाली स्थिति में रहते हैं तो उसका नुकसान कांग्रेस को ही होगा। क्योंकि भाजपा का वोट आमतौर पर इधर उधर नहीं होता।


एआई जनित चुनाव प्रचार सामग्री कितनी चुनौतिपूर्ण?

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