बुधवार, 31 दिसंबर 2025

हमारी शिक्षा पद्धति कितनी बेमानी है?

क्या आपने कभी ख्याल किया है कि हमारे यहां हायर एजुकेशन में जो विषय पढाए जाते हैं, उनका व्यावहारिक जीवन में कोई उपयोग नहीं होता। इस पर गौर करें तो यही प्रतीत होता है कि हमारी शिक्षा पद्धति बेमानी है या सार्थक नहीं है। बहुत से छात्र कहते हैं कि किताबों में बहुत कुछ पढ़ा, पर नौकरी में काम कुछ और आता है। थ्योरी पहाड़ जैसी, लेकिन व्यावहारिक ज्ञान शून्य। चार साल की डिग्री के बाद भी कौशल सीखने के लिए अलग से कोर्स करने पड़ते हैं। आपने देखा होगा कि विभिन्न विधाओं में महारत हासिल करने वाले औपचारिक शिक्षा में फिसड्डी होते हैं, जबकि अच्छे अंकों से डिग्रियां हासिल करने वाले बडे ओहदे पर पहुंचने के बाद भी व्यावहारिक ज्ञान न होने के कारण औसत परिणाम ही दे पाते हैं।

वस्तुतः हमारी शिक्षा व्यवस्था ज्ञान नहीं, अपितु अंक-केन्द्रित है। 

स्कूल हो या कॉलेज, पूरा सिस्टम परीक्षा और अंकों पर आधारित है। अंक अच्छे आए तो पढ़ा लिखा, नहीं आए तो कमजोर। यह मानसिकता ही असली समस्या है। सच तो यह है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था स्मृति आधारित है। जिसकी स्मृति अच्छी है या जो विषय वस्तु को ठीक से रट लेता है, याद कर लेता है, उसे अच्छे अंक प्राप्त होते हैं। पढ़ाई किताबों तक सीमित होती है, इसलिए सीखने की बजाय रटने का सिलसिला चलता है।

आपने देखा होगा कि अधिकतर विषयों में प्रयोगशालाएं सिर्फ औपचारिक हैं। इंटर्नशिप जैसे अनुभव वास्तविक नहीं होते

एक महत्वपूर्ण बात और। भारत में कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम 10-20 साल पुराने हैं, जबकि दुनिया में नौकरी, तकनीक, बिजनेस और समाज हर दिन बदल रहे हैं। इसके अतिरिक्त पाठ्यक्रमों में व्यावसायिक कौशल की कमी पायी जाती है। कॉलेजों में संवाद कौशल, समस्या-समाधान, वित्तीय साक्षरता, उद्यमिता, सॉफ्ट स्किल्स, डिजिटल कौशल आदि नहीं सिखाए जाते, जबकि वास्तविक जीवन में इन्हीं कौशलों की सबसे अधिक जरूरत होती है।

वन-साइज-फिट्स-ऑल मॉडल भी एक समस्या है। हर बच्चे को एक जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं, जबकि हर बच्चे की रुचि अलग है। हर बच्चे की सीखने की गति अलग है, करियर लक्ष्य अलग है, परंतु शिक्षा सिस्टम सबको एक ही सांचे में ढालने की कोशिश करता है।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हाई एजुकेशन पूरी तरह बेकार है? नहीं, बेकार नहीं है, पर उसकी संरचना और प्राथमिकताएं आज के समय के अनुरूप नहीं हैं। कुछ विषय, जैसे इंजीनियरिंग, मेडिसिन, विज्ञान, कानून आदि अपने मूल रूप में उपयोगी हैं, लेकिन प्रस्तुति, प्रशिक्षण और सिलेबस आज भी पिछले युग में अटके हैं। तो फिर कैसे बन सकती है शिक्षा प्रणाली उपयोगी? होना यह चाहिए कि नौकरियों और जीवन में काम आने वाले कौशलों को केंद्र में रखा जाए।

हर विषय में प्रयोग, परियोजना कार्य, इंटर्नशिप आदि में वास्तविक दुनिया से जुड़े असाइनमेंट को अनिवार्य किया जाना चाहिए। कंपनियां और उद्योग मिल कर सिलेबस तय करें, ताकि पढ़ाई वर्तमान बाजार से जुड़ सके। हर बच्चे को अपनी रुचि और भविष्य के अनुसार विषय चुनने की आजादी मिले।

शिक्षाविदों ने नई शिक्षा नीति में कई सुधार सुझाए गए हैं, जैसे बहु-विषयक शिक्षा, क्रेडिट ट्रांसफर, स्किल-डेवलपमेंट, इसका वास्तविक प्रभाव तभी होगा जब व्यावहारिक रूप से लागू हो।

-तेजवाणी गिरधर

7742067000


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