धरती पर अब तक न जाने कितने भगवान, ऋषि-मुनि, महापुरुष, युग पुरुष, चिंतक, दार्शनिक, ज्ञानी, संत-महात्मा आदि अवतरित हुए हैं। हम उत्तरोत्तर बुद्धिमान व सभ्य भी होते जा रहे हैं, मगर आदमी दिन ब दिन और बदमाश, कुटिल व स्वार्थी होता जा रहा है। तो सवाल ये उठता है कि उनके अवतरण का आखिर लाभ क्या हुआ? किताबें आदर्श, मर्यादा, सदाचार, प्रेम आदि से भरी पड़ी हैं, मगर दुनिया में आदर्शहीनता, अमर्यादित व्यवहार, दुराचार व दुश्मनी का ही बोलाबाला है। तो क्या वे किताबें बेमानी हैं? इस किस्म के सवाल मुझे किशोरावस्था से कचोटता रहे हैं। इस बारे में मैंने अपने अंग्रेजी के शिक्षक, जो कि दार्शनिक सा जीवन जीते थे, सवाल किया। उन्होंने कहा कि क्यों फालतू के सवालों में अपना समय गंवाते हो। दुनिया जाए भाड़ में। भगवान ने आपको दुनिया को सुधारने का ठेका दे कर पैदा नहीं किया है। अपने काम से काम रखो। जीवन बहुत छोटा है, आत्म कल्याण के लिहाज से। सारा ध्यान इस पर लगाओ कि आप स्वयं कैसे बेहतर से बेहतर जीवन जीते हैं। यह दुनिया सदैव से ऐसी ही रही है। इसको सुधारने की चिंता छोड़ो। सुधार पाओगे भी नहीं। मशक्कत व्यर्थ जाएगी।
उन्होंने गीता में उल्लिखित भगवान श्रीकृष्ण के संदेश, यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:, अभ्युत्थानमधर्मस्य तत्दात्मानम सृजाम्यहम का जिक्र करते हुए बताया कि इस संदेश में ही यह अंतनिर्हित है कि धर्म की हानि तो होती रहेगी और अधर्म को मिटाने के लिए भगवान भी बार-बार अवतरित होते रहेंगे। सिलसिला कहीं थमने वाला नहीं है। महापुरुष जन्म लेंगे। बेशक अपने-अपने काल खंड को प्रभावित करेंगे, मगर किसी का प्रभाव शाश्वत नहीं रहेगा। कुत्ते की पूंछ सा है आदमी। तो तुम दुनिया को सुधारने का जिम्मा मत लो, वह भगवान पर ही छोड़ दो। जरा सोचो कि खुद भगवान को ही बार-बार अवतार लेना पड़ता है, एक बार के अवतार से वे दुनिया को पूरा सुधार नहीं पाते। दुनिया में फिर से अधर्म का बोलबाला हो जाता है। ऐसे में तुम्हारी बिसात ही क्या है?
और खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि समय का एक प्रवाह है। एक धारा है। जैसे एक नदी के प्रवाह को हम रोक नहीं पाते, वैसे ही वक्त के खिलाफ चलने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। यदि हम नदी की धारा को रोकने की कोशिश करेंगे तो मात्र अपने शरीर मात्र की सीमा तक सफल हो पाएंगे। और वह भी कब तक? हद से हद साठ-सत्तर साल तक। जैसे ही तुम समाप्त हो जाओगे, वह फिर से अपनी दिशा में बहती रहेगी। ये दुनिया ऐसी ही रहेगी। तो क्यों फालतू में अपना टाइम बर्बाद करते हो। काहे फिक्र करो दुनिया की? उचित ये है कि सारा ध्यान अपने पर केन्द्रित कर लो। दुनिया के कल्याण का ख्याल छोड़ो, वह तुमसे होना भी नहीं है, ज्यादा अच्छा है कि आत्म कल्याण की दिशा में बढ़ जाओ। यह सीख मेरे जेहन में गहरे पैठी हुई है, हालांकि इस पर सीमित ही अमल कर पाया हूं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
उन्होंने गीता में उल्लिखित भगवान श्रीकृष्ण के संदेश, यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:, अभ्युत्थानमधर्मस्य तत्दात्मानम सृजाम्यहम का जिक्र करते हुए बताया कि इस संदेश में ही यह अंतनिर्हित है कि धर्म की हानि तो होती रहेगी और अधर्म को मिटाने के लिए भगवान भी बार-बार अवतरित होते रहेंगे। सिलसिला कहीं थमने वाला नहीं है। महापुरुष जन्म लेंगे। बेशक अपने-अपने काल खंड को प्रभावित करेंगे, मगर किसी का प्रभाव शाश्वत नहीं रहेगा। कुत्ते की पूंछ सा है आदमी। तो तुम दुनिया को सुधारने का जिम्मा मत लो, वह भगवान पर ही छोड़ दो। जरा सोचो कि खुद भगवान को ही बार-बार अवतार लेना पड़ता है, एक बार के अवतार से वे दुनिया को पूरा सुधार नहीं पाते। दुनिया में फिर से अधर्म का बोलबाला हो जाता है। ऐसे में तुम्हारी बिसात ही क्या है?
और खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि समय का एक प्रवाह है। एक धारा है। जैसे एक नदी के प्रवाह को हम रोक नहीं पाते, वैसे ही वक्त के खिलाफ चलने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। यदि हम नदी की धारा को रोकने की कोशिश करेंगे तो मात्र अपने शरीर मात्र की सीमा तक सफल हो पाएंगे। और वह भी कब तक? हद से हद साठ-सत्तर साल तक। जैसे ही तुम समाप्त हो जाओगे, वह फिर से अपनी दिशा में बहती रहेगी। ये दुनिया ऐसी ही रहेगी। तो क्यों फालतू में अपना टाइम बर्बाद करते हो। काहे फिक्र करो दुनिया की? उचित ये है कि सारा ध्यान अपने पर केन्द्रित कर लो। दुनिया के कल्याण का ख्याल छोड़ो, वह तुमसे होना भी नहीं है, ज्यादा अच्छा है कि आत्म कल्याण की दिशा में बढ़ जाओ। यह सीख मेरे जेहन में गहरे पैठी हुई है, हालांकि इस पर सीमित ही अमल कर पाया हूं।
-तेजवानी गिरधर
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