शनिवार, 14 दिसंबर 2019

अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक छपती ही नहीं, अगर....

किसी भी योजना के पूर्ण रूप से सफल होने के लिए उसका ब्लू प्रिंट बनाया जाना जरूरी है। विशेष रूप से उसके आर्थिक पक्ष को ठोक-बजा कर सुनिश्चित करना तो बहुत ज्यादा आवश्यक है। यह एक सामान्य सा तथ्य है, जो कि मैं पहले से जानता हूं, फिर भी मुझे इसके साक्षात दर्शन अजमेर  के इतिहास, वर्तमान व भविष्य पर लिखित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस ने करवाए। मेरी किस्मत में ठोकर खा कर ही ठाकर बनना लिखा था। इस पुस्तक ने भरोसे की भैंस पाडा लाती है, वाली कहावत से भी साक्षात्कार करवाया। कहते हैं कि गलतियां इंसान से होती ही हैं, लेकिन विवेकी वही है, जो गलती को सुधार ले। मुझ मूर्ख ने एक बार गलती होने पर भी नहीं सुधारी।  दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाशित पुस्तक दीनबंधु चौधरी गौरव ग्रंथ की प्रसव पीड़ा भी बहुत वेदना पूर्ण रही। उस बारे में बात फिर कभी। अभी अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक की बात।
असल में यह प्रस्ताव मौलिक रूप से नगर पालिका सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी व मेरे बड़े भाई समान आदरणीय श्री सुरेश गर्ग का था। बहुत साल पहले उनके बड़े भ्राता श्री कमल गर्ग ने शहर के प्रमुख लोगों के व्यक्ति परिचय की पुस्तक बनाने की प्रयास किया था। उसकी पांडुलिपि भी बन गई, मगर वह प्रकाशित नहीं हो पाई थी। कदाचित वह अधूरा सपना पूरा करने का ही श्री सुरेश गर्ग का विचार रहा हो। हालांकि हमने पुस्तक को प्रकाशित  करने पर होने वाले व्यय का अनुमान लगा लिया था और उसके लिए जुटाई जाने वाली राशि के बारे में अंदाजा लगा लिया था, मगर उसकी सुनिश्चित व्यवस्था नहीं की।
खैर, हमने आजाद साप्ताहिक के भूतपूर्व प्रधान संपादक स्वर्गीय घीसूलाल जी पांड्या की ओर से कोई चालीस साल पहले प्रकाशिक पुस्तक  को ख्याल में रखा। इसी प्रकार कर्नल टॉड व स्वर्गीय श्री हरविलास शारदा की अजमेर के इतिहास पर लिखित पुस्तक को भी सामने रखा।
पुस्तक में व्यक्ति परिचय के अतिरिक्त अजमेर के बारे में मोटी-मोटी जानकारी देने का विचार था, मगर मेरी एक गंदी आदत के कारण पुस्तक का स्वरूप ही बदल गया। किसी भी विषय की गहराई में जाने और बेहतर से बेहतर करने की प्रवृत्ति के चलते मैंने अजमेर के इतिहास व वर्तमान पर अनेक अध्यायों पर काम करना शुरू कर दिया। नतीजतन यह एनसाइक्लोपीडिया व थीसिस सा दुरूह कार्य बन गया। मैने इतनी मेहनत की, इतनी मेहनत की कि उसका शब्दों में वर्णन करना असंभव है। पुस्तक का तकरीबन अस्सी फीसदी काम पूरा होने के बाद ख्याल आया कि इसके प्रकाशन के लिए अपेक्षित धन राशि नहीं जुटाई जा सकेगी। मुझे लगा कि इस पुस्तक का हश्र भी श्री कमल गर्ग के प्रयास की तरह होगा। श्री सुरेश गर्ग की ओर से प्रारंभिक रूप से जुटाई गई राशि के भी डूबने का खतरा था। ऐसे में इस कथानक में यकायक किसी देवता की भांति स्वामी न्यूज के एमडी श्री कंवल प्रकाश किशनानी का प्रवेश हुआ। वे मेरे अनन्य मित्र हैं। उन्होंने संकल्प लिया कि इस पुस्तक को किसी भी सूरत में प्रकाशित करेंगे। उन्होंने न केवल प्रकाशन से पूर्व आर्थिक संसाधन झोंके, अपितु पूरा व्यय जुटाने के लिए विज्ञापन भी हासिल किए। जब पांडुलिपि बन गई तो हम दोनों ने शहर के जाने-माने डिजाइनर जनाब जमाल भाई के साथ मिल कर एक-एक पेज की डिजाइन तैयार की। कई बार रात के तीन-तीन बजे तक काम किया। और पुस्तक प्रकाशित हो गई। मेरी इस संतति को देख कर मुझे वैसा ही आनंद मिलता है, जैसा किसी मां को प्रसव पीडा के बाद संतान के पैदा होने पर होता है। विचार आया कि उसका विमोचन तत्कालीन केन्द्रीय राज्य मंत्री श्री सचिन पायलट के हाथों से करवाएंगे। मैने स्थानीय कांग्रेसी नेताओं की मदद लेने की सोची, मगर एक भी नेता ऐसा नहीं मिला, जो कि हमें उनसे मिलवा सके। आखिरकार एडीटीवी के तत्कालीन अजमेर ब्यूरो चीफ मोईन भाई ने सहयोग किया। उन्होंने ही श्री पायलट से अपॉइंटमेंट दिलवाया। श्री पायलट पूर्व परिचित थे। उन्होंने तुरंत स्वीकृति दे दी। विमोचन स्थानीय कनक सागर समारोह स्थल पर हुआ, जिसमें अजमेर के भाजपा व कांग्रेस के सभी नेता, बुद्धिजीवी, व्यापारी व पत्रकार साथी मौजूद थे। किसी पुस्तक का ऐसा विमोचन समारोह शायद पहले कभी नहीं हुआ होगा। श्री पायलट ने पुस्तक के लिए मेरी तो सराहना की ही, मगर साथ ही ये उद्गार भी व्यक्त किए कि ऐसे ऐतिहासिक कार्य का श्रेय उन लोगों को भी जाता है, जिन्होंने इसके प्रकाशन में मदद की। सीधे तौर पर उनका इशारा श्री किशनानी व श्री सुरेश गर्ग की ओर था। पुस्तक के यज्ञारंभ के लिए श्री सुरेश गर्ग और पूर्णाहुति के लिए श्री कंवल प्रकाश किशनानी का बारंबार आभार।
मैं स्वीकार करता हूं कि मैं श्री किशनानी का चाहे कितना आभार मानूं, मगर ऋण से कभी उऋण नहीं हो पाऊंगा। उनको बारम्बार साधुवाद।
बात समाप्त करने से पहले आखिरी बात। दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाशित पुस्तक दीनबंधु चौधरी गौरव ग्रंथ, जिसका कि मैने संपादन किया, ने मुझे मूर्ख साबित कर दिया। एक गलती के बाद लगातार दूसरी गलती के लिए मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा। उसकी कहानी फिर कभी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह 👌🏽👍🏽 । सच में पुस्तक प्रकाशन के लिए इतनी मशक्कत और मेहनत संभवतया तथाकथित स्वयंभू लेखक भी नहीं करते... 👌🏽👍🏽

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  2. आपके प्रयास सराहनीय हैं, आपकी हिम्मत ही थी जो सब आपके साथ लग गए और वास्तविक रूप से मुख्य भूमिका में कोई व्यक्ति अगर भूत बनकर काम पर लगता हैं तो ऊपर वाला भी उसके आगे की व्यवस्था स्वयं ही कर देता है।

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