एक सवाल मेरे दिमाग में अनेक बार आता है कि हम जो कुछ भी सोचते हैं अथवा कल्पना करते हैं, क्या वह ब्रह्मांड में कहीं न कहीं विद्यमान है? यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि हम और हमारा दिमाग ब्रह्मांड का ही हिस्सा हैं, उससे अलग नहीं, तो जो कुछ भी दिमाग में आता है, वह ब्रह्मांड में कहीं न कहीं होना ही चाहिए। यदि वह ब्रह्मांड में मौजूद नहींं है, तो फिर हमारे दिमाग में कहां से आ सकता है?
इसी सिलसिले में एक विचार ये भी आता है कि हालांकि हम सृष्टि की ही इकाई हैं, मगर इस इकाई में भी अपनी सीमित सृष्टि बनाने की क्षमता मौजूद है। यानि कि ऐसा भी हो सकता है कि जो भी काल्पनिक दृश्य हमारे दिमाग में आता है, वह हमारी ही ओर से सृजित किया गया गया हो, भले ही वह वृहद सृष्टि में मौजूद न हो। वास्तव में सच क्या है, यह आप भी विचार कीजिए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
इसी सिलसिले में एक विचार ये भी आता है कि हालांकि हम सृष्टि की ही इकाई हैं, मगर इस इकाई में भी अपनी सीमित सृष्टि बनाने की क्षमता मौजूद है। यानि कि ऐसा भी हो सकता है कि जो भी काल्पनिक दृश्य हमारे दिमाग में आता है, वह हमारी ही ओर से सृजित किया गया गया हो, भले ही वह वृहद सृष्टि में मौजूद न हो। वास्तव में सच क्या है, यह आप भी विचार कीजिए।
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