यदि किसी युवक की शादी न हो रही हो, शादी में विलंब हो रहा हो तो एक उपाय किया जाता है। वो ये कि जब किसी की शादी हो रही हो और वह जब वधु पक्ष के दरवाजे पर तोरण मारने के बाद घोड़ी से उतर रहा हो तो अविवाहित युवक अगर तुरंत घोड़ी पर बैठ जाए तो उसकी भी शादी का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। है न विचित्र परंपरा।
ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति में रिक्त स्थान की पूर्ति होने की व्यवस्था है। जैसे ही कोई स्थान रिक्त होता है, प्रकृति उसे भरने की कोशिश करती है। दूल्हे का घोड़ी पर बैठे होना एक स्थिति है। इसे हम दृश्य भी कह सकते हैं। जैसे ही दूल्हा घोड़ी से उतरता है, तो वह स्थान रिक्त हो जाता है। उसे अगर अविवाहित युवक तुरंत भरता है तो हालांकि तब वह दूल्हा तो नहीं बन जाता, मगर प्रकृति तत्काल बनी दूसरी स्थिति को पूर्ण करने में जुट जाती है। अर्थात प्रकृति ऐसे संयोग निर्मित करती है कि उस युवक की जल्द शादी हो जाए।
इसे ऐसे भी समझा जा सकता है। वो ये कि जब कोई अविवाहित युवक दूल्हे की ओर से खाली की गई जगह पर बैठता है तो हालांकि उसकी शादी नहीं होने जा रही होती, मगर प्रतीकात्मक रूप से वह दूल्हे की स्थिति निर्मित करता है, वैसा दृश्य बनाता है और प्रकृति की शक्तियां उस स्थिति को भौतिक रूप से साकार करने में लग जाती हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति में रिक्त स्थान की पूर्ति होने की व्यवस्था है। जैसे ही कोई स्थान रिक्त होता है, प्रकृति उसे भरने की कोशिश करती है। दूल्हे का घोड़ी पर बैठे होना एक स्थिति है। इसे हम दृश्य भी कह सकते हैं। जैसे ही दूल्हा घोड़ी से उतरता है, तो वह स्थान रिक्त हो जाता है। उसे अगर अविवाहित युवक तुरंत भरता है तो हालांकि तब वह दूल्हा तो नहीं बन जाता, मगर प्रकृति तत्काल बनी दूसरी स्थिति को पूर्ण करने में जुट जाती है। अर्थात प्रकृति ऐसे संयोग निर्मित करती है कि उस युवक की जल्द शादी हो जाए।
इसे ऐसे भी समझा जा सकता है। वो ये कि जब कोई अविवाहित युवक दूल्हे की ओर से खाली की गई जगह पर बैठता है तो हालांकि उसकी शादी नहीं होने जा रही होती, मगर प्रतीकात्मक रूप से वह दूल्हे की स्थिति निर्मित करता है, वैसा दृश्य बनाता है और प्रकृति की शक्तियां उस स्थिति को भौतिक रूप से साकार करने में लग जाती हैं।
-तेजवानी गिरधर
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बहुत ही शानदार और लॉजिक से जुड़ा हुआ लेख है आपका।
जवाब देंहटाएंआपका आभार
हटाएंसही कहा आपने, यह प्रकृति का विधान है, ओर अनादि काल से चली आ रही परंपरा और रिवाज के मायने बड़े गंभीर होते है ।
जवाब देंहटाएंइस लेख को पढ़नेे से पहले मैं इसे बेकार की रीत मानता था, मगर इस रीत का वाकई अर्थ है, जिससें लोगों को जानने को मिलता है कि, किसी स्थान का खाली हो जाना, ये नहीं है कि वह खाली ही रहेगी, वो भरेगी और भर कर रहेगी। तेजवानी सर बहुत सही ज्ञानवर्धक बातें लिखतें हो।
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया
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