गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

इसलिए बदल गई भूखे को भोजन देने की आस्था

कमल गर्ग
इसे क्या कहेंगे, मैं और मेरी बड़ी बहन इंदौर से अजमेर ट्रेन से आ रहे थे। यह लगभग 40 साल पुरानी बात है। ट्रेन के सफर में 15 घंटे लगभग लगते थे। हमारी बहन ने अपने साथ इंदौर से खाना ले लिया था, जिसमे पराठे,  आलू की सब्जी एवं आचार था। खाने के टाइम पर उन्होंने जैसे ही खाना मुझे देना शुरू किया, एक भिखारी चाय के लिए पैसे मांगने लगा। हमारी बहन ने उसे दो पराठे और आलू की सब्जी उसे दे दी। उससे बोला, हम खाना खा रहे हैं, आप भी खाना खा लो। वह भिखारी कुछ नहीं बोल कर परांठे लेकर आगे सरक गया और उसी दौरान ट्रेन रुकी और प्लेटफार्म आया तो वह उस पर उतर गया। मैं भी पानी के लिए बर्तन लेकर उतरने लगा तो मैंने देखा की उस भिखारी ने उसको दिए पराठे और सब्जी उतरते समय दरवाजे के पास रख दी थी। मैंने यह सब बात अपनी बहन को बताई और मुझे लगा कि लोग भीख पैसे के लिए मांगते हैं, खाने के लिए नहीं। भूखे को अपने खाने से पहले खाना खिलाने का उद्देश्य किस तरह से अविश्वास में बदल गया। उसका यह एक  उदाहरण है। जरूर वह भिखारी शाम की दारू के पैसे इक्कठा करता होगा?
-कमल गर्ग, अजमेर

सुपरिचित वरिष्ठ बुद्धिजीवी श्री कमल गर्ग की यह प्रतिक्रिया मेरे एक ब्लॉग पर आई है, जो दान के विषय में था और उसका शीर्षक था- चोरी होना भी दान का एक रूप है? चूंकि उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया ब्लॉग पर जा कर नहीं दी है और वाटृस ऐप पर दी है, इस कारण अलग से ब्लॉग लिखा है।
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-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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