सोमवार, 6 अप्रैल 2020

क्यों जरूरी है इष्ट देवता?

यह सर्वविदित है कि इस्लाम एकेश्वरवाद के तहत केवल खुदा में ही यकीन रखता है। हिंदू दर्शन में भी एके साधे, सब सधे की मान्यता है, मगर  बहुदेववाद चलन में है। हिंदू मान्यता के अनुसार देवी-देवता तैंतीस करोड़ हैं। उनमें वे प्रचलित देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना किया करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण, भगवान राम, विष्णु, ब्रह्मा, महेश के अतिरिक्त दुर्गा, सरस्वती, हनुमान, गणेश सहित अनेक देवी-देवताओं के साथ लोक देवता यथा बाबा रामदेव, तेजाजी महाराज, भैरों जी महाराज आदि की आराधना की जाती है। इसी प्रकार ग्राम देवता, कुल देवता भी होते हैं। जिस देवी-देवता के प्रति निजी आस्था होती है, उसे इष्ट देवता कहते हैं।
इष्ट देवता क्या है, हमारा इष्ट देवता कौन होना चाहिए, इस विषय पर चर्चा से पहले एक प्रचलित कहानी की बात करते हैं। कहते हैं कि एक बार एक नाव में एक हिंदू व एक मुसलमान सवार थे। अचानक तूफान आया। दोनों अपने-अपने भगवान को याद करने लगे। मुसलमान ने केवल खुदा को ही याद किया, तो वह बच गया। हिंदू ने कभी हनुमान जी को याद किया तो कभी दुगा मां को पुकारा, कभी गणेश जी का स्मरण किया तो कभी श्रीकृष्ण को और वह डूब गया। यह कहानी बहुदेववाद पर तंज कसती है। कहानी का प्रयोजन ये है कि सफलता के लिए एकनिष्ट होना चाहिए। एकनिष्ट होने से एकाग्रता बढ़ती है, जबकि भिन्न देवी-देवताओं को एक साथ इष्टदेव मान लेने से एकाग्रता भंग होती है। भले ही कोई देवी या देवता सर्वशक्तिमान भगवान या ईश्वर नहीं हैं, मगर वे भगवान की ही शक्ति से संचालित हैं। देवता भिन्न-भिन्न है और उनकी प्रकृति भी अलग-अलग है, मगर उनमें मौजूद शक्ति एक ही है। जैसे दीपक, मोमबत्ती, चूल्हा, यज्ञ आदि में स्थित अग्रि एक ही है। भिन्न-भिन्न देवी-देवता की आराधना का अलग-अलग फल है, मगर मनुष्य को इष्ट देव का सर्व प्रथम व सर्वाधिक ध्यान करना चाहिए। जब भी विपत्ति आए तो केवल इष्ट देव का ही ध्यान करना चाहिए। जैसे कहते हैं न कि जीवन में गुरु होना जरूरी है, वैसे ही इष्ट भी उतना ही जरूरी है।
आइये, जरा विस्तार में जाते हैं। हर इंसान किसी एक देवी या देवता की ओर सबसे ज्यादा आकर्षित होता है और वही देवी या देवता उसका इष्ट देव होता है। कुछ लोग इष्ट देव या देवी का निर्धारण कुंडली में अंकित जन्म नक्षत्र के आधार पर करते हैं, जबकि कुछ की मान्यता ये है कि इष्ट देव का संबंध ग्रह-नक्षत्रों से नहीं होता। वे मानते हैं कि इष्ट देव पिछले जन्मों के संस्कारों से तय होता है। वस्तुत: जो देव स्वत: पसंद हो, वही इष्ट देव होता है। इस बारे में ज्योतिष कहता है कि आपका जन्म जिस नक्षत्र में होता है, उसी के देवता आपको आकर्षित करते हैं।
जो लोग मानते हैं कि ज्योतिष हमारे इष्ट देव का निर्धारण करता है, उनके अनुसार आप अपनी जन्म तारीख, जन्म दिन, बोलते नाम की राशि या अपनी जन्म कुंडली की लग्न राशि के अनुसार जान सकते हैं। जिनका जन्म जनवरी या नवंबर माह में हुआ हो वे शिव या गणेश की पूजा करें। फरवरी में जन्मे शिव की उपासना करें। मार्च व दिसंबर में जन्मे व्यक्ति विष्णु की साधना करें। अप्रेल, सितंबर, अक्टूबर में जन्मे व्यक्ति गणेशजी की पूजा करें। मई व जून माह में जन्मे व्यक्ति मां भगवती की पूजा करें। जुलाई माह में जन्मे व्यक्ति विष्णु व गणेश का घ्यान करें।
जिनको वार का पता हो, परंतु समय का पता न हो, तो वार के अनुसार इष्ट देव इस प्रकार होंगे- रविवार- विष्णु, सोमवार- शिवजी, मंगलवार- हनुमान जी, बुधवार- गणेश जी, गुरुवार- शिव जी, शुक्रवार- देवी, शनिवार- भैरव जी।
इसी प्रकार पंचम स्थान में स्थित राशि के आधार पर आपके इष्ट देव इस प्रकार होंगे- मेष:- सूर्य या विष्णु जी की आराधना करें। वृष:-गणेशजी। मिथुन:- सरस्वती, तारा, लक्ष्मी। कर्क:- हनुमानजी। सिंह:- शिवजी। कन्या:- भैरव, हनुमान जी, काली। तुला:- भैरव, हनुमान जी, काली। वृश्चिक:- शिवजी, धनु:- हनुमान जी। मकर:- सरस्वती, तारा, लक्ष्मी। कुंभ:- गणेश जी, मीन:- दुर्गा, राधा, सीता या कोई देवी।
जिनको जन्म समय ज्ञात हो, उनके लिए जन्म कुंडली के पंचम स्थान से पूर्व जन्म के संचित कर्म, ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा, धर्म व इष्ट का बोध होता है। अरुण संहिता के अनुसार व्यक्ति के पूर्व जन्म में किए गए कर्म के आधार पर ग्रह या देवता भाव विशेष में स्थित होकर अपना शुभाशुभ फल देते हैं। पंचम स्थान में स्थित ग्रहों या ग्रह की दृष्टि के आधार पर आपके इष्ट देव तय होते हैं। सूर्य:- विष्णु, चंद्रमा:- राधा, पार्वती, शिव, दुर्गा, मंगल- हनुमानजी, कार्तिकेय, बुध- गणेश, विष्णु, गुरू- शिव, शुक्र- लक्ष्मी, तारा, सरस्वती। शनि- भैरव, काली।
जन्मकुंडली के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के इष्ट देवी या देवता निश्चित होते हैं। यदि उन्हें जान लिया जाए तो कितने भी प्रतिकूल ग्रह हो, आसानी से उनके दुष्प्रभावों से रक्षा की जा सकती है।
लग्न के अतिरिक्त पंचम व नवम भाव के स्वामी ग्रहों के अनुसार देवी-देवताओं का ध्यान पूजन भी सुख-सौहार्द्र बढ़ाने वाला होता है। इष्ट देव की पूजा करने के साथ रोज एक या दो माला मंत्र जाप करना चमत्कारिक फल दे सकता है और आपकी संकटों से रक्षा कर सकता है। ज्योतिष में इस बात का भी उल्लेख है कि कई बार स्वभाव व समय परिवर्तन के साथ इष्ट देवता भी बदल जाता है।
विषय को थोड़ा आगे बढ़ाते हुए यह जानने की कोशिश करते हैं कि जीवन में आने वाली समस्याओं के निवारण के लिए शास्त्रों में किन-किन ग्रहों की उपासना करने को कहा गया है। मानसिक समस्याओं के लिए शिवजी की उपासना, शारीरिक दर्द और चोट की समस्या के लिए हनुमान जी, शीघ्र विवाह के लिए पुरुष मां दुर्गा व स्त्रियां भगवान शिव की, बाधाओं के नाश के लिए भगवान गणेश की पूजा करें, धन के लिए मां लक्ष्मी की, विद्या अध्ययन के लिए सरस्वति, मोक्ष या आध्यात्मिक उपलब्धि के लिए श्रीकृष्ण या महादेव की उपासना करें। 
ऐसी भी मान्यता है कि भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं की हमारे प्रति अनुकूलता व प्रतिकूलता भी होती है। जैसे यदि हम मोटापे से ग्रस्त हैं और निरंतर लक्ष्मी की ही पूजा करते हैं तो स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। इसी प्रकार यदि काम-क्रोध-उत्तेजना अधिक है और आप काली माता या भैरव जी की पूजा कर रहे है, आप कलह -झगड़े -राजदंड और अकाल मृत्यु को आमंत्रित कर रहे है, आपको तो शिव की पूजा करनी चाहिए। इसी प्रकार सरस्वती की पूजा भावुक व्यक्तियों के लिए उचित नहीं है। चंचल प्रकृति के व्यक्ति दुर्गा जी की पूजा करेंगे तो उनकी संदेवनशीलता और बढ़ जाएगी और शांति समाप्त हो जाएगी।
तर्क ये है कि यदि सभी देवी-देवता सभी के लिए उपयुक्त होते तो उनमे इतनी विभिन्नता क्यों होती। आप किसी भी देवी-देवता की पूजा कर रहे है तो इसका मतलब है कि आप उस देवी-देवता को आप अपने शरीर में बुला रहे हैं। जिस तत्व की अधिकता है, उसी के देवी-देवता को बुलाने पर शरीर का शक्ति संतुलन बिगड़ सकता है।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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