शीर्षक पढ़ कर आप कहेंगे ये भी कोई लेख है। ये भी कोई लिखने का विषय है। मगर मुझे लगा कि इस लगभग अछूते विषय का भी छिद्रान्वेषण करना चाहिये, क्योंकि इससे हमारी गंदी सोच का पता चलता है। आत्मावलोकन करना कोई बुरी बात नहीं।
एक जमाना था, जब गुस्सा आने पर श्राप दिया जाता था। वह फलित भी होता था। यहां तक कि मानव योनि में अवतार धारण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण तक को गांधारी का श्राप भुगतना पड़ा था। उस जमाने में वरदान भी फलित होता था। इसका वैज्ञानिक आधार तलाशेंगे तो नहीं मिलेगा, मगर ऐसा विश्वास है कि श्राप व वरदान हुआ करते थे।
अब जमाना बदल गया है। अब वरदान व श्राप का चलन नहीं है। असल में अब वह क्षमता ही नहीं रही। अब किसी पर गुस्सा आने पर उसको अपशब्द कहे जाते हैं। अपने मन के क्रोध को तुष्ट करने के लिए गाली दी जाती है। गाली के माध्यम से सामने वाले को अपमानित किया जाता है। मगर अफसोसनाक व शर्मनाक बात ये है कि दो व्यक्तियों के झगड़े में एक-दूसरे की मां-बहिन को घसीटा जाता है, उनका संबोधन करते हुए गाली दी जाती है, जबकि उनका विवाद से कोई लेना-देना नहीं होता। उन्हें जबरन घसीटा जाता है। हालांकि गाली बाप-दादा व खानदान तक को भी दी जाती है, जातिसूचक अपशब्द भी कहे जाते हैं, मगर अमूमन दी जाने वाली गालियां मां-बहिन पर बनी हुई हैं। यह और भी अधिक शर्मनाक है कि ये यौन-उत्पीडऩ से जुड़ी हुई हैं। इससे आदमी की मानसिकता का पता लगता है कि उसकी सोच कितनी कुत्सित है। और उसने मां-बहिन को क्या समझ रखा है। यानि नारी को वह यौनेच्छा पूर्ति करने वाली वस्तु समझता है।
हमारे यहां सर्वाधिक प्रचलित गाली साला, जिसमें अब किसी को अश्लीलता नजर नहीं आती, वह भी साफ तौर पर महिला के प्रति गंदी सोच से बनी हुई है। यदि हम किसी को साला गाली देते हैं, इसका मतलब है कि हम जबरन उसकी बहन को अपनी पत्नी बता रहे हैं। हद हो गई। जानकारी के मुताबिक सेंसर बोर्ड ने हिंदी सिनेमा में इस गाली को प्रतिबंधित कर रखा है। साले का जिक्र आया है तो साली से जुडी एक बात भी साझा किए देता हूं। हम कितने गंदे हैं, इसका एक उदाहरण देखिए। यह न जाने कहां से चलन में आ गया कि साली यानि आधी घरवाली। संभव है जिसने पहली बार यह जुमला उपयोग में लिया होगा तो यह सोच कर कि साली चूंकि पत्नी की बहिन है, इस कारण हमारे स्वभाव, जरूरतों आदि के बारे में बहुत कुछ जानती है, चूंकि बहिनें आपस में बहुत गुप्त बातें भी करती हैं। ऐसे में वह आधी घरवाली जैसी हो गई। इसमें कोई अश्लीलता नहीं, मगर बाद में इस जुमले के अर्थ बदल गए। वैसे साली बहिन के समान होती है, उसे इसी नजर से देखना चाहिए। अंग्रेजी में तो उसे सिस्टर इन लॉ ही कहा गया है। हो सकता है ऐसे लोग भी हों, जो साली को बहिन ही मानते हों, मगर यह एक कडवी सच्चाई है कि कई लोग उसे बहिन के नजरिये से नहीं देखते। कुछ और भाव ही रखते हैं। कम से कम ठीक वह भाव तो कत्तई नहीं होता, जो बहिन के प्रति होता है। जरा सोचिये कि अगर आपके आपके साढू आपकी पत्नी को आधी घरवाली कह कर पुकारें तो आपको कैसा लगेगा?
अश्लील शब्दों का प्रयोग किए बिना गाली देने के अनेक उदाहरण हैं। जैसे जब हम किसी को यह कहते हैं कि अगर असली बाप की औलाद है तो ये कर के बता, तो इसका मतलब ये कि हम उसकी मां पर गंदा लांछन लगाने की कोशिश कर रहे हैं। गालियों के मनोविज्ञान पर काम कर चुके एक विद्वान ने रामायण का जिक्र करते हुए आवरण में छिपी गाली का उल्लेख किया है कि वशिष्ट मुनि ने केकयी को ऐसा कहा कि अगर भरत दशरथ की औलाद है तो वह राजगद्दी स्वीकार नहीं करेगा। यह भी एक भद्दी गाली है, भले ही इसमें किसी अश्लील शब्द का प्रयोग नहीं किया गया हो।
केवल मां-बहिन ही नहीं, समलैंगिता वाली गालियां भी चलन में हैं। अर्थात गाली देने के लिए यौन व्यवहार को इंगित करते हुए अपशब्द कहे जाते हैं।
हालांकि यह सही है कि जैसे हम सामान्य तौर पर भगवान का नाम लेते हैं तो अमूमन जेहन में भगवान नहीं होता, कोरे शब्द होते हैं, उसी प्रकार मां-बहिन की गाली देते वक्त वैसा भाव नहीं होता, केवल शाब्दिक प्रहार ही होता है। सच तो ये है कि गाली ने अब तकिया कलाम का रूप धारण कर लिया है। बात-बात में बिना प्रयोजन के गाली। मैंने ऐसे लोग देखे हैं जिनके हर वाक्य में गाली होती है, जबकि उनका ऐसा कोई भाव नहीं होता। हम इतने आदी हो चुके हैं कि दुश्मन की तो छोडिय़े, मित्र से बात करते हुए भी गालियां बकते हैं और मित्र बुरा नहीं मानता, क्योंकि वह जानता है कि यह केवल बकी गई है, कही नहीं गई।
हालांकि जब औरतें आपस में लड़ती हैं तो कुछ अलग किस्म की गालियां बकती हैं, यथा वैधव्य को लेकर, मगर अधिसंख्य यौनाचार को लेकर ही होती हैं। अंग्रेजी में जैसे बिच शब्द के संबोधन से गाली दी जाती है, ठीक उसी प्रकार हिंदी में वैश्या सूचक शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं। यह कितना हास्यास्पद है कि कई ऐसी औरतें भी हैं, जो पुरुषों द्वारा उपयोग में ली जाने वाली गालियों का इस्तेमाल करती है। उन्हें समझ ही नहीं होती कि वे कर क्या रही हैं। भले ही वे प्रचलित गालियों का उपयोग गुस्से का इजहार करने के लिए कर रही हों, मगर उन्हें ये ख्याल ही नहीं होता कि वे नारी होते हुए भी नारी जाति को अपमानित करने वाला कृत्य कर रही हैं।
जरा गहराई में जाएं तो यह ख्याल में आता है कि मां-बहिन की गालियां पुरुष प्रधान समाज की देन है। बेशक हमने नारी को बहुत सम्मान का दर्जा दिया हुआ है, शक्ति स्वरूपा मानते हैं, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि वह मात्र दिखावा है। मौलिक बात ये है कि पुरुष ने महिला को भोग की वस्तु समझ रखा है। कहीं न कहीं पुरुष यौनाचरण को अपनी बहादुरी मान कर बैठा है।
ऐसा तो है नहीं कि किन्हीं भाषा विज्ञानियों ने बैठ कर गालियों का निर्माण किया हो, वो तो आम बोलचाल में प्रयुक्त की जाने लगी हैं। लेकिन इससे यह तो पता लगता ही है कि आम पुरुष की अपनी मां और बहिन के अतिरिक्त अन्य महिलाओं के प्रति वास्तव में उसके मन में सम्मान कितना है। वस्तुत: यह पुरुष का विद्रूप चेहरा है। मुझे यह घोर विसंगति लगती है कि हम सभ्य समाज कहलाते हैं, मगर हमारा पुरुष सैक्स में इतना डूबा हुआ है कि अपशब्द के लिए सैक्स को इंगित करने वाली गालियों का उपयोग करता है।
प्रसंगवश बता दें कि भाषा विज्ञान की दृष्टि से जोधपुर की मारवाड़ी भाषा सर्वाधिक शिष्ट मानी जाती है। उसमें गाली भी बहुत सभ्य तरीके से दी जाती है। यथा- थे म्हारी बात कोनी मानी तो म्हारी जूती थांके सिर पर बिराजेला। अर्थात वह साफ तौर पर जूते मारने की चेतावनी दे रहा है, मगर सभ्यता के आवरण में।
-तेजवानी गिरधर
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