पिछले ब्लॉग में प्रदेश के सुपरिचित वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्री श्याम सुंदर शर्मा के जुड़े प्रसंग को छुआ तो यकायक दैनिक भास्कर के जयपुर मुख्यालय में काम करने के दौरान घटित कई दृश्य फिल्म की तरह दिमाग में घूमने लगे। अनेक अनुभवों में से एक आपसे साझा कर रहा हूं।
वहां काम करने के दौरान सिटी एडिटिंग डेस्क पर भी लगाया गया। तब वहां प्रदेश के सुविख्यात पत्रकार बृजेश जी शर्मा व विश्वास कुमार जी शर्मा भी विशेष संवाददाता के रूप में काम करते थे। वे सचिवालय और विधानसभा की रिपोर्टिंग किया करते थे। स्वाभाविक रूप से उनकी खबरें बहुत महत्वपूर्ण हुआ करती थीं। कहने की जरूरत नहीं है कि इतने वरिष्ठ पत्रकारों की खबर सुगठित होती थी। उसमें संपादन की गुंजाइश नहीं हुआ करती थी। मगर मजबूरी ये होती थी कि पेज पर स्थान कम होने के कारण उनमें गैर जरूरी कंटेंट काटना ही होता था। इतने वरिष्ठ पत्रकार, जो कि दैनिक भास्कर के राजस्थान में आने से पहले ही स्थापित थे और कम से कम मेरे जैसे पत्रकारों के लिए आइकन थे, उनकी खबर में कांट-छांट करने में हाथ कांपते थे। एक-दो बार मैंने उनके पास जा कर बहुत झिझकते हुए पूछा कि क्या मैं खबर के ये अंश हटा सकता हूं, इस पर वे जवाब देते थे कि हमने खबर दे दी, अब आप जानो कि उसका क्या हश्र करना है, लगाना भी है या नहीं और कितनी कांट-छांट करनी है, ये आपका लुकआउट है। हम खबर छपने के बाद शिकायत करने वाले नहीं हैं। कई बार तो ऐसा हुआ कि चार कॉलम की खबर कट कर दो कॉलम या मात्र सिंगल कॉलम हो गई। एक जूनियर जर्नलिस्ट का इस प्रकार सीनियर जर्नलिस्ट की खबर के साथ छेड़छाड़ करने पर भी सीनियर का प्रतिक्रिया न देने का क्या तात्पर्य है, यह सवाल करने पर वे कहते थे कि जूनियर-सीनियर का जमाना गया। हमें तो सिर्फ नौकरी करनी है और तनख्वाह उठानी है, हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जो खबर हमने दी, वह किस रूप में छपी है। वे कहते थे कि खबर में काट-छांट करना आपकी मजबूरी है, इसे हम भलीभांति समझते हैं। आप बेहिचक अपनी कलम चलाइये।
पत्रकारिता में बदले माहौल में वरिष्ठ पत्रकारों की क्या दुर्गति हुई है, इसका मुझे साक्षात अहसास हो गया। वस्तुत: पत्रकारिता में कारपोरेट कल्चर आने के बाद गुरू-शिष्य, जूनियर-सीनियर की रेखा समाप्त हो चुकी है। सीनियर्स ने भी आजीविका के लिए आत्मसम्मान को ताक पर रख दिया है। हालांकि इसके पीछे तर्क ये दिया जाता है कि प्रबंधन योग्यता को देखता है, उसे सीनियरटी से कोई मतलब नहीं। जूनियर भी अधिक योग्य हो सकता है, उसे आगे आने का मौका मिलना चाहिए। हालांकि यह तर्क तब मेरे दिमाग में नहीं बैठा, मगर बाद में समझ में आ गया कि वक्त के साथ बदले सिनेरियो में हम कुछ नहीं कर सकते। आज देखता हूं कि दस साल पहले जो बिलकुल न्यूकमर या जूनियर थे, आज वे योग्यता, परफोरमेंस अथवा चापलूसी व लाइजनिंग के दम पर बड़े-बड़े पदों पर पहुंच चुके हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
सही कहा आपने, आजकल पत्रकारिता में कार्पोरेटर्स का बोलबाला है जहाँ पत्रकारिता कम और बाजनेस ज्यादा आ गया है.
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