गुरुवार, 27 मार्च 2025

दांत सुरक्षित रखने का अचूक उपाय

दोस्तो, नमस्कार। पिचहत्तर साल तक भी चुस्त दुरूस्त एक सज्जन ने कुछ वर्श पहले खुद के अनुभव के आधार पर यह बात साझा की थी कि अगर आप चाहते हैं कि बुढापे तक आपके दांत सुरक्षित रहें, गिरें नहीं तो षौच के वक्त मुंह बंद रखें और दांतों को भींच कर रखें। इससे आप बाल झडने की समस्या से भी बच जाएंगे। हालांकि उन्होंने यह खुलासा नहीं किया कि यह कैसा साइंस है, मगर लगता है कि इसका स्नायु विज्ञान से संबंध है। जब षौच के वक्त अपान वायु पर दबाव बनाते हैं तो मुंह खुला रहने पर दातों की जडें कमजोर हो जाती होंगी। दांत भिंचे होने पर जडें अप्रभावित रह जाती होंगी। उन्होंने यह भी बताया कि यदि आदमी सुव्यवस्थित दिनचर्या अपनाए और संतुलित भोजन करे तो 75 साल ही उम्र में भी वह पहाडी चढ सकता है। उन्होंने बताया कि वे इस उम्र में भी आसानी से पहाडी चढ जाते हैं।


https://youtu.be/QHCrwS0FRHk

मंगलवार, 25 मार्च 2025

अल्लामा इकबाल का मशहूर शेर

महान षायर अल्लामा इकबाल का एक षेर है-

वो फरेब खुर्दा षाहीं जो पला हो करगसों में

उसे क्या खबर के क्या है राहे रस्मों षाहबाजी


इसके मायने हैं कि बाज का जो बच्चा गलती से गिद्धों के यहां पला हो, उसे क्या खबर कि षाहबाजी के रस्मों रिवाज क्या होते हैं। बताते हैं कि एक बार गलती से किसी बाज का अंडा गिद्धों के अंडों में गिर गया। अंडे से निकला तो गिद्धों के बच्चों की संगत में वैसा ही व्यवहार करने लगा। उसे अहसास ही नहीं कि वह तो बाज का बच्चा है। ज्ञातव्य है कि बाज खुद षिकार करके भोजन करता है, जबकि गिद्ध मृत षरीर का मांस नोंच कर खाता है। 

इसकी व्याख्या चैट जपीटी इस प्रकार करता है- जो व्यक्ति हमेशा छल-कपट और चालाकी के माहौल में पला-बढ़ा हो, जैसे गिद्धों के बीच पला हुआ, उसे भला क्या पता कि सच्ची शाही परंपराएं और उच्च मूल्यों की राह क्या होती है। यह शेर सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर एक तीखा कटाक्ष भी हो सकता है, जो यह दर्शाता है कि अगर कोई व्यक्ति केवल धोखे और स्वार्थ से भरे वातावरण में बड़ा हुआ है, तो वह कभी भी सच्चे नेतृत्व, न्याय या शाही शिष्टाचार को नहीं समझ सकता।

जो लोग भ्रष्टाचार और अनैतिकता में डूबे हुए हैं, वे ईमानदारी और नैतिकता के महत्व को नहीं समझ सकते हैं। जो लोग झूठ और धोखे के आदी हैं, वे सच्चाई और विश्वास के मूल्य को नहीं जानते हैं। जो लोग सत्ता और धन के लालच में अंधे हो गए हैं, वे न्याय और समानता के महत्व को नहीं समझते हैं।


रविवार, 16 मार्च 2025

इन्ट्यूषन या टेलीपैथी

इन दिनों कुछ घटनाएं चकित कर रही हैं। ऐसा अनुभव हो रहा है कि कोई ख्याल मन में आया, या विचार आया, या इन्ट्यूषन हुआ, वह घटित हो गया। ऐसी एकाधिक घटनाएं हो चुकी हैं। ठीक ठीक क्या है, जरा असमंजस में हूं। कभी लगता है कि जो विचार मन में चलता है, वह फलित हो रहा है, तो कभी लगता है कि कहीं वह इन्ट्यूषन तो नहीं, जिसका घटना से पहले आभास हो जाता है। जैसे कुछ दिन से ख्याल आ रहा था कि कोई पुराना मित्र, जो लंबे समय से संपर्क मे नहीं है, वह मिलने वाला है। मैने इसे मन की ख्वाहिष मात्र मान कर महत्व नहीं दिया। लेकिन जैसे एक पुराने मित्र ने अरसे बाद फोन किया तो मैं चकित रह गया। मैने उनसे पूछा आपको फोन करने का ख्याल कैसे आया, तो वे बोले उन्हें ऐसा ख्याल आ रहा था कि मुझ से बात करनी चाहिए, इसलिए फोन मिला दिया। अब यह टेलीपैथी है या कि पूर्वाभास। इससे भी अधिक रोचक बात सुनिये। स्वामी न्यूज पर फाल्गुन समारोह की प्लानिंग हो रही थी। मेरे मन में विचार था छुपा रूस्तम कॉलम में कांग्रेस नेता हेमंत भाटी का गाना दर्षकों को दिखाया जाए। मैने इसकी चर्चा स्वामी न्यूज के एमडी कंवलप्रकाष किषनानी से की। यह हम दोनों के बीच की ही बात थी। संयोग से जैसी प्लानिंग की थी, उसमें कुछ बाधाएं आ गईं और कार्यक्रम कर नहीं पाए। लेकिन मैं तब चकित रह गया कि हेमंत भाटी अजमेर नगर निगम के फागुन समारोह में गाना गा रहे हैं। लोग भी चकित थे। गजब हो गया। यह कैसे हुआ? क्या विचार हमारे यहां नहीं तो अन्यत्र फलित हो गया? क्या मेरे मन का विचार निगम के कार्यक्रम के आयोजकों के मन में संप्रेशित हो गया? ऐसी ही अनेक छोटी मोटी घटनाएं हो रही हैं, मेरी उन पर गहरी नजर है। 


शनिवार, 8 मार्च 2025

मैं यह करूंगा, ऐसा कभी नहीं कहता

दोस्तों, आज मैं आपसे एक ऐसा अनुभव साझा कर रहा हूं, जो संभव है आपको अटपटा लगेगा, मगर मैं उससे पल पल गुजर रहा हूं। असल में एक लंबे समय से मेरी आदत में षुमार हो गया है कि जब भी कोई छोटे से छोटा काम करता हूं तो उसके बारे में पहले से यह नहीं कहता कि अमुक काम करूंगा, बल्कि सायास यह कहता हूं कि अमुक काम करने का विचार है। और उसके पीछे है एक खास वजहः-

जैसे यदि किसी ने मुझे कोई निमंत्रण दिया और मुझे जाना ही होगा, यानि जाने का पक्का विचार है तो भी यह नहीं कहता कि मैं आउुंगा। यह कहता हूं कि आने की कोषिष करूंगा, आने का विचार तो है। क्योंकि मैने अपनी डिक्षनरी में से गा, गे, गी हटा दिया है। इस पर कई लोग नाराज हो जाते हैं। कहते हैं कि ऐसा क्यों कह रहे हो। कोषिष और विचार क्या होता है, आपको आना ही है। इस पर मुझे उनको समझाना पडता है कि मैं यह नहीं कह पाउंगा कि मैं आउंगा, क्योंकि जब भी मैंने ऐसा कहा है कि मैं आउुंगा तो मैं नहीं जा पाता हूं। न जाने क्यों? न जाने कौन सी षक्ति मुझे रोक देती है। न जाने कौन रुकावट डालता है। जिन मित्रों को मेरी आदत का पता है, फिर भी वे यदि गलती से कह देते हैं कि कल तो आप वहां जाओगे, मुझे एकदम से गुस्सा आ जाता है। कहता हूं कि जब आपको पता है, फिर भी आप ऐसी हरकत क्यों कर रहे हैं? वे कहते हैं आपने थोडे ही कहा है कि आप जाओगे, यह तो हम कह रहे हैं, तब भी कहता हूं आपका वक्तव्य भी मेरे लिए बाधा जाता है। इसलिए यह कहो कि कल आपका वहां जाने का विचार है ना। यह तो हुई कुछ करने के विशय में वक्तत्व की बात, व्यवहार में भी मैने यह देखा है कि जब तक कोई छोटा मोटा काम हो नहीं जाता, उसके बारे में सुनिष्चित नहीं रह पाता कि हो ही जाएगा। इसे यूं समझिये कि मुझे जयपुर जाना है तो तब तक पक्का न समझिये जब तक कि बस में न बैठ जाउं। इससे भी छोटे काम। मानसिकता यह बन गई है कि किसी छोटे से काम के लिए निकलता हूं तो पहले से संषय रहता है कि वह हो भी पाएगा या नहीं। जैसे जब मोबाइल का रिचार्ज करवाने जा रहा हूं, एटीएम से रुपये निकलवाने जा रहा हूं, कोई बिल जमा करवाने जा रहा हूं, बैंक में रुपए जमा करवाने जा रहा हूं तो संदेह रहता है कि हो पाएगा या नहीं। फिर सोचता हूं कि प्रकृति चाहेगी तो हो जाएगा। षायह यह संपूर्ण मानिसिकता इस कारण बनी है कि यह धारणा पक्की हो गई कि जो कुछ भी मैं कर रहा हूं, वह मैं नहीं कर रहा, प्रकृति कर रही है या प्रकृति करवा रही है। उसकी मर्जी होगी तो हो जाएगा, नही ंतो नहीं।

मेरे कुछ साथी कहते हैं कि चूंकि आप पहले से संषय में रहते हैं, इस कारण आपके कामों में बाधा आती है। आधे मन से किए जा रहे काम के होने में संषय होना ही है। इसलिए संषय छोड कर पक्का यकीन रखिए, काम हो जाएगा। उनकी राय में दम है, उस पर चलने की कोषिष भी करता हूं, मगर चूंकि हजारों घटनाओं के लंबे अनुभव से जो धारणा भीतर पैठ गई है, वह सोच को बदलने ही नहीं देती।

https://www.youtube.com/watch?v=_kpj_pSgkIY


गुरुवार, 6 मार्च 2025

आदमी झूठ बोल ही नहीं सकता, बोलेगा तो पकडा जाएगा

प्रकृति ने आदमी को बहुत चतुर बनाया है। वह बडी चतुराई से झूठ बोलता है। सच तो यह है कि हर जगह झूठ का ही बोलबाला है। उस झूठ पर ही यह दुनिया चल रही है। मगर हकीकत यह है कि आदमी झूठ बोल ही नहीं सकता। बोलेगा तो पकडा जाएगा। जैसे ही झूठ बोलता है, उसकी धडकन डगमगा जाती है। ब्लड प्रेषर विचलित हो जाता है। जुबान लडखडा सकती है। लेकिन फिर भी दिक्कत ये है कि झूठ बोलने पर पकडा नहीं जा पाता, क्योंकि हमें झूठ पकडना नहीं आता। और इसीलिए विज्ञान ने एक ऐसा यंत्र बनाया है, जो यह पकड लेता है कि आदमी झूठ बोल रहा है या सच। उस यंत्र का नाम है लाई डिटेक्टर। लाई डिटेक्टर मशीन व्यक्ति की शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापती है, जो झूठ बोलते समय स्वाभाविक रूप से बदल सकती हैं। झूठ बोलते समय व्यक्ति का दिल तेजी से धड़क सकता है। तनाव में आने पर रक्तचाप बढ़ सकता है। झूठ बोलने पर सांस लेने की गति बदल सकती है। शरीर की त्वचा से निकलने वाला पसीना इलेक्ट्रिक सिग्नल को प्रभावित करता है।

लाई डिटेक्टर टेस्ट इस प्रकार किया जाता है। व्यक्ति के शरीर से विभिन्न सेंसर जोड़े जाते हैं। पहले सामान्य सवाल पूछे जाते हैं। जैसे आपका नाम क्या है? आपके पिताजी का नाम क्या है? ताकि बेसलाइन डेटा मिल सके। फिर ऐसे सवाल पूछे जाते है, जिनका जवाब झूठ या सच हो सकता है। मशीन व्यक्ति की प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड करती है और यह देखा जाता है कि किसी विशेष सवाल पर असामान्य बदलाव आया या नहीं। हालांकि यह सही है कि लाई डिटेक्टर पूरी तरह से भरोसेमंद नहीं होता। कई लोग घबराहट की वजह से भी असामान्य प्रतिक्रियाएं दे सकते हैं, जिससे गलत नतीजे आ सकते हैं। साथ ही कुछ प्रशिक्षित लोग या अपराधी इसे चकमा भी दे सकते हैं। वस्तुतः लाई डिटेक्टर का उपयोग पुलिस इन्वेस्टिगेशन में किया जाता है। अपराध की जांच में संदिग्ध से पूछताछ करने के लिए।

कुछ एजेंसियां इसे भर्ती प्रक्रिया में इस्तेमाल करती हैं। हालांकि अदालतों में लाई डिटेक्टर टेस्ट के नतीजों को आमतौर पर पुख्ता सबूत नहीं माना जाता।


दांत सुरक्षित रखने का अचूक उपाय

दोस्तो, नमस्कार। पिचहत्तर साल तक भी चुस्त दुरूस्त एक सज्जन ने कुछ वर्श पहले खुद के अनुभव के आधार पर यह बात साझा की थी कि अगर आप चाहते हैं कि...