अजमेर शहर भाजपा के पूर्व अध्यक्ष व राजस्व मामलों के नामी वकील श्री पूर्णा शंकर दशोरा हमारे बीच नहीं रहे। यह अजमेर के लिए अपूरणीय क्षति है। उनके पिछले जन्मदिन पर एक ब्लॉग लिखा था। उसके तत्व आज भी कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। ऐसी आत्मा को नमन। यही मेरी शब्दाजंलि है। पेश है हूबहू आपकी नजर::-
हाल ही शहर भाजपा के पूर्व अध्यक्ष व राजस्व मामलों के वरिष्ठ वकील श्री पूर्णाशंकर दशोरा का जन्मदिन था, तो यकायक ख्याल आया कि उन पर भी एक शब्दचित्र खींचने का प्रयास करूं। वैसे उनके बारे में लिखने का विचार बहुत दिन से था कि चर्चाओं से दूर ऐसे शख्स से मौजूदा पीढ़ी को रूबरू कराया जाए, ताकि उसे भी कोई प्रेरणा मिले।
अपने वकालत के पेशे के प्रति पूरी ईमानदारी व लगन के बलबूते ही आज वे प्रदेश के दिग्गज वकीलों में शुमार हैं। यह उनकी निजी उपलब्धि है। उनके परम मित्र, जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार श्री ओम माथुर की पंक्तियों को चुराने की धृष्टता करते हुए सुखद लग रहा है कि हमारे यहां ऐसी विषय विशेषज्ञ शख्सियत है, जिससे रेवेन्यू मेंबर, चेयरमैन, यहां तक राजस्व मंत्री तक उनसे कानूनी राय लेते हैं। मगर मुझे अफसोस कि राजनीति ने उनकी सेवाएं तो पार्टी हित में ले लीं, मगर मौका पड़ा तो राज्य स्तर पर उनका कोई उपयोग नहीं लिया। कदाचित इस वजह से कि राजनीति का सबसे पहला गुण, चाटुकारिता उन्हें नहीं आती।
एक जमाने में वे बहुत सक्रय रहे। राजनीति के साथ-साथ लायंस क्लब के जरिए समाजसेवा में खूब काम किया। शहर के जाने-माने बुद्धिजीवियों में उनकी गिनती रही है। उनकी बदोलत शहर ने कई कवि सम्मेलनों के दीदार किए। शहर की बहबूदी का शायद ही कोई ऐसा मुद्दा रहा हो, जिसमें उनकी भूमिका न रही हो। सबसे अधिक रेखांकित करने वाली बात ये है कि राजनीति में पूर्ण रूप से सक्रिय रहते हुए भी उन्हें राजनीति कभी छू तक नहीं पाई। राजनीति बाहर नाचती रही और भीतर वे स्थितप्रज्ञ बने रहे। ऐसा होना विलक्षणता का प्रमाण है। ऐसे सरल, सौम्य, सहज, योग्य व ईमानदार विरले ही पैदा होते हैं। विशेष रूप से राजनीति में। महात्मा गांधी से उन्होंने भले ही प्रेरणा न ली हो, मगर मेरी नजर में वे एक सच्चे गांधीवादी व्यक्तित्व हैं। आपको मेरा यह कथन अटपटा जरूर लगेगा। स्वाभाविक है। असल में हमने गांधीजी व आरएसएस के बीच एक दीवार उठा रखी है। एक नेरेटिव सेट कर रखा है। हालांकि बदलते जमाने में अब भाजपा भी गांधीजी को उतना ही सम्मान देने लगी है, जितना कांग्रेसी देते रहे हैं। उसके अपने कारण हैं, हम अभी उसमें नहीं जा रहे। हां, प्रसंगवश यह बताना उचित रहेगा कि कुछ विद्वानों ने आरएसएस कार्यकर्ताओं व गांधीजी के अनुयाइयों की सामान्य जीवनशैली में राजनीतिक तौर पर नहीं, मगर निजी तौर पर साम्य पाया है। इस विषय पर बाकायदा गहन अध्ययन तक हुआ है। कारण साफ है, इन धाराओं में बाद में भले ही कितनी ही राजनीतिक विषमताएं आई हों, मगर जड़ में सादा जीवन, उच्च विचार ही मौलिक लक्षण रहा है। भाजपा में इसके दो उदाहरण और हैं- पूर्व विधायक स्वर्गीय श्री नवलराय बच्चानी व पूर्व विधायक श्री हरीश झामनानी। उनका चेहरा ख्याल में आते ही, मेरी बात आपके समझ में आ जाएगी। चालबाजी के अभाव ने उन्हें राजनीति ने मिसफिट कर दिया। श्री दशोरा जी भी वर्तमान में हर दृष्टि से फिट हैं, मगर कुटिल राजनीति ने उन्हें भी एक तरह से हाशिये पर खड़ा कर रखा है।
खैर, यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि गांधीवादी माने जाने वाले मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के स्थानीय प्रतिबिंब पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती से तब भी उनकी खूब पटती थी, जबकि वे भी शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष हुआ करते थे। यह कोई गोपनीय तथ्य नहीं, बाकायदा जनचर्चा का विषय था। दोनों अपनी-अपनी पार्टी की विचारधारा व कार्यक्रमों के प्रति एक निष्ठ रहे, फिर भी दोस्ती कायम रही। न तो कोई निजी विवाद हुआ और न ही सार्वजनिक। वस्तुत: तब राजनीति का मिजाज कुछ और हुआ करता था। डॉ. बाहेती आज भी राजनीति में सक्रिय हैं, इस कारण उनमें राजनीति से जुड़ी आवश्यक बुराइयां गिनाई जा सकती हैं, मगर निजी जिंदगी कितनी सरल, सहज, सौम्य है, यह सब जानते हैं। खबर के मामले में भी दशोरा जी व डॉ. बाहेती में एक साम्य है। जैसा कि श्री माथुर बताते हैं कि आमतौर पर राजनीतिज्ञ, पत्रकारों से इस मोह में रिश्ता रखते हैं कि उन्हें प्रचार का ज्यादा अवसर मिलेगा, लेकिन दशोरा जी ने कभी संबंधों का इसके लिए दुरुपयोग नहीं किया। ठीक ऐसा ही है, डॉ. बाहेती भी खबर या नाम के लिए बहुत ज्यादा फांसी नहीं खाते। बहुत जरूरी हो तो ही खबर जारी करते हैं।
अरे, एक और मजेदार बात। श्री माथुर की डॉ. बाहेती से उतनी ही गहरी छनती है, जितनी दशोरा जी से। दोनों नेताओं के बीच जो साम्य है, कहीं वही तत्त्व श्री माथुर के भीतर तो गहरे छिपा हुआ नहीं है। बेशक, श्री माथुर की पत्रकारिता की धार बहुत पैनी है, इस कारण हो सकता है, उनसे कई को तकलीफ भी हुई हो, मगर अजमेर की पत्रकारिता में उनके जैसे साफ-सुथरी छवि के पत्रकार गिनती के ही हैं, जिन पर इतने लंबे पत्रकारिता के जीवन में कोई दाग नहीं लगा।
बात कहां से शुरू हुई और कहां तक पहुंच गई। लब्बोलुआब ये कि दशोरा जी एक आदर्श व्यक्तित्व हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस पार्टी के हैं, महत्वपूर्ण ये है कि हमारे बीच ऐसे प्रकाश स्तम्भ मौजूद हैं, जिनसे हमारी भावी पीढ़ी को रोशनी मिलती रहेगी।
जरा दशोरा जी के जीवन परिचय पर भी नजर डालें:-
उनका जन्म 1 जनवरी 1950 को श्री रामलाल दशोरा के घर हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा चितौडग़ढ़, माध्यमिक शिक्षा बस्सी जिला चितौडग़ढ़, स्नातक शिक्षा चितौडग़ढ़ और एलएलबी की शिक्षा उदयपुर में हासिल की। उन्होंने बीए. एलएलबी की शिक्षा अर्जित की और वकालत को अपना पेशा बनाया। उन्हें करीब 43 वर्ष तक राजस्व मामलों की वकालत का अनुभव है। वे राजस्थान राजस्व अभिभाषक संघ के अध्यक्ष और सचिव और राजस्थान अधिवक्ता परिषद के संयुक्त सचिव रहे हैं। वे करीब पचास साल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं। प्रदेश भाजपा विधि प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष रहे हैं। सन् 1998 से 2007 तक शहर जिला अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने अपनी विशेष पहचान बनाई है। विभिन्न चुनावों में पार्टी प्रत्याशियों के मुख्य चुनाव एजेंट रहे हैं। वे लायन्स क्लब पृथ्वीराज के अध्यक्ष रहे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
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